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RBSE Solutions for Class 11 Hindi अपरा Chapter 10 काल-चक्र

July 10, 2019 by Safia Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 10 काल-चक्र

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 10 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 10 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
‘काल-चक्र’ से आशय है –
(क) समय का चक्र यो पहिया
(ख) काल का चक्कर
(ग) मृत्यु को झमेला
(घ) हेरफेर करना।
उत्तर:
(क) समय का चक्र यो पहिया

प्रश्न 2.
संवत्सर का अर्थ है –
(क) नववर्ष
(ख) काल
(ग) घड़ी
(घ) हवन सामग्री।
उत्तर:
(क) नववर्ष

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 10 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निशीथ किसे कहते हैं?
उत्तर:
आधी रात को निशीथ कहते हैं।

प्रश्न 2.
अहोरात्र शब्द का अर्थ बताइए।
उत्तर:
अहोरात्र शब्द का अर्थ है-दिन और रात

प्रश्न 3.
जेठ में सूर्य का किस नक्षत्र में संचार होता है?
उत्तर:
जेठ में सूर्य का संचार रोहिन नक्षत्र में होता है।

प्रश्न 4.
गणेश चतुर्थी किस तिथि को मनाते हैं?
उत्तर:
गणेश चतुर्थी भादों मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मनाते हैं।

प्रश्न 5.
फागुन का जाड़ा कैसा होता है?
उत्तर:
फागुन का जाड़ा गुलाबी होता है।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 10 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
चन्द्रमास से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
चन्द्रमास के संचार के अनुसार गणना होने वाले महीने को चन्द्रमास कहते हैं। चन्द्रमास कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से (पूर्णिमा के बाद की पहली तिथि-पड़वा) आरम्भ होता है तथा शुक्ल पक्ष (अमावस्या के बाद के पन्द्रह दिन) की पूर्णिमा तक रहता है।

प्रश्न 2.
मलमास का क्या अर्थ है?
उत्तर:
सौरमास के साथ आने के लिए 35 चन्द्रमासों के बाद लगभग एक अधिमास आता है। इसको मलमास कहते हैं। यह प्रत्येक तीसरे वर्ष होता है।

प्रश्न 3.
क्षय तिथि’ कब कहलाती है?
उत्तर:
सूर्योदय से आरम्भ होकर जो तिथि अगले सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो जाती है, उसको क्षयतिथि कहते हैं।

प्रश्न 4.
प्रदोष कब माना जाता है?
उत्तर:
संध्या काल में जो तिथि रहती है उसे प्रदोष कहते हैं। प्रदोष संध्याकाल को माना जाता है। प्रदोष व्रत त्रयोदशी को होता है।

प्रश्न 5.
षड्-ऋतुओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
षड् अर्थात् छः ऋतुएँ निम्नलिखित हैं-वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त, शिशिर।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 10 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वसंत को यौवन के रूप में और शिशिर को बुढ़ापे के रूप में क्यों माना जाता है?
उत्तर:
छः ऋतुओं में वसन्त से ग्रीष्म ऋतु का आरम्भ होता है। शिशिर की असहनीय सर्दी और ठिठुरन आदि समाप्त होकर वसंत की सुहावनी और सुन्दर ऋतु आती है। पेड़ों पर नवीन पत्ते आते हैं, फूल खिलते हैं और प्रकृति एक सुन्दरी नवयुवती के रूप में प्रकट होती है, इस समय प्रकृति का श्रेष्ठतम और सशक्त स्वरूप दिखाई देता है। यौवन भी मनुष्य के जीवन की एक ऐसी अवस्था है जिसमें उसका सर्वोत्कृष्ट स्वरूप दिखाई देता है। अत: वसंत ऋतु को यौवन के रूप में माना गया है। शिशिर इसके विपरीत ऐसी ऋतु है जब प्रकृति के सौन्दर्य का क्षय हो जाता है। पेड़-पौधे पत्तों-फूलों से रहित होते हैं। पानी काटने-सा लगता है और हवा शरीर में तीर की तरह चुभती है। यह सब असहनीय होता है। बुढ़ापा भी मानव जीवन की ऐसी ही अवस्था है जब उसकी शारीरिक शक्ति और सौन्दर्य का क्षय हो जाता है। वह कुरूप और अशक्त दिखाई देता है। इस कारण बुढ़ापे का शिशिर कहा गया है।

प्रश्न 2.
सौरमास पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मास दो प्रकार के होते हैं-सौरमास तथा चन्द्रमास। सौरमास सूर्य से राशि-संक्रमण के आधार पर होता है। वर्ष की शुरुआत मेष संक्रान्ति से होती है। उस दिन पूरब में सतु आनि का पर्व होता है। पंजाब तथा बंगाल में वर्षारम्भ मनाया जाता है। मकर संक्रान्ति से उत्तरायण शुरू होता है। पोंगल तथा खिचड़ी के त्यौहार होते हैं। सौरमास के साथ आने के लिए 35 चन्द्रमासों के बाद लगभग एक अधिमास आता है। इसे मलमास या लोंद कहते हैं और उस साल को लोंद का साल कहते हैं। तिथि की गणना चन्द्रमास के आधार पर होती है किन्तु दिन सूर्योदय से अगले सूर्योदय से पूर्व तक माना जाता है।

प्रश्न 3.
आकाश की गतिविधि देखकर समय का विभाजन किस प्रकार किया गया है?
उत्तर:
गाँवों में समय का विभाजन बहुत बारीक है। आकाश की गतिविधि देखकर समय का विभाजन किया गया है। सूर्य के उदय होने से एक-डेढ़ घंटे पहले शुक्रतारा उगता है। उस समय को सुकवाउगानी कहा जाता है। इसके बाद का समय भिनसार कहलाता है। इस समय चिड़ियाँ बोलने लगती हैं परन्तु हल्का अँधेरा बना रहता है। फिर पूरब की ओर कुछ उजास दिखाई देती है और तब तक भोर हो जाता है। इसे प्रभात कहते हैं। इसके बाद लाही लगती है। आकाश में कुछ लालिमा दिखाई देती है। तब सबेरा हो जाता है। प्रत्यूष वेला, पौ फटना, सुबह होना भी इसको कहते हैं। सूर्योदय हो जाता है, सबेरे से पहले तड़के सुबह और सूर्य निकलने से पहले का समय ब्रह्मवेला या उषः काल कहलाता है।

सूर्योदय के बाद सूरज ऊपर चढ़ आता है तो दिन चढ़ांनी वेला और उसके एक प्रहर बाद दुपहरी होती है। बारह बजते ही खड़ी दुपहरी होती है। उसके बाद तिपहरी होती है। दिन का चौथा पहर दिन ढलानी बेला है। तब साँझ या सन्ध्या हो जाती है। गोधूलि, सूरज डूबने से पूर्व का समय और सूर्यास्त हो जाता है। उसके बाद झुटपुटा, फिर ध्वान्त होकर दिया जलने का समय हो जाता है। आकाश में एकाध तारा दिखाई देता है और एक घड़ी रात हो जाती है। बाद में रात गहराती है, भीगने लगती है, रात के पहले पहर के बाद गाँवों में लोग सो जाते हैं, इस समय को सूतापड़ानी कहते हैं। दिये बुझ जाते हैं। कुछ लोग अलाव तापने के लिए जागते हैं। तब आधी रात या निशीथ का समय हो जाता है।

प्रश्न 4.
खेती के काम किन-किन नक्षत्रों में होते हैं?
उत्तर:
खेती के काम सूर्य – नक्षत्रों के आधार पर होते हैं। जेठ में रोहिन नक्षत्र में खेती का काम शुरू हो जाता है। रोहिन की वर्षा आम तथा धान की फसल को लाभ देती है। मृग नक्षत्र में सूर्य का तवना मनाया जाता है। आर्द्रा में वर्षा महत्वपूर्ण होती है। आर्द्रा के बाद पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वा, उत्तरा, हस्त, चित्रा और स्वाति नक्षत्र आते हैं। ये सभी कृषि के कार्य में महत्व रखते हैं। इसलिए इन नक्षत्रों के नाम कुछ विकार के साथ प्रचलित हैं-जैसे-आद्र, पुनरवसु, पुख्य, असलेषा, मघा, पुरवा और हथिया।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 10 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 10 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय कालगणना शुरू होती है –
(क) ब्रह्मा के परार्द्ध से
(ख) ब्रह्मा के उत्तरार्द्ध से
(ग) ब्रह्मा के पूर्वार्ध से
(घ) इनमें से सभी से।
उत्तर:
(क) ब्रह्मा के परार्द्ध से

प्रश्न 2.
प्रत्येक युग में चरण होते हैं –
(क) तीन
(ख) चार
(ग) दी
(घ) एक।
उत्तर:
(ख) चार

प्रश्न 3.
जो तिथि सूर्योदय के समय रहती है, वह कहलाती है –
(क) अस्त तिथि
ख) क्षय तिथि।
(ग) उदय तिथि
(घ) अक्षय तिथि
उत्तर:
(ग) उदय तिथि

प्रश्न 4.
मृत्यु या निधन की तिथि को कहते हैं –
(क) मृत्यु तिथि
(ख) तिरोभाव तिथि
(ग) निधन तिथि
(घ) पुण्य तिथि
उत्तर:
(घ) पुण्य तिथि

प्रश्न 5.
सबेरे आकाश में सूर्योदय से पहले उगता है –
(क) वृहस्पति तारा
(ख) शुक्रतारा
(ग) शनि तारा
(घ) चन्द्रमा
उत्तर:
(ख) शुक्रतारा

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 10 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक मनवन्तर कितनी चौकड़ी का होता है?
उत्तर:
एक मनवन्तर 71 चौकड़ी को होता है।

प्रश्न 2.
युग कितने होते हैं?
उत्तर:
युग चार होते हैं-सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर तथा कलियुग।

प्रश्न 3.
‘सुदि’ और ‘बदि’ किनको कहते हैं?
उत्तर:
‘सुदि’ शुक्ल दिन (अमावस्या के बाद के 15 दिन) तथा बदि बहुल दिन (पूर्णिमा के बाद के 15 दिन) को कहते हैं।

प्रश्न 4.
मास गणना का आधार क्या है?
उत्तर:
मास गणना का आधार चन्द्रमास तथा सौरमास हैं।

प्रश्न 5.
कौन-सी एकादशियाँ प्रसिद्ध हैं?
उत्तर:
देवोत्थान, भीमसेनी और हरिशयनी एकादशियाँ प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 6.
पोंगल और खिचड़ी पर्व कब मनाये जाते हैं?
उत्तर:
सूर्य के उत्तरायण होने पर मकर संक्रांति को पोंगल और खिचड़ी पर्व मनाये जाते हैं।

प्रश्न 7.
‘सुकवउगानी’ किसको कहते हैं?
उत्तर:
आकाश में शुक्रतारे के उदय के समय को गाँवों में ‘सुकवाउगानी’ कहा जाता है।

प्रश्न 8.
और दीपावली की जून आ जाती है।’ में दीपावली की जून का क्या अर्थ है?
उत्तर:
दीपावली का अर्थ है-दीपक जलना और जून का अर्थ है-समय। शाम को अँधेरा होने पर दीपक जलाने के समय को दीपावली की जून कहा गया है।

प्रश्न 9.
‘रात गिर जाती है कहने का क्या आशय है?
उत्तर:
‘राते गिर जाती है’ कथन का आशय है कि रात हो जाती है और लोग काम बन्द कर सो जाते हैं।

प्रश्न 10.
साइत किसको कहते हैं?
उत्तर:
अच्छे मुहुर्त को साइत कहते हैं।

प्रश्न 11.
एक वर्ष में कितने चौमास होते हैं?
उत्तर:
एक वर्ष में तीन चौमासे होते हैं-गर्मी, वर्षा, जाड़ा।

प्रश्न 12.
एक नक्षत्र की अवधि कितने दिन होती है?
उत्तर:
एक नक्षत्र की अवधि 13 या 14 दिन होती है।

प्रश्न 13.
सुहावनी गर्मी कब होती है?
उत्तर:
फागुन के महीने में गर्मी सुहावनी होती है।

प्रश्न 14.
‘बतास’ और ‘घाम’ शब्दों का क्या अर्थ है?
उत्तर:
‘बतास’ का अर्थ ‘हवा’ तथा ‘घाम’ को अर्थ ‘धूप’ है।

प्रश्न 15.
‘चिल्ला जाड़ा’ किसको कहते हैं?
उत्तर:
पूस-माह के महीनों में पड़ने वाली चालीस दिन की सर्दी को चिल्ला जाड़ा कहते हैं।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 10 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
हमारे चिंतन में ठहरे हुए काल की इसीलिए बड़ी उपेक्षा है। काल की उपेक्षा का क्या कारण है?
उत्तर:
‘काल’ अनेकार्थक शब्द है। उसका एक अर्थ मृत्यु भी है। काल का यही अर्थ लोगों के मन में स्थायी हो गया है। काल . समय या गति और जीवन का भी सूचक है परन्तु उसके इस अर्थ पर ध्यान नहीं दिया जाता और उसकी उपेक्षा की जाती है।

प्रश्न 2.
भारतीय काल-गणना किस प्रकार होती है?
उत्तर:
भारतीय कालगणना ब्रह्मा के परार्ध से शुरू होती है। सृष्टि का चक्र ब्रह्मा का अहोरात्र माना जाता है। इसके बाद कल्प और मन्वन्तर हैं। एक कल्प में 14 मन्वन्तर होते हैं। एक मन्वन्तर 71 चौकड़ी अर्थात् युग चतुष्ट्य का होता है। चौकड़ी का अर्थ चार युग सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर और कलियुग है।

प्रश्न 3.
वर्ष गणना किस प्रकार होती है?
उत्तर:
60 वर्षों के चक्कर के आधार पर वर्ष गणना होती है। प्रत्येक संवत्सर के प्रवेश का दिन होता है। सन् संवत् भी चलते हैं। विक्रम संवत्, शक या साके, ईस्वी सन्, हिजरी और फसली में भी वर्ष की गणना होती है। हिन्दुओं के धार्मिक कार्य विक्रम और शक के अनुसार होते हैं।

प्रश्न 4.
मास गणना का आधार क्या है?
उत्तर:
चन्द्रमास तथा सौरमास मास गणना के आधार हैं। चन्द्रमास कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तक गिना जाता है। पूर्णिमा की 15वीं तथा अमावस्या की 30वीं तिथि होती है। सूर्य के राशि संक्रमण के आधार पर सौरमास होता है।

प्रश्न 5.
तिथि किसको कहते हैं?
उत्तर:
मास के दिनों को तिथि कहते हैं। तिथि की गणना चन्द्रमा के संचरण के अनुसार होती है। वैसे सूर्योदय के बाद से अगले सूर्योदय तक एक ही तिथि रहती है। यदि अगले सूर्योदय से पूर्व तिथि समाप्त हो जाती है तो वह गिनी नहीं जाती और उसका क्षय हो जाता

प्रश्न 6.
व्रत की महत्वपूर्ण तिथियाँ कौनसी हैं?
उत्तर:
एकादशी, त्रयोदशी, चतुर्थी, तृतीया, पंचमी, षष्ठी और पूर्णिमा व्रत की महत्त्वपूर्ण तिथियाँ हैं।

प्रश्न 7.
लोंद का वर्ष किसको कहते हैं?
उत्तर:
चन्द्रमा के संचरण के आधार पर चन्द्रमास गिना जाता है। सौरमासों के साथ आने के लिए 35 चन्द्रमासों के बाद लगभग एक अधिमास आता है। इसको मलमास भी कहते हैं। जिस वर्ष मलमास होता है उस वर्ष को लोंद का साल कहते हैं।

प्रश्न 8.
दिन की गणना किस तरह की जाती है?
उत्तर:
दिन 24 घंटों अथवा 60 घटियों (घड़ियों) का होता है। अंग्रेजी गणना के अनुसार रात बारह बजने के बाद दिन गिना जाता है जो अगली रात बारह बजे तक रहता है। घटी की गणना सूर्योदय से होती है। इसके अनुसार दिन सूर्योदय के बाद ही माना जाता है। तिथि सूर्योदय के बाद ही प्रारम्भ होती है और प्रायः आगामी सूर्योदय तक रहती है।

प्रश्न 9.
चौमासा किसको कहते हैं?
उत्तर:
चार महीनों का समूह चौमासा कहलाता है। साल में तीन चौमासे होते हैं। इनको चातुर्मास भी कहते हैं। पहले चौमासे में फागुन, चैत्र, वैशाख, जेठ, दूसरे चौमासे में आषाढ़, श्रावण, भादों, क्वार (आश्विन) तथा तीसरे और अन्तिम चौमासे में कार्तिक, अगहन, पूस (पौष) और माह (माघ) महीने होते हैं।

प्रश्न 10.
जाड़े और तपन के सापेक्ष बोधक शब्द कौन-से हैं?
उत्तर:
जाड़े और तपन को व्यक्त करने वाले अनेक सापेक्ष बोधक शब्द हिन्दी में प्रचलित हैं। फागुन का गुलाबी जाड़ा और सुहावनी गर्मी, चैत्र की चिनचिनाहट, वैशाख की लपट, रात की हँवक, आषाढ़ की उमस, पूस का चिल्ला जाड़ा आदि ऐसे ही शब्द हैं।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 10 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विक्रम संवत् के आधार पर वर्ष की गणना पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारत में हिन्दुओं के धार्मिक क्रियाकलाप विक्रम संवत् के आधार पर चलते हैं। तिथि सूर्योदय से आरम्भ होकर अगले सूर्योदय तक मानी जाती है। आगामी सूर्योदय से पूर्व समाप्त होने वाली तिथि का क्षय हो जाता है और उसको गिना नहीं जाता। महीने की गणना चन्द्रमा के संचरण के आधार पर होती है। इसको चन्द्रमास कहते हैं। एक चन्द्रमास कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तक होता है। सौरमास की गणना का आधार सूर्य का राशि में संचरण होता है। 35 चन्द्रमासों के बाद एक अधिमास होता है। इसको मलमास या लोंद भी कहते हैं। जिस वर्ष मलमास होता है उस साल को लोंद का साल कहते हैं। इस प्रकार विक्रम संवत् का एक साल पूरा होता है।

प्रश्न 2.
चन्द्रमास पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
चन्द्रमास की गणना चन्द्रमा के आधार पर होती है। कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से आरम्भ होकर शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तक एक चन्द्रमास होता है। अंग्रेजी हिसाब से रात 12 बजे के बाद दिन गिना जाता है किन्तु भारतीय पद्धति में सूर्योदय के बाद से ही तिथि आरम्भ होती है। तिथि एक सूर्योदय से शुरू होकर आगामी सूर्योदय तक चलती है। बीच में समाप्त होने पर तिथि का क्षय माना जाता है। पहले चन्द्रमास शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से गिना जाता था अतः पूर्णिमा की तिथि 15वीं तथा अमावस्या की तिथि 30 की मानी जाती है। प्रत्येक पक्ष (शुक्लपक्ष तथा कृष्ण पक्ष) में 15-15 दिन तथा चन्द्रमास में 30 दिन (तिथियाँ) होती हैं।

प्रश्न 3.
हिन्दुओं के व्रत आदि से सम्बन्धित तथा अन्य महत्त्वपूर्ण तिथियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
हिन्दुओं के व्रत आदि से सम्बन्धित तिथियाँ एकादशी, त्रयोदशी (तेरस, प्रदोष) चतुर्थी (चौथ), पञ्चमी (पचइ), तृतीया (तीज), षष्ठी (छट्ट) और पूर्णिमा (पूनों) हैं। कुछ प्रसिद्ध एकादशियाँ भी हैं, जैसे-देवोत्थान (डिठवन या देवठान) कार्तिक सुदी की एकादशी है। भीमसेनी जेठ सुदी तथा हरिशयनी या देवशयनी आषाढ़ सुदी की एकादशियाँ हैं। गणेश चतुर्थी (चौथ) भाद्रपक्ष की कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मनाई जाती है। वसंत पंचमी और नागपंचमी (सावन सुदी पंचमी) भी प्रसिद्ध है। कार्तिक, पूस तथा वैसाख की पूर्णिमाएँ प्रसिद्ध हैं। माघ की पूर्णिमा माघ-स्नान के पर्व के रूप में प्रसिद्ध है।

प्रश्न 4.
‘गाँवों में समय का विभाजन बड़ा बारीक है’-लेखक के इस कथन को स्पष्ट करते हुए उन शब्दों का उल्लेख कीजिए जो समय-विशेष के लिए प्रयुक्त होते हैं?
उत्तर:
लेखक के कथन का तात्पर्य यह है कि गाँवों में समय के छोटे-छोटे हिस्सों को अलग-अलग पहचाना जाता है तथा उनके भिन्न-भिन्न नाम भी हैं। सूर्योदय से एक-डेढ़ घंटे पहले शुक्र उदय होता है। इसको ‘सुकवाउगानी’ कहते हैं। उसके बाद का समय भिनसार कहलाता है। अभी अँधेरा रहता है, चिड़ियाँ बोलने लगती हैं। पूरब में उजास दिखाई देने का समय भोर या प्रभात कहलाती है। फिर आकाश लाल हो उठता है, इसे लाही लगना कहते हैं। इसके बाद सवेरा होता है। सूर्योदय से पूर्व का समय ब्रह्मबेला या ऊषा काल कहलाता है। इसके बाद का समय दिनचढ़ानी’, दुपहरी, खड़ी दुपहरी कहलाता है। दुपहार ढलने पर तिपहरी, तिजहरी या सिपहरी आती है। चौथे पहर को दिन ढलानी बेला कहते हैं। इसमें गोधूलि, साँझ, सूर्यास्त, झटपुटा, ध्वान्त होकर दीपक जल उठते हैं। इसके बाद रात, रात। भीगनी, सूतापड़ानी, दीया गुल करने का समय और आधी रात का समय आता है।

प्रश्न 5.
भारत में कौन-कौन सी ऋतुएँ होती हैं?
उत्तर:
भारत में मूलत: गर्मी, वर्षा और जाड़े का मौसम होता है। प्रत्येक के लिए चार माह का समय निश्चित है। इनको चौमास। या चातुर्मास कहते हैं। फाल्गुन, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ गर्मी के आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन वर्षा के तथा कार्तिक, मागशीर्ष, पौष तथा माघ जाड़े के महीने होते हैं। इसके साथ ही वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त और शिशिर-ये छः ऋतुएँ भी होती हैं। फाल्गुन का जाड़ा गुलाबी तथा गर्मी सुहावनी होती है। चैत्र में ताप बढ़ना शुरू होता है। वैशाख में तपन बढ़ती लू-लपट चलती है। ज्येष्ठ की गर्मी असहनीय होती है। आषाढ़ में उमस बढ़ जाती है। आश्विन (क्वार) की धूप तेज होती है। कार्तिक में रात ठंडी होती है। पौष-माघ में चिल्ला जाड़ा होता है, ठिठुरन बढ़ जाती है, पानी बहुत ठंडा हो जाता है। हवा चुभने लगती है।

विद्यानिवास मिश्र लेखक-परिचय
जीवन-परिचय-

डा. विद्यानिवास मिश्र का जन्म सन् 1926 में गोरखपुर जिले के पकड़डीहा नामक गाँव में हुआ था। इण्टरमीडिएट तक की शिक्षा गोरखपुर में पूरी करके अपने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. किया तथा गोरखपुर वि.वि. से पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। आप गोरखपुर विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहे। बाद में आप कैलीफोर्निया तथा वाशिंगटन विश्वविद्यालयों में प्राध्यापक रहे। भारत लौटने के बाद आप आगरा विश्वविद्यालय के के.एम.मुंशी हिन्दी विद्यापीठ के निदेशक भी रहे। आप आकाशवाणी तथा उत्तर प्रदेश के सूचना विभाग में भी कार्यरत रहे।

आपको भारत सरकार से ‘पद्मश्री’ और ‘पद्म भूषण’ अलंकरण प्राप्त हो चुके हैं। आप राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके हैं।

साहित्यिक परिचय-मिश्र जी हिन्दी के श्रेष्ठ ललित निबन्धकार हैं। आपकी भाषा संस्कृत के तत्सम शब्दों से युक्त, शुद्ध तथा परिमार्जित खड़ी बोली है। उसमें यत्र-तत्र उर्दू तथा भोजपुरी भाषाओं के शब्द भी प्रयुक्त हैं। आपने भावात्मक और विचारात्मक शैलियों में रचना की है। विचार-विवेचनात्मक, समीक्षात्मक और उद्धरण शैलियों का प्रयोग भी आवश्यकतानुसार किया गया है। यत्र-तत्र व्यंग्य विनोद के छींटे भी मिलते हैं।

कृतियाँ-कमल की फूली डाल’, ‘तुम चंदन हम पानी’, ‘चितवन की छाँह’, ‘आँगन का पंछी और बनजारा मन’, ‘बसन्त आ गया पर कोई उत्कंठा नहीं’, ‘मेरे राम का मुकुट भीग रहा है’ आदि आपके निबन्ध-संग्रह हैं। हिन्दी की शब्द-सम्पदा’, साहित्य की चेतना’, ‘पाणिनीय व्याकरण की विश्लेषण पद्धति’ आदि आपकी अन्य रचनायें हैं।

मिश्र जी ने डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी की ललित निबन्ध लेखन परम्परा को आगे बढ़ाया है। भारतीय जीवन-दर्शन, संस्कृति, समाज, परम्पराएँ आदि आपके निबन्धों के विषय रहे हैं।

पाठ-सार

प्रस्तुत ‘काल-चक्र’ शीर्षक निबन्ध डा. विद्यानिवास मिश्र की प्रसिद्ध पुस्तक ‘हिन्दी की शब्द सम्पदा से लिया गया है।

इस निबन्ध में भारतीय काल गणना तथा उसमें सम्बन्धित प्रचलित शब्दों का विस्तृत वर्णन है। भारतीय काल-गणना ब्रह्मा के परार्ध से शुरू होती है। सृष्टि का चक्र ब्रह्मा की अहोरात्र माना जाता है। इस गणना में कल्प, मन्वन्तर, युग आदि सम्मिलित हैं। वर्ष की गणना संवत् में होती है। हिन्दुओं में विक्रम और शक संवत् प्रचलित हैं। मास की गणना चन्द्रमास और सौरमास इन दो आधारों पर होती है। चन्द्रमास कृष्णपक्ष की पड़वा से पूर्णिमा तक गिना जाता है। पहले यह गणना शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक होती थी। अतः अमावस्या को 30वीं तिथि तथा पूर्णिमा को 15वीं तिथि माना जाता है। सौरमास सूर्य के राशि संक्रमण के आधार पर होता है। 35 चन्द्रमासों के बाद लगभग एक अधिमास, मलमास या लोंद आता है। वह वर्ष लोंद का साल कहा जाता है।

दिन 24 घण्टों अथवा 60 घटियों को होता है। घटियों की गणना सूर्योदय से तथा घंटों की रात 12 बजे के बाद से होती है। तिथि सूर्योदय से गिनी जाती है। गाँवों में समय का विभाजन बहुत बारीक है। सूर्योदय से एक घंटे पहले का समय सुकवाउगानी तथा बाद का भिनसार कहलाता है। फिर पूरब में कुछ उजाला होने पर भोर, कुछलालिमा होने पर लाही और उसके बाद का समय ब्रह्म बेला या उष:काल कहलाता है। फिर दिन चढ़ानी, दुपहरी, खड़ी दुपहरी, तिपहरी होकर दिन ढलानी वेला आ जाती है। संध्या समय गोधूलि, गेरुई साँझ, सूर्यास्त, झुटपुटा और ध्वान्त या धुंध होकर आकाश में एकाध तारे दिखाई देने लगते हैं; दीपक जलाये जाते हैं; तब तक एक घड़ी रात हो जाती है। रात गहराने या भीगने लगने पर गाँवों में सोता पड़ जाता है। सूता पड़ानी के बाद दिए गुल होने लगते हैं। अधिकांश ग्रामीण सो जाते हैं। कुछ अलाव तापने चौपाल पर बैठे रहते हैं या प्रधान जी के द्वार पर लालटेन टिमटिमाती रहती है। आधी रात या निशीथ वेला में तंत्रमंत्र और चोरी जगाने वाले ही जागते हैं। सामान्यतः रात 9 बजे तक लोगों के सभी कार्य समाप्त हो जाते हैं।

घंटे मिनटों-सैकण्डों में और घड़ी, पल-विपल में विभाजित होती है। चुटकी बजाते, पलकें भाँजते, लमहे भर में आदि पल या निमिष के पर्याय हैं। विवाह आदि उत्सव सुदिन, शुभदिन तथा मृत्यु की तिथि पुण्य तिथि कही जाती है। अच्छे मुहूर्त को साइत कहते हैं। इसके विपरीत कुसाइत होती है। चार घड़ी का मुहूर्त चौघड़िया कहलाता है। ऋतुचक्र भी महत्त्वपूर्ण है। वर्ष के पहले चार महीने गर्मी, दूसरे चार महीने वर्षा के होते हैं। इनको चौमासा या चातुर्मास भी कहते हैं। अन्तिम चार माह जाड़े के होते हैं। वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त और शिशिर-ये छः ऋतुएँ भी होती हैं। खेती के काम में सूर्य

नक्षत्रों के नाम प्रचलित हैं। रोहिन, मृगशिरा, आर्द्रा आदि नक्षत्रों का कृषि कार्य से सम्बन्ध है। एक नक्षत्र की अवधि 13 या 14 दिन होती है। इनके अतिरिक्त पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वा, उत्तरा, हस्त, चित्रा और स्वाति नक्षत्र भी हैं। महीनों में चेत, जेठ, असाढ़ी, भदवारा, कुआरी और कतिका प्रसिद्ध हैं। फागुन के हल्के जाड़े को गुलाबी और गर्मी को सुहावनी कहते हैं। चैत्र, वैशाख में बढ़कर गर्मी जेठ में तपने लगती है। आषाढ़ से वर्षा के साथ उमस बढ़ जाती है। हवा का चलना बन्द हो जाता है। कुआर की घाम तीखी होती है। कार्तिक की रात ठंडी हो जाती है। पूस-माघ में चिल्ला पड़ता है। ठिठुरन बढ़ जाती हैं। पानी और हवा के साथ रातें अत्यन्त ठंडी हो जाती हैं। बर्फ गिरती है। रातें बड़ी हो जाती हैं। वसन्त और शरत में दिन-रात बराबर होते हैं। सूर्य दक्षिणायन के अन्त तक रात तथा उत्तरायण को अन्त होने तक दिन बढ़ता है। मनुष्य इस कालचक्र के साथ रात के बाद पुन: सबेरा होने की आशा के साथ निरन्तर आगे बढ़ रहा

शब्दार्थ-(पृष्ठ सं. 45) काल = मृत्यु, समय। चिंतन = विचार। उपेक्षा = तिरस्कार। संवतसर = नया साल, नववर्ष। सपाट = सतही। प्रागैतिहासिक = इतिहास से पहले। कुंठित = कम पैने। धारदार = पैना। अहोरात्र = दिन-रात। कला, मन्वन्तर = समय के प्राचीन माप। गणना = गिनती। चौकड़ी = चार चीजों का समूह। चरण = पैर। पक्ष = पन्द्रह दिन का समय। कृष्ण पक्ष = पूर्णिमा के बाद के पन्द्रह दिन। शुक्ल पक्ष = अमावस्या के बाद के पन्द्रह दिन। प्रतिपदा = पड़वा। क्षय = नष्ट होना।

(पृष्ठ सं. 46)
निशीथ = मध्य रात। तिथि = तारीख। हरिशयनी = देव-शयिनी। पर्व = उत्सव। संक्रमण = संचार। वर्षारम्भ = नववर्ष की शुरुआत। उत्तरायण = सूर्य की उत्तर दिशा में स्थिति। सौरमास = सूर्य का महीना। गजर = घंटा। गजर = प्रहर। तिथिविधि = क्रियाकलाप। भिनसार = मुँह अँधेरा। उजास = हल्का उजाला। लाही = आकाश लाल होना। पौ फटना = सबेरा होना। मध्याह्न = दिन का मध्य। पूर्वाह्न = दोपहर से पहले का समय, अँग्रेजी का A.M अपराह्न = दोपहर बाद का समय, PM.। तिपहरी = तीसरा पहर। गोधूलि = शाम को गायों का चरागाह से लौटने का समय। गेरुई = गेरू के रंग की। झुटपुटा = हल्का अंधेरा। ध्वान्त = घना अँधेरा। दीपावली = दिया जलाना। जून = समय। गहराना = घनी होना। अमूमन = प्रायः, अक्सर। सूतापड़ानी = सोने का समय। गुल होना = बुझना। साँय साँय करना = सन्नाटा होना। अलाव = आग। भुकभुकाना = हवा के कारण लौ को हिलना।

(पृष्ठ सं. 47)
वेला = समय। चन्द्रोदय = चन्द्रमा निकलना। रात गिरना = रात होना। व्यापार = काम। घड़ी = दण्ड। संज्ञा = नाम। लमहे= क्षण। निमिष = समय का छोटा माप। साइत = शुभ मुहूर्त। चौमास = चार महीने। पावस = वर्षा। विकार = उच्चारण दोष। तपन = गर्मी। लपट = आग के समान गर्मी। चरम सीमा = सबसे अधिकता की स्थिति। सँवक = गरम होना। उमस = हवा होने से उत्पन्न मर्मी। मेह= वर्षा। बतास = हवा। दुस्सह = असहनीय। घाम = धूप। तीखा = तेज चुभने वाला, चिल्ला जाड़ा, तेज सर्दी। ठिठुरन = तेज सर्दी से शरीर के अंगों में ताप का अभाव। उत्कर्ष = बढ़ना॥

महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ।

1. काल मृत्यू है, पर काल-चक्र जीवन है। हमारे चिंतन में ठहरे हुए काल की इसीलिए बड़ी उपेक्षा है, पर गतिशील काल-चक्र की बड़ी महिमा है। संवत्सर को यज्ञरूप कहा गया है, जीवन को संवत्सर के रूप में देखा गया है, वसंत को यौवन के रूप में और शिशिर को बुढ़ापे के रूप में देखा गया है। हमारा ऐतिहासिक बोध जितना ही सपाट है, प्रागैतिहासिक और ऐतिहासिक ये विभाजन जितने ही कुंठित हैं, उतने ही काल-चक्र के सूक्ष्म विभाजन धारदार॥

(पृष्ठ सं. 45)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा के ‘काल-चक्र’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता डा. विद्या निवास मिश्र हैं।

लेखक ने बताया है कि भारत में समय की गणना बहुत प्राचीन काल से होती रही है। समय को विभिन्न सूक्ष्म खण्डों में विभाजित किया गया है।

व्याख्या-लेखक ने ‘काल’ शब्द को स्पष्ट करते हुए कहा है कि उसका एक अर्थ मृत्यु है तथा दूसरा अर्थ जीवन भी है। समय का चक्र निरन्तर घूमता रहता है। इस घूमने और चलते रहने को ही जीवन कहते हैं। हमारे विचारों में काल का मृत्यु अर्थ ही स्थायित्व पा गया है अतः हम उसकी उपेक्षा करते हैं। निरन्तर चलने वाले समय के चक्र का बड़ा महत्त्व है। संवत्सर को यज्ञ रूप कहते हैं और जीवन को संवत्सर के रूप में देखते हैं। वसन्त को युवावस्था और शिशिर को वृद्धावस्था का प्रतीक माना जाता है। भारत में समय को ऐतिहासिक और ऐतिहासिक से पूर्व नामक काल-खण्डों में बाँटा है। यह विभाजन उतना साफ और स्पष्ट नहीं है जितना हमारा ऐतिहासिक बोध स्पष्ट है। इसके विपरीत काल-चक्र का सूक्ष्म विभाजन अत्यन्त स्पष्ट और पैना है। भारत में समय के भिन्न-भिन्न के लिए। अलग-अलग नाम हैं तथा उनसे ही उनको व्यक्त किया गया है।

विशेष-
(i) ‘काल’ अनेकार्थक शब्द है। लेखक ने बताया है ‘मृत्यु’ अर्थ के अतिरिक्त वह जीवन की गति का सूचक भी है।
(ii) भाषा प्रवाहपूर्ण, साहित्यिक तत्सम प्रधान खड़ी बोली है।
(iii) शैली-विचार-विवेचनात्मक है।

2. मास-गणना भी चंद्रमास और सौरमास दो आधारों पर होती है, चंद्रमास कृष्णपक्ष (बदी) की प्रतिपदा (पडिवा) से शुरू होती है और शुक्लपक्ष (सुदि < शुक्ल दिन, बदि < बहुल दिन) की पूर्णिमा (पूनों) तक गिना जाता है, पहले यह मास शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होकर कृष्णपक्ष की अमावस्या (अमावस, मावस) तक गिना जाता था। इसीलिए पूर्णिमा को 15 तिथि और अमावस्या को 30वीं तिथि कहा जाता है। चंद्रमा के ही संचार के अनुसार तिथि गणना होती है, वैसे दिन एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक ही होता है, जो तिथि सूर्योदय के समय रहती है उसे उदय तिथि कहते हैं, जो तिथि एक सूर्योदय के बाद शुरू होकर दूसरे सूर्योदय के पहले ही समाप्त हो जाती है, उसे क्षय तिथि कहते हैं।

(पृष्ठ सं. 45)
संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित डा. विद्यानिवास मिश्र के निबन्ध ‘काल-चक्र’ से उद्धृत है।

लेखक ने बताया है कि भारत में समय की गणना की पद्धति अलग है। हिन्दुओं में विक्रम संवत् का व्यवहार होता है। इसमें महीने की गणना दो प्रकार से होती है।

व्याख्या-लेखक कहता है कि विक्रम संवत में महीने की गिनती दो आधारों पर होती है। एक है चन्द्रमास तथा दूसरा सौरमास। चन्द्रमास कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होता है। पूर्णिमा के पश्चात् के पन्द्रह दिन कृष्णपक्ष कहलाते हैं। प्रतिपदा अथवा पड़वा इसका पहला दिन होता है। कृष्ण पक्ष को ‘वदि’ भी कहते हैं। इसके बाद शुक्लपक्ष आता है। यह अमावस्या के बाद पन्द्रह दिनों का होता है। इस तरह पूर्णिमा तक चन्द्रमास होता है। पहले इस महीने को अमावस्या के बाद की पड़वा शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से आरम्भ होकर अमावस्या तक गिना जाता था। अत: पूर्णिमा की तिथि 15 तथा अमावस्या की 30 होती है। चन्द्रमा के संचार के अनुसार तिथि गिनी जाती हैं। एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय के पहले तक एक दिन माना जाता है। सूर्योदय के समय जो तिथि होती है, उसे उदय तिथि कहते हैं। सूर्योदय के बाद आरम्भ होकर दूसरे सूर्योदय से पहले जो तिथि समाप्त हो जाती है, उसको क्षय तिथि कहते हैं।

विशेष-
(i) डा. मिश्र ने विक्रम संवत की मास-गणना की विस्तृत विवेचन किया है।
(ii) भाषा विषयानुकूल तथा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
(iii) शैली विवेचनात्मक है।

3. गाँवों में समय का विभाजन बड़ा बारीक है। सूर्योदय के लगभग एक-डेढ़ घण्टे पहले से आकाश की गतिविधि देखकर समय का विभाजन किया गया है, सबसे पहले सुकवा (शुक्रतारा) उगता है, वह समये सुकवाउगानी कहा जाता है, उसके बाद भिनसार हो जाता है, अभी मुँह-अँधेरा बना रहता है, चिड़ियाँ बोलने लगती हैं, फिर पूरब की ओर कुछ उजास दिखने लगती है और तब भोर हो जाती है, प्रभात या उजेला हो जाता है, इसके बाद लाही लगती है(लाली की आभा दीखती है, सवेरा हुआ, प्रत्यूषवेला आ गयी, तब पौ फटती है, सुबह हो जाती है, सूर्योदय हो जाता है, सवेरे से पहले तड़के सुबह कहा जाता है और सूर्योदय से पूर्व की वेला को ब्रह्मवेला या उष:काल कहा जाता है।

(पृष्ठ सं. 46)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘काल-चक्र’ शीर्षक निबन्ध से उधृत है। इसके रचयिता डा.विद्यानिवास मिश्र हैं।

डा. मिश्र ने समयसूचक विभिन्न शब्दों का परिचय दिया है। दिन अंग्रेजी गणना के अनुसार रात 12 बजे के बाद शुरू होता है और उसकी गिनती घंटों में होती है। भारतीय पद्धति के अनुसार दिन में 60 घडियाँ (घटी) होती हैं। उसकी गणना सूर्योदय से होती है॥ व्याख्या-लेखक कहते हैं कि भारत के गाँवों में समय को छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँटा गया है। सूरज निकलने से भी एक-डेढ़ घंटा पहले आकाश में होने वाले परिवर्तनों को देखकर उसके अनुसार समय विभाजन किया गया है। सबसे पहले सुकवाउगावनी का समय होता है। आकाश में पहले शुक्रतारा उगता है। वह समय सुकवाउगानी कहलाता है। इसके बादं का समय भिनसार कहलाता है। उस समय हल्का अँधेरा रहता है और चिड़ियाँ बोलने लगती हैं। उसके पश्चात् पूर्व दिशा में कुछ उजाला दिखाई देने लगता है। इसको भोर या प्रभात कहते हैं। अब प्रकाश हो जाता है। इसके बाद आकाश लाल हो जाता है। इसे लाही लगना कहा जाता है। अब सबेरा हो जाता है। प्रत्यूष बेला आ जाती है। इसे पौ फटना भी कहते हैं। सुबह हो जाती है, सूर्य उदय हो जाता है। सबेरा होने से पहले का समय तड़के सुबह कहा जाता है तथा सूर्योदय से पहले का समय ब्रह्मवेला अथवा उष:काल कहा जाता है।

विशेष-
(i) भाषा तत्सम शब्दावली युक्त साहित्यिक हिन्दी है, जिसमें देशज शब्दों का यथास्थान समावेश हुआ है।
(ii) शैली वर्णनात्मक तथा विवरणात्मक है।
(ii) सूर्योदय से पूर्व से सूर्योदय होने तक का समय का वर्णन है। इसको गाँवों में किन-किन नामों से बुलाते हैं, यह भी बताया गया

4. रात क्रमशः गहराती चली जाती है; दूसरे शब्दों में रात भीगने लगती है। पहले पहर के बाद अमूमन गाँवों में सोता पड़ जाता है। सूतापड़ानी के जून के बाद दीये गुल होने लगते हैं, रात साँय-साँय करने लगती है, एकाध लोग चौपाल पर अलाव तापने जमे रहते हैं या प्रधान जी के दरवाजे पर लालटेन भुकभुकाती रहती है। आधी रात या निशीथ बेला का बोध तंत्रमंत्र और चोरी जगाने वालों का ही अधिक होता है।

(पृष्ठ सं. 46)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-उपर्युक्त गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘काल-चक्र’ शीर्षक निबन्ध से उद्धृत है। इसके रचयिता डा. विद्यानिवास मिश्र हैं।
डा. मिश्र ने बताया है कि गाँवों में समय को छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँटा गया है तथा उनको अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। सबेरे तथा दोपहर के समय के बारे में बताने के पश्चात् लेखक ने रात के बारे में बताया है।

व्याख्या-लेखक कहते हैं कि धीरे-धीरे रात घनी और गहरी होती जाती है। इसको कहते हैं रात भीगने लगी है। पहले पहर की रात बीतने तक गाँवों में लोग प्रायः सो जाते हैं। इसको सूतापड़ानी कहते हैं। सूतापड़ानी की बेला के बाद घरों में दीपक बुझने लगते हैं। अंधेरा होने और लोगों के सो जाने पर रात साँय-साँय करने लगती है अर्थात् चारों ओर सन्नाटा हो जाता है। केवल कुछ लोग जागते रहते हैं। ये वे लोग होते हैं जो चौपाल पर आग जलाकर तापते हैं। प्रकाश के नाम पर ग्राम-प्रधान के घर के सामने लालटेन टिमटिमाती रहती है। आधी रात जिसको निशीथ कहते हैं, का पता उन लोगों को ही रहता है जो जागकर तंत्रमंत्र साधते हैं अथवा चोरों से रक्षा के लिए जागकर लोगों को सावधान करते रहते हैं।

विशेष-
(i) रात शुरू होने से आधी रात होने तक का वर्णन लेखक ने किया है।
(ii) आजकल गाँवों में भी बिजली का प्रकाश उपलब्ध होने और आवागमन के साधन होने के कारण ऐसा दृश्य दिखाई नहीं देता।
(iii) भाषा प्रवाहमयी, विषयानुकूल तत्सम प्रधान खड़ी बोली है॥
(iv) शैली वर्णन-विवरणात्मक है।

5. जाड़े और तपन के सापेक्ष बोध भी प्रखर हैं। फागुन का जाड़ा गुलाबी जाड़ा है, गर्मी सुहावनी है, चैत्र में चिनचिनाहट शुरू होती है, वैसाख में तपन बढ़ जाती है और लपट पड़ने लगती है। जेठ में सूर्य वृष के हो जाते हैं, तब ताप चरम सीमा को पहुँच जाता है, रातें भी हँवक उठती हैं और आषाढ़ से बारिश के बाद उमस होने लगती है। मेह पड़ने के पहले बतास के गुम होने पर ये उमस दुस्सह हो जाती है। कुआर में घाम बड़ा तीखा और विषगर्भ हो जाता है। कार्तिक से रात सियराने लगती है, पूस और माघ में चिल्ला जाड़ा पड़ता है और ठिठुरन होने लगती है, पानी जमता-सा लगता है और नदी का जल भी काटता-सा लगता है। हवा छेदने लगती है। रातें बड़ी हो जाती हैं। दिन-रात बराबर वसन्त और शरत सम्पात के दिन होते हैं। रात का उत्कर्ष दक्षिणायन के अन्त तक और दिन का उत्तरायण के अन्त तक होता है।

(पृष्ठ सं. 47)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘काल-चक्र’ शीर्षक निबन्ध से उद्धृत है। यह डा. विद्या निवास मिश्र द्वारा रचित एक ललित निबन्ध है।

लेखक ने समय के विविध स्वरूपों का सुन्दर वर्णन किया है। दिन और रात के वर्णन के उपरान्त लेखक ने वर्ष में आने वाली विभिन्न ऋतुओं का भी सुन्दर चित्रण किया है।

व्याख्या-लेखक बता रहे हैं कि सर्दी में तथा गर्मी में ठंडक और ताप का बोध होता है। इसको लोकभाषा में अलग-अलग शब्दों में व्यक्त किया जाता है। फागुन में जो हल्की सर्दी पड़ती है, उसको गुलाबी जाड़ा कहते हैं। उसके बाद की शुरुआती गर्मी को सुहावनी गर्मी कहा जाता है। फागुन के बाद के चैत्र के महीने में गर्मी की तपन बढ़ती है तो उसे चिनचिनाहट कहते हैं। वैसाख के महीने में ताप और अधिक बढ़ता है और आग की लपटों जैसी गर्मी अनुभव होती है। जेठ के महीने में सूर्य वृष का होने पर गर्मी बहुत अधिक बढ़ जाती है। रातें भी गरमाने लगती हैं। इसके बाद वर्षा ऋतु का पहला महीना आषाढ़ आता है तो वर्षा होने से वातावरण में उमस बढ़ जाती है। बरसात होने से पहले हवा का चलना बन्द हो जाने से यह उमस असहनीय हो जाती है। क्वार अर्थात् आश्विन के महीने में धूप तेज और चुभने वाली हो जाती है। सर्दी के महीने कार्तिक से रात ठंडी होने लगती है। पूष और माष के महीनों में सर्दी तेज हो जाती है, इसको चिल्ला जाड़ा कहते हैं। हाथ-पैर ठंड की अधिकता के कारण ठिठुरने लगते हैं। पानी जमाव बिन्दु तक पहुँच जाता है। नदी का पानी छूने पर ऐसा लगता है जैसे काट लेगा। अत्यन्त ठंडा होने के कारण हवा शरीर में चुभने लगती है। रातें बड़ी हो जाती हैं। बसन्त और शरद आने पर दिन और रात बराबर हो जाते हैं। सूर्य के दक्षिणायन होने के अन्त तक रात और उत्तरायण होने के अन्त तक दिन बड़े रहते हैं।

विशेष-
(i) भाषा प्रवाहपूर्ण, तत्सम शब्दावली तथा देशज शब्दों से युक्त खड़ी बोली है।
(ii) शैली वर्णनात्मक-विवेचनात्मक है।
(iii) छः ऋतुओं का वर्णन किया गया है।
(iv) अँग्रेजी महीनों के अनुसार सितम्बर तथा मार्च में दिन और रात बराबर होने हैं।

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