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RBSE Class 11 Hindi रचना निबन्ध लेखन

June 19, 2019 by Safia Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi रचना निबन्ध लेखन

रचना निबन्ध-लेखन
निबंध अंग्रेजी शब्द Essay (ऐस्से) का हिन्दी पर्याय है। निबंध शब्द का अर्थ है—अच्छी प्रकार से बँधा हुआ अर्थात् वह गद्य-रचना जिसमें किसी विषय का सीमित आकार के भीतर निजीपन, स्वच्छता, सौष्ठव, सजीवता और आवश्यक संगति से प्रतिपादन या वर्णन किया जाता है। शब्दों का चयन, वाक्यों की संरचना, अनुच्छेद की। निर्माण, विचार एवं कल्पना की एकसूत्रता, भावों की क्रमबद्धता आदि सब कुछ निबंध का शरीर निर्मित करते हैं। भाषा की सरलता, स्पष्टता, विषयानुकूलता निबंध के शरीर को सजाने में अपना योगदान देती है।

अच्छे निबन्ध की विशेषताएँ

  1. निबंध में विषय का वर्णन आवश्यक संगति तथा सम्बद्धती से किया गया हो।
  2. निबंध में मौलिकता, सरसता, स्पष्टता और सजीवता होनी चाहिए।
  3. निबंध की भाषा सरल, प्रभावशाली तथा व्याकरणसम्मत होनी चाहिए।
  4. निबंध संकेत बिन्दुओं के आधार पर अनुच्छेदों में लिखा जाना चाहिए।
  5. निबंध लेखन से पूर्व रूपरेखा तय कर लेनी चाहिए।
  6. निबंध निश्चित शब्द-सीमा में ही लिखा जाना चाहिए।
  7. निबंध-लेखन में उद्धरणों, सूक्तियों, मुहावरों, लोकोक्तियों एवं काव्य पंक्तियों का आवश्यकतानुसार यथास्थान प्रयोग किया जाना चाहिए।

निबंध के अंग-निबंध को लिखते समय उसकी विषय-वस्तु को सामान्य रूप से निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है।

  1. आरम्भ-निबंध का प्रारम्भ जितना आकर्षक और प्रभावशाली होगा निबंध उतना ही अच्छा माना जाता है। निबंध का प्रारम्भ किसी सूक्ति, काव्य पंक्ति और विषय की प्रकृति को ध्यान में रखकर भूमिका के आधार पर किया जाना चाहिए।
  2. मध्य-इस भाग में निबंध के विषय को स्पष्ट किया जाता है। लेखक को भूमिका के आधार पर अपने विचारों और तथ्यों को रोचक ढंग से अनुच्छेदों में बाँट कर प्रस्तुत करते हुए चलना चाहिए या उप शीर्षकों में विभक्त कर मूल विषय-वस्तु का ही विवेचन करते हुए चलना चाहिए। ध्यान रहे सभी उपशीर्षक निबंध-विकास की दृष्टि । से एक-दूसरे से जुड़े हों और विषय से सम्बद्ध हों।
  3. अंत-प्रारम्भ की भाँति निबंध का अन्त भी अत्यन्त प्रभावशाली होना चाहिए। अंत अर्थात् उपसंहार एक प्रकार से सारे निबंध का निचोड़ होता है। इसमें अपनी सम्मति भी दी जा सकती है।

महत्त्वपूर्ण निबन्ध
1. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ
संकेत बिन्दु-

1. प्रस्तावना
2. वर्तमान में समाज की बदली मानसिकता
3. लिंगानुपात में बढ़ता अन्तर
4. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान एवं उद्देश्य
5. उपसंहार।।

1. प्रस्तावना-विधाता की इस अनोखी सृष्टि में नर और नारी जीवन रथ के दो ऐसे पहिए हैं, जो दाम्पत्य बंधन में बंधकर सृष्टि-प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हैं। परन्तु वर्तमान काल में अनेक कारणों से लिंग-भेद का घृणित रूप सामने आ रहा है जो कि पुरुष सत्तात्मक समाज में कन्या-भ्रूण हत्या का पर्याय बनकर बालकबालिका के समान अनुपात को बिगाड़ रहा है। जिसके कारण आज बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसी समस्या का नारा देना हमारे लिए शोचनीय है।’यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते । रमन्ते तत्र देवता’ ऐसी श्रेष्ठ परम्परा वाले देश के लिए यह नारा कलंक है।

2. वर्तमान में समाज की बदली मानसिकता-वर्तमान में मध्यमवर्गीय समाज बेटी को पराया धन और पुत्र को कुल परम्परा को बढ़ाने वाला तथा वृद्धावस्था का सहारा मानता है। इसलिए बेटी को पालना-पोसना, पढ़ाना-लिखाना, उसकी शादी में दहेज देना आदि को बेवजह का भार ही मानता है। इस दृष्टि से कुछ स्वार्थी। सोच वाले कन्या-जन्म को ही नहीं चाहते। इसलिए वे चिकित्सिकीय साधनों के द्वारा गर्भावस्था में ही लिंग-परीक्षण करवाकर कन्या-जन्म को रोक देते हैं। परिणामस्वरूप जनसंख्या में बालक-बालिकाओं के अनुपात में अन्तर स्पष्ट रूप से परिलक्षित होने लगा है जो भावी दाम्पत्य-जीवन के लिए एक बहुत बड़ी बाधा बन रहा है।

3. लिंगानुपात में बढ़ता अन्तर–आज के समाज की बदली मानसिकता के कारण लिंगानुपात में अन्तर लगातार बढ़ता ही जा रहा है। विभिन्न दशकों में हुई जनगणना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। सन् 2011 की जनगणना के आधार पर बालक
और बालिकाओं को अनुपात एक हजार में लगभग 918 तक पहुँच गया है। इस लिंगानुपात के बढ़ते. अन्तर को देखकर भविष्य में वैवाहिक जीवन में आने वाली कठिनाइयों के प्रति समाज की ही नहीं सरकार की भी चिन्ता बढ़ गयी है। इस चिन्ता से ही मुक्त होने की दिशा में सरकार ने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा दिया है।

4. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान एवं उद्देश्य-‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान के सम्बन्ध में हमारे राष्ट्रपति ने सबसे पहले दोनों सदनों को संयुक्त अधिवेशन के समय जून, 2014 को सम्बोधित किया जिसमें इस आवश्यकता पर बल दिया गया है कि ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’, उनका संरक्षण और सशक्तीकरण किया जाए। इसके बाद यह निश्चय किया गया कि महिला एवं बाल विकास विभाग इस अभियान के अन्य मन्त्रालयों के सहयोग से आगे बढ़ायेगा। इस अभियान के अन्तर्गत लिंग-परीक्षण के आधार पर बालिका भ्रूण-हत्याओं को रोकने के साथ बालिकाओं को पूर्ण संरक्षण तथा उनके विकास के लिए शिक्षा से सम्बन्धित उनकी सभी गतिविधियों में पूर्ण भागीदारी रहेगी। उनको शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार एवं कौशल विकास के कार्यक्रमों में मीडिया के माध्यम से हर तरह से प्रोत्साहित किया जायेगा। संविधान के माध्यम से लिंगाधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जायेगा। साथ ही लिंग परीक्षण प्रतिबन्धित होगा।

5. उपसंहार ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान आज हमारे देश के सामने एक बहुत बड़ी सामाजिक समस्या के रूप में आकर खड़ा हो गया है। इसके लिए सरकार को ही नहीं हम सबको सामाजिक दृष्टि से जागरूक होना होगा। इसके लिए हमें रूढ़िवादी सोच का परित्याग करना चाहिए। ईश्वर के प्रति आस्था व्यक्त करते हुए, सन्तान उसी की देन है और लड़का-लड़की एक समान हैं, हम किसी के भी भाग्य-विधाता नहीं हैं। ईश्वर द्वारा ही सब कुछ निर्धारित होता है, इसलिए ईश्वर ही कर्ता है, हम नहीं। इस प्रकार की परिवर्तित सोच से ही बिगड़ते लिंगानुपात में सुधार होगा और बेटियों को समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त होगा। हम समझ जायेंगे कि बेटी घर का भार नहीं, घर की रोशनी ही होती है।

2. राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान
अथवा
स्वच्छ भारत मिशन/अभियान संकेत बिन्दु-

1. प्रस्तावना
2. स्वच्छता अभियान का उद्देश्य
3. स्वच्छता अभियान का व्यापक क्षेत्र
4. स्वच्छता अभियान से लाभ
5. उपसंहार।।

1. प्रस्तावना-राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने स्वतन्त्रता आन्दोलन चलाकर देश को गुलामी से मुक्त कराया, परन्तु ‘क्लीन इण्डिया’ का उनका सपना पूरा नहीं हुआ। विश्व स्वास्थ्य संगठन की दृष्टि में भी भारत में स्वच्छता की कमी है। इन्हीं बातों का चिन्तन कर और देश की यथार्थ स्थिति देखकर प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान को औपचारिक शुभारम्भ 2 अक्टूबर, 2014 को गाँधी जयन्ती के अवसर पर किया। इस अभियान से सारे देश में सफाई एवं स्वच्छता के प्रति जागरूकता लाने, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों को गन्दगी से मुक्त करने का सन्देश दिया गया है।

2. स्वच्छता अभियान का उद्देश्य हमारे देश में नगरों के आसपास की कच्ची बस्तियों में, गांवों एवं ढाणियों में शौचालय नहीं हैं। विद्यालयों में भी पेयजल एवं शौचालयों का अभाव है। इससे खुले में शौच करने से गन्दगी बढ़ती है तथा पेयजल के साथ ही वातावरण भी दूषित होता है। गन्दगी के कारण स्वास्थ्य खराब रहता है और अनेक बीमारियाँ फैलती रहती हैं। वर्तमान में देश में लगभग सवा ग्यारह करोड़ शौचालयों की जरूरत है। एक सर्वेक्षण के अनुसार 156 लाख विद्यालयों में शौचालय नहीं हैं। अतः स्वच्छता अभियान का पहला उद्देश्य शौचालयों का निर्माण करना तथा स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था करना है। इस तरह देश को गन्दगी से मुक्त कराना इस अभियान का मुख्य लक्ष्य है।

3. स्वच्छता अभियान का व्यापक क्षेत्र–भारत सरकार ने इस अभियान को आर्थिक स्थिति से जोड़ा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में गन्दगी के कारण प्रत्येक नागरिक को बीमारियों पर औसतन सालाना बारह-तेरह हजार रुपये खर्च करना पड़ता है। यह आँकड़ा गरीब परिवारों का बताया गया है। यदि स्वच्छता रहेगी, तो बीमारियों के कारण अनावश्यक आर्थिक बोझ भी नहीं बढ़ेगा । इस दृष्टि से सरकार द्वारा शौचालय निर्माण के लिए प्रोत्साहन राशि के रूप में बारह हजार रुपये दिये जा रहे हैं। साथ ही स्वच्छ पेयजल, शिशु-मल निस्तारण, कूड़ाकचरा एवं गन्दा जल निवारण तथा विद्यालयों में शौचालयों के साथ ही साबुन के प्रयोग पर जोर दिया गया है।

स्वच्छता अभियान प्रारम्भ होने के बाद अब तक साठ करोड़ रुपये इस कार्य पर खर्च किये गये हैं। अभी तक विद्यालयों में साठ हजार शौचालय बन गये हैं। ग्रामीण एवं पिछड़े क्षेत्रों में स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था पर जोर दिया जा रहा है। गंगा-यमुना नंदियों की स्वच्छता का अभियान चलाया जा रहा है। इस कार्य में सभी प्रदेशों की सरकारों द्वारा सहयोग किया जा रहा है। प्रधानमन्त्रीजी के आमन्त्रण पर स्वच्छता के लिए प्रतिबद्ध लोगों में काफी उत्साह दिखाई दे रहा है।

4. स्वच्छता अभियान से लाभ-राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान से सबसे बड़ा । लाभ स्वास्थ्य के क्षेत्र में रहेगा। आमजनों को बीमारियों से मुक्ति मिलेगी, दवाओं पर व्यर्थ-व्यय नहीं करना पड़ेगा। सारा भारत स्वच्छ हो जायेगा, तो विदेशों में स्वच्छ भारत की छवि उभरेगी। प्रदूषण का स्तर एकदम घट जायेगा और ‘जल-मल के उचित निस्तारण से पेयजल भी शुद्ध बना रहेगा। गंगा-यमुना का जल अमृत-जैसा पवित्र बन जायेगा और सिंचित कृषि-उपजों में भी स्वच्छता बनी रहेगी। स्वच्छता अभियान से देश का पर्यावरण हर दिशा में स्वच्छ एवं प्रदूषण मुक्त हो जायेगा।

5. उपसंहार-राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान अभी प्रारम्भिक चरण में है। इसे गाँधीजी की 150वीं जयन्ती तक चलाकर देश को स्वच्छ रूप में प्रस्तुत करना है। सरकार के इस अभियान में जनता का सक्रिय सहयोग नितान्त अपेक्षित है। अभी तक इसके प्रारम्भिक परिणाम अच्छे दिखाई दे रहे हैं, आगे भी सफलता-प्राप्ति को लेकर सभी आशान्वित हैं।

3. शिक्षा का अधिकार
अथवा
अनिवार्य बाल-शिक्षा अधिकार संकेत बिन्द-

1. प्रस्तावना
2. शिक्षा का संवैधानिक अधिकार
3. अनिवार्य बाल-शिक्षा अधिकार का स्वरूप
4. शिक्षा के अधिकार-अधिनियम से लाभ
5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना शिक्षा का उद्देश्य शिक्षार्थी को सुयोग्य बनाना, उसकी ज्ञानवृद्धि तथा मानवीय मूल्यों का विकास करना है। सभ्य नागरिक बनना, समाजोपयोगी और सोद्देश्य जीवन-निर्वाह की क्षमता पैदा करना तथा व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर एक युवा को सामाजिक बनाने की प्रक्रिया का नाम शिक्षा है। ‘सामाजिक विज्ञान विश्वकोश’ के अनुसार एक वयस्क हो रहे बालक को समाज में प्रवेश करने योग्य बनाने की प्रक्रिया’ को ही शिक्षा कहते हैं। लोकतन्त्र में सुनागरिकों का निर्माण शिक्षा-प्रसार से ही हो सकता है। इसी कारण भारतीय संविधान में शिक्षा को मौलिक अधिकार माना गया है।

2. शिक्षा का संवैधानिक अधिकार–स्वतन्त्रता-प्राप्ति के साथ ही हमारे संविधान के नीति-निर्देशों में यह निश्चय किया गया कि आगामी दस वर्षों में बच्चों के लिए अनिवार्य एवं नि:शुल्क प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था होगी। परन्तु यह व्यवस्था दस वर्षों में पूरी नहीं हो सकी और इसे लागू करने में पूरे साठ साल लग गये। इस तरह संविधान के छियासीवें संशोधन से निःशुल्क और अनिवार्य बाल-शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 1 अप्रैल, 2010 से पूरे भारत में लागू हुआ है। इससे सभी बालकों को, विशेषकर वंचित व अल्पसंख्यक वर्ग के बालकों को शिक्षा प्राप्त करने का बुनियादी अधिकार प्राप्त हुआ है।

3. अनिवार्य बाल-शिक्षा अधिकार का स्वरूप-भारत सरकार द्वारा जारी निःशुल्क और अनिवार्य बाल-शिक्षा का अधिकार-अधिनियम में यह व्यवस्था है कि प्रारम्भिक कक्षा से आठवीं कक्षा तक अर्थात् चौदह वर्ष तक के प्रत्येक बालक को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्राप्ति का अधिकार होगा। बालिकाओं, अल्पसंख्यकों तथा वंचित वर्ग के बालकों को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जायेगी। केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारें समस्त व्यय वहन करेंगी। किसी विद्यालय में प्रविष्ट बालकबालिका को कक्षा आठ तक किसी भी कारण फेल नहीं किया जायेगा, उसे अगली कक्षा में प्रोन्नत किया जायेगा और प्रारम्भिक शिक्षा पूरी किये बिना विद्यालय से निष्कासित भी नहीं किया जायेगा। राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग के अधिनियमों के अनुसार बालकों के समस्त अधिकारों को संरक्षण दिया जायेगा।

4. शिक्षा के अधिकार-अधिनियम से लाभ-निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा के अधिकार-अधिनियम से समाज को अनेक लाभ हैं। इससे प्रत्येक बालक को प्रारम्भिक शिक्षा निःशुल्क रही है। अल्पसंख्यकों एवं वंचित वर्ग के बालकों को पूरा प्रोत्साहन मिल रहा है। समाज में साक्षरता का प्रतिशत बढ़ रहा है। शिक्षा । परीक्षोन्मुखी न होकर बुनियादी बनती जा रही है। इससे सभी बालकों के व्यक्तित्व का उचित विकास होगा तथा पिछड़े वर्ग के लोगों का जीवन-स्तर सुधर सकेगा। अब इस अधिनियम के द्वारा सामाजिक उत्तरदायित्व का समुचित निर्वाह हो रहा है।

5. उपसंहार-गाँधीजी की बुनियादी शिक्षा को मॉडल मानकर सरकार ने शिक्षा के अधिकार अधिनियम को लागू किया है। इससे शिक्षित एवं संस्कारशील समाज का निर्माण हो सकेगा और देश में साक्षरता की प्रतिशत भी बढ़ेगा। वस्तुतः उक्त अधिनियम के द्वारा सभी बालकों के लिए ज्ञान-मन्दिर के द्वार खुल गये हैं।

4. नारी-सुरक्षा की महती आवश्यकता
अथवा
महिलाओं में बढ़ती असुरक्षा संकेत बिन्दु-

1. प्रस्तावना
2. नारी-समाज का शोषण-उत्पीड़न
3. यौनाचार उत्पीड़न की भयानकता
4. नारी-सुरक्षा की महती आवश्यकता
5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-वर्तमान में भारत में नारी-शिक्षा का काफी प्रसार हुआ है। इससे नारियाँ डॉक्टर, शिक्षिका, अधिकारी, उद्यमी आदि अनेक क्षेत्रों में कार्यरत हैं राजनीतिक एवं समाज-सेवा के क्षेत्र में भी नारियों की पर्याप्त सहभागिता है। तथा विविध-क्षेत्रों में नारियों को रोजगार में संरक्षण मिल रहा है। इतना सब कुछ होने पर भी वर्तमान में नारियाँ असुरक्षित हैं, उनका उत्पीड़न-शोषण हो रहा है। तथा दुराचारी लोगों के अमानवीय आचरण से नारियों का जीवन खतरे में पड़ गया

2. नारी-समाज का शोषण-उत्पीड़न–समाज में कुछ असभ्य लोग नारियों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं तथा उनके साथ जोर-जबर्दस्ती करते हैं। सरेआम नारियों के पर्स छीनना, गले की चैन झपटना, युवतियों से छेड़खानी करना, उनका यौनशोषण करना आदि अनेक कुकृत्य अब आम बात हो गई है। अब तो नाबालिग बालिकाओं और स्कूल-कॉलेज जाने वाली युवतियों का अपहरण कर सामूहिक बलात्कार करना तथा साक्ष्य मिटाने के लिए उन्हें मार डालना या मुँह बन्द रखने के लिए डरानाधमकाना, दुराचार का प्रस्ताव न मानने पर तेजाब डालकर हमला करना इत्यादि अपराधी क्रूर प्रवृत्ति उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। आये दिन ऐसे पाशविक कुकृत्यों की घटनाएँ देखने-सुनने को मिल रही हैं। इस तरह के शोषण-उत्पीड़न से नारीसमाज में असुरक्षा की समस्या भयानक रूप में उभर रही है।

3. यौनाचार उत्पीड़न की भयानकता-दिसम्बर, 2012 में दिल्ली में एक युवती के साथ पाँच युवकों ने दुराचार किया, उसके साथ पशुओं के समान हिंसक आचरण किया। वह युवती निर्भया बन उनका यथाशक्ति विरोध करती रही, मरणासन्न दशा में उसका उपचार भी किया गया, परन्तु उसे बचाया नहीं जा सका। इस घटना से जनमानस ने जबर्दस्त आक्रोश व्यक्त किया। फलस्वरूप भारत सरकार ने फरवरी, 2013 में निर्भया फौजदारी कानून (संशोधन) एक्ट के रूप में : बलात्कार एवं नारी यौन-शोषण को लेकर कठोर कानून बनाया। इस कानून की विभिन्न धाराओं में महिलाओं पर एसिड हमला, यौन उत्पीड़न, दुर्व्यवहार तथा बलात्कार को जघन्य अपराध घोषित कर कठोर कारावास एवं मृत्युदण्ड का प्रावधान किया गया है। इससे महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तीकरण को प्राथमिकता दी जा रही है।

4. नारी-सुरक्षा की महती आवश्यकता–’निर्भया एक्ट’ बन जाने से महिलाओं या युवतियों के साथ यौनाचार के दोषियों को मृत्युदण्ड दिया जा रहा है, फिर भी कुछ क्षेत्रों में अबोध-नाबालिग लड़कियों के अपहरण, बलात्कार और फिर उनकी हत्या के मामले सामने आ रहे हैं। एसिड हमले भी हो रहे हैं तथा मोबाइल वीडियो से उन्हें बदनाम या ब्लेकमेल भी किया जा रहा है। अतः ऐसे दुराचारी लोगों को कठोरसे-कठोर दण्ड दिया जाना जरूरी है। नारी-सुरक्षा की महती आवश्यकता को ध्यान में रखकर सामाजिक दृष्टिकोण में सुधार नितान्त अपेक्षित है।

5. उपसंहार–प्रशासन स्तर पर बालिकाओं की सुरक्षा तथा महिलाओं के सशक्तीकरण को प्राथमिकता दी जा रही है। ‘निर्भया फण्ड’ से बलात्कार पीड़ितशोषित युवतियों की सहायता की जा रही है। इस जघन्य अपराध से समाज को मुक्त करने तथा नारियों में असुरक्षा का भय दूर करने की जरूरत है। अतः शासन एवं जनता के सहयोग से ही नारी समाज को उत्पीड़न से बचाया जा सकता है।

5. खाद्य-पदार्थों में मिलावट और भारतीय समाज
अथवा
मिलावटी माल का बढ़ता कारोबार संकेत बिन्दु-

1. प्रस्तावना
2. खाद्य-पदार्थों में मिलावट : एक समस्या
3. मिलावटी माल पर नियन्त्रण
4. मिलावटी कारोबार का दुष्प्रभाव
5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना–वर्तमान काल में धनार्जन की होड़ एवं नैतिकता का पतनइन दोनों कारणों से मिलावटी माल बनाने-बेचने का कारोबार असीमित बढ़ रहा है। खाद्य-पदार्थों में मिलावट के नये-नये तरीके अपनाये जा रहे हैं और इससे जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। यद्यपि मिलावट करना और ऐसे माल की आपूर्ति-विक्रय करना कानूनी दृष्टि से अपराध है, समाज की नैतिकता एवं मूल्यों का पतन है, फिर भी चोरी-छिपे यह दूषित धन्धा खूब चल रहा है।

2, खाद्य-पदार्थों में मिलावट : एक समस्या-खाद्य-पदार्थों में मिलावट करना आज आम बात हो गई है। घी, तेल, पनीर, दूध में मिलावट या नकली माल बनाने का धन्धा जगह-जगह चोरी-छिपे चल रहा है। दाल, चावल, गेहूँ में पत्थर-कंकड़ मिलाये जाते हैं। पिसी हुई मिर्च, हल्दी, धनिया तथा मसालों में खूब मिलावट की जाती है। चाय की पत्तियाँ, बेसन, तरल पेय-पदार्थों तथा डिब्बा-बन्द रसदार चीजों में कितनी मिलावट हो रही है, इसका पता नहीं चल पाता है। बड़ी कम्पनियों के उत्पाद . पानी की बोतलों में भी कितनी शुद्धता है, यह आये दिन देखने-सुनने को मिल जाता है। मिठाइयों का सारा व्यापार मिलावट से अटा पड़ा है, उसमें शुद्धता की आशा करना अपने आपको धोखा देना है। इस तरह मिलावटखोरी का धन्धा उत्तरोत्तर बढ़ रहा है, जो कि भारतीय समाज के लिए समस्या बन गया है।

3. मिलावटी माल पर नियन्त्रण–सरकार ने खाद्य-पदार्थों तथा अन्य सभी चीजों में मिलावट करना कानूनी अपराध घोषित कर रखा है। इसके नियन्त्रण के लिए भी प्रभावी व्यवस्था कर रखी है। दवाओं की शुद्धता की जाँच के लिए दवा निरीक्षक से लेकर प्रयोगशाला तक की व्यवस्था है। खाद्य-पदार्थों में मिलावट रोकने के लिए खाद्य-निरीक्षक, स्वास्थ्य निरीक्षक तथा अन्य बड़े प्रशासनिक अधिकारियों को पूरे अधिकार दे रखे हैं। ये सभी अधिकारी कभी-कभी तीज-त्योहारों पर जाँच-पड़ताल करते हैं, छापे मारते हैं तथा अशुद्ध खाद्य-पदार्थों के नमूने लेकर प्रयोगशाला में भेजते हैं अथवा न्यायालय में मुकदमा या चालान कर देते हैं। इसके लिए कोई कठोर कानून नहीं है, आजीवन कारावास आदि जैसा कठोर दण्ड-विधान भी नहीं है। सामान्यतः जुर्माना किया जाता है या कुछ ले-देकर मामला शान्त हो जाता है। फलस्वरूप इस मिलावटी कारोबार पर कठोरता से और पूरी तरह नियन्त्रण नहीं हो रही है।

4. मिलावटी कारोबार का दुष्प्रभाव मिलावटी खाद्य-पदार्थों को प्रयोगशालाओं में जाँचने-परखने पर जो तथ्य सामने आये हैं, वे रोंगटे खड़े कर देने वाले हैं। नकलीं। घी, नकली पनीर व मावा में यूरिया-शैम्पू आदि मिलाया जाता है। पेय-पदार्थों में नालियों का पानी मिलाया जाता है। नकली शहद, पिसे हुए मसाले, मिर्च आदि में रंग देने के लिए हानिकारक केमिकल मिलाये जाते हैं। फलों को पकाने के लिए रांगा, नौसादर जैसे खतरनाक पदार्थ अपनाये जाते हैं। खाद्य-पदार्थों एवं मिठाइयों को चमकदार बनाने के लिए खतरनाक केमिकलों या रंगों का प्रयोग किया जाता है। इस तरह मिलावटी कारोबार से कैंसर, चर्मरोग, हृदयरोग आदि अनेक घातक रोग फैल रहे हैं, धन-हानि भी हो रही है और नैतिक आदर्शों का पतन भी हो रहा है।

5. उपसंहार मिलावटी माल का कारोबार जघन्य अपराध है। खाद्य-पदार्थों में मिलावट करने वाले सारे समाज के दुश्मन हैं। तुच्छ स्वार्थ की खातिर ऐसे अपराधी कामों में प्रवृत्त लोगों को कठोर-से-कठोर सजा मिलनी चाहिए। साथ ही भारतीय समाज को भी नैतिक मूल्यों का पालन करना चाहिए। मिलावटखोरी पर नियन्त्रण रखना स्वस्थ परम्परा के लिए जरूरी है।

6. आतंकवाद : एक विश्व-समस्या
अथवा
आतंकवाद : एक विश्वव्यापी समस्या
अथवा
विश्व चुनौती : बढ़ता आतंकवाद
अथवा
आतंकवाद : समस्या एवं समाधान संकेत बिन्दु-

1. प्रस्तावना
2. आतंकवाद के कारण
3. आतंकवादी घटनाएँ। एवं दुष्परिणाम
4. आतंकवादी चुनौती का समाधान
5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-आज आतंकवाद विश्व के समक्ष एक भयानक चुनौतीपूर्ण समस्या बन गया है। इसके सन्त्रास से आज संसार के अधिकतर देश जूझ रहे हैं। यह सम्पूर्ण मानवता एवं सहअस्तित्व के लिए खतरा है। जो तकनीक मनुष्य की सृजनात्मक ऊर्जा को जागृत करने में प्रयुक्त होनी चाहिए, उसे आतंकवादी विकृत करने में लगे हुए हैं और व्यापक स्तर पर नस्लवादी, साम्प्रदायिक एवं सांस्कृतिक वर्चस्व को लेकर आतंक फैला रहे हैं।

2, आतंकवाद के कारण-आतंकवाद सर्वप्रथम सन् 1920 में इजरायल में होनागाह संगठन द्वारा धार्मिक अलगाव के रूप में उभरा, जो इस्लामिक आतंकवाद में बदला। प्रारम्भ में राष्ट्रों की रंगभेद, कट्टर जातीयता एवं नस्लवादी दमन नीति से कट्टरवादी विषैले चरित्र का विकास हुआ, जो बाद में कहीं पर व्यक्तिगत स्वार्थों के कारण, कहीं पर क्षेत्रीय वर्चस्व के कारण पनपा। जाति, वर्ग, सम्प्रदाय, धर्म तथा नस्ल के नाम पर पृथक् राष्ट्र की मांग करने से बांग्लादेश, अफ्रीका, फिलिस्तीन-इजरायल के मध्य गाजापट्टी, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इराक, तुर्की, भारत, अल्जीरिया, सूडान आदि देशों में अलग-अलग नामों से आतंकवाद का प्रसार हुआ। आईएसआईएस, अलकायदा एवं तालिबान आदि के रूप में आज वही आतंकवाद सभी देशों को त्रस्त कर रहा है।

3. आतंकवादी घटनाएँ एवं दुष्परिणाम-आतंकवाद को कुछ राष्ट्रों से अप्रत्यक्ष सहयोग मिल रहा है। इस कारण आतंकवादियों के पास अत्याधुनिक घातक हथियार मौजूद हैं। वे भौतिक, रासायनिक, जैविक एवं मानव बमों का प्रयोग कर रहे हैं। वे अपने गुप्त संचार-तन्त्र से कहीं भी पहुँच जाते हैं। 11 दिसम्बर, 2001 को अमेरिका में ट्विन टावर विध्वंस काण्ड, 13 दिसम्बर, 2001 को भारतीय संसद् पर हमला, 12 अक्टूबर, 2002 को बाली में बम विस्फोट; इसी प्रकार मोरक्को, फिलीपींस, स्पेन, बेसलान (रूस), शर्म-अल-शेख (मिस्र) तथा लन्दन में ट्यूब ट्रेनों में विस्फोट की घटनाएँ कर आतंकवादियों ने जो हानि पहुँचाई है, वह अतीव भयावह एवं क्रूरतम मानी जाती है। नवम्बर, 2008 में मुम्बई में आतंकवादी घटना तथा 13 नवम्बर, 2015 को पेरिस नगर में एक सौ तीस से अधिक लोगों की हत्या आदि वैश्विक आतंकवाद के नृशंस कृत्य हैं। इस्लामिक स्टेट नामक आतंकवादी अब सारे विश्व को आतंकित कर रहे हैं।

4, आतंकवादी चुनौती का समाधान-आतंकवाद के बढ़ते खतरे का समाधान कठोर कानून व्यवस्था एवं नियन्त्रण से ही हो सकता है। इसके लिए अवैध संगठनों पर प्रतिबन्ध, हवाला द्वारा धन संचय पर रोक, प्रशासनिक सुधार के साथ ही काउन्टर टेरेरिज्म एक्ट अध्यादेश तथा संघीय जांच एजेन्सी आदि को अति प्रभावी बनाना अपेक्षित है। अमेरिका एवं आस्ट्रेलिया द्वारा जो कठोर कानून बनाया गया है तथा रूस, फ्रांस, इंग्लैण्ड आदि देशों के द्वारा आतंकवाद मिटाने । के लिए जो अभियान चलाया गया है, उनके सहयोग से भी इस चुनौती का मुकाबला किया जा सकता है।

5. उपसंहार-निर्विवाद कहा जा सकता है कि आतंकवाद किसी देश विशेष के विरुद्ध की गई विध्वंसात्मक कार्यवाही है। आतंकवाद के कारण विश्व मानव-सभ्यता पर संकट आ रहा है। यह अन्तर्राष्ट्रीय समस्या बन गई है। इसके समाधानार्थ एक विश्व-व्यवस्था की जरूरत है, सभी राष्ट्रों में समन्वय तथा • एकजुटता की आवश्यकता है। आतंकवाद को मिटा कर ही विश्व-शान्ति स्थापित हो सकती है।

7. रोजगार गारंटी योजना : मनरेगा
अथवा
नरेगा : गाँवों में रोजगार योजना संकेत बिन्दु-

1. प्रस्तावना
2. मनरेगा कार्यक्रम का स्वरूप
3. मनरेगा से रोजगार सुविधा
4. मनरेगा से सामाजिक सुरक्षा एवं प्रगति
5. उपसंहार।।

1. प्रस्तावना–भारत सरकार ने ग्रामीण विकास एवं सामुदायिक कल्याण की दृष्टि से राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम, फरवरी, 2006 में लागू किया। इस अधिनियम के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों के प्रत्येक परिवार के कम-से-कम एक सदस्य को सौ दिन का रोजगार पाने का अधिकार दिया गया, जो अब डेढ़ सौ दिन का कर दिया गया है। इस योजना का संक्षिप्त नाम ‘नरेगा’ रखा गया, जिसमें अक्टूबर, 2009 से महात्मा गाँधी का नाम जोड़ा गया और इसका संक्षिप्त नाम ‘मनरेगा’ पड़ा। इस रोजगार गारंटी योजना में अकुशल वयस्क स्त्री या पुरुष को ग्राम पंचायत के अन्तर्गत रोजगार दिया जाता है, यदि रोजगार नहीं दिया जाता है तो बेरोजगारी भत्ता देने का प्रावधान है।

2, मनरेगा कार्यक्रम का स्वरूप—मनरेगा योजना के अन्तर्गत विविध कार्यक्रम चलाये जाते हैं, जैसे—(1) जल-संरक्षण एवं जल-शस्य संचय, (2) वनरोपण एवं वृक्षारोपण, (3) इन्दिरा आवास योजना एवं अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए भूमि सुधार, (4) लघु सिंचाई कार्यक्रम, (5) तालाब आदि का नवीनीकरण, (6) बाढ़-नियन्त्रण एवं जल-निकास, (7) ग्रामीण मार्ग-सड़क निर्माण तथा (8) अनुसूचित अन्य विविध कार्य इस योजना में चलाये जा रहे हैं। मनरेगा योजना के संचालन के लिए केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के निर्देशन में पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से एक प्रशासनिक संगठनात्मक ढांचा बनाया गया है, जिसमें जिला पंचायत, विकास खण्ड तथा ग्राम पंचायत को योजना के क्रियान्वयन का भार दिया गया है। इसमें ग्राम पंचायत की मुख्य भूमिका रहती है।

3. मनरेगा से रोजगार सुविधा-इस योजना में रोजगार माँगने वाले वयस्क व्यक्ति को ग्राम पंचायत के अन्तर्गत रोजगार उपलब्ध कराया जाता है। रोजगार न दिये जाने पर उसे बेरोजगारी भत्ता देना पड़ता है। रोजगार के कार्यस्थल पर प्राथमिक चिकित्सा सुविधा और महिला मजदूरों के छोटे बच्चों की देखभाल की सुविधा उपलब्ध करायी जाती है। मनरेगा रोजगार योजना के अन्तर्गत 2013-14 वित्तीय वर्ष में देश के छह सौ उन्नीस जनपदों में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए ग्रामीण विकास मन्त्रालय द्वारा लगभग बयासी हजार करोड़ रुपये व्यय किये हैं। इस तरह मनरेगा योजना से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार मिलने से गरीब लोगों का हित हो रहा

4. मनरेगा से सामाजिक सुरक्षा एवं प्रगति मनरेगा कार्यक्रम में आमजन की भागीदारी होने से सामाजिक सुरक्षा एवं लोकहित का विस्तार हो रहा है। इसके लाभार्थियों की सक्रिय भागीदारी से गाँवों का विकास स्वतः होने लगा है। इससे महिलाओं तथा अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति के लोगों में से वंचितों को रोजगार मिलने लगा है। इससे महिला सशक्तीकरण पर भी बल दिया गया है, क्योंकि नरेगा रोजगार गारंटी योजना में तैंतीस प्रतिशत रोजगार महिलाओं को देने का प्रावधान है। इस तरह मनरेग्म से सामाजिक एवं आर्थिक सुधार की प्रक्रिया को गति मिल रही है और ग्रामीण अशक्त लोगों की प्रगति का मार्ग प्रशस्त हो रहा है। ।

5. उपसंहार–मनरेगा कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्र के विकास तथा बेरोजगार लोगों को रोजगार देने का जनहितकारी प्रयास है। इसका उत्तरोत्तर प्रसार हो रहा है तथा सरकार इस योजना के लिए काफी धन उपलब्ध करा रही है। इस योजना के कार्यान्वयन में आने वाली कठिनाइयों का समाधान भी किया जा रहा है। इसकी सफलता ग्राम पंचायतों की सक्रियता पर निर्भर है।

8. प्लास्टिक थैली : पर्यावरण की दुश्मन ।
अथवा
प्लास्टिक थैली : क्षणिक लाभ-दीर्घकालीन हानि
अथवा
प्लास्टिक कैरी बैग्स : असाध्य रोगवर्धक संकेत बिन्दु-

1. प्रस्तावना
2. प्लास्टिक कचरे का प्रसार
3. प्लास्टिक थैलियों से पर्यावरण प्रदूषण
4. प्लास्टिक थैलियों पर प्रतिबन्ध
5. उपसंहार।।

1. प्रस्तावना मानव द्वारा निर्मित चीजों में प्लास्टिक थैली ही ऐसी है जो माउंट एवरेस्ट से लेकर सागर की तलहटी तक सब जगह मिल जाती है। पर्यटन स्थलों, समुद्री तटों, नदी-नाले-नालियों, खेत-खलिहानों, भूमि के अन्दर-बाहर सब जगहों पर आज प्लास्टिक कैरी बैग्स अटे पड़े हैं। लगभग तीन दशक पहले किये गये इस आविष्कार ने ऐसा कुप्रभाव फैलाया है कि आज प्रत्येक उत्पाद प्लास्टिक की थैलियों में मिलता है और घर आते-आते ये थैलियाँ कचरे में तब्दील होकर पर्यावरण को हानि पहुँचा रही हैं।

2. प्लास्टिक कचरे का प्रसार-प्लास्टिक थैलियों या कैरी बैग्स का इस्तेमाल इतनी अधिक मात्रा में हो रहा है कि सारे विश्व में एक साल में दस खरब प्लास्टिक थैलियाँ काम में लेकर फेंक दी जाती हैं। अकेले जयपुर में रोजाना पैंतीस लाख लोग प्लास्टिक का कचरा बिखेरते हैं और सत्तर टन प्लास्टिक का कचरा सड़कों, नालियों एवं खुले वातावरण में फैलता है। इस प्लास्टिक कचरे से धरती की उर्वरा शक्ति समाप्त हो जाती है, भूगर्भ का अमृत जैसा जल अपेय बन जाता है, रंगीन प्लास्टिक थैलियों से कैंसर जैसे असाध्य रोग हो जाते हैं तथा लाखों गायों की अकाल मौत हो जाती है। पूरे राजस्थान में प्लास्टिक उत्पाद-निर्माण की तेरह सौ इकाइयाँ हैं, तो इस हिसाब से पूरे देश में कितनी होंगी, यह सहज अनुमान का विषय है। इससे वर्तमान में प्लास्टिक कचरे का प्रसार रोक पाना कठिन हो रहा है।

3. प्लास्टिक थैलियों से पर्यावरण प्रदूषण-पर्यावरण विज्ञानियों ने प्लास्टिक के बीस माइक्रोन या इससे पतले उत्पाद को पर्यावरण के लिए बहुत घातक बताया है। ये थैलियाँ मिट्टी में दबने से फसलों के लिए उपयोगी कीटाणुओं को मार देती हैं। इन थैलियों के प्लास्टिक में पॉलि विनाइल क्लोराइड होता है, जो मिट्टी में दबे रहने पर भूजल को जहरीला बना देता है। बारिश में प्लास्टिक के कचरे से दुर्गन्ध आती है, नदी-नाले अवरुद्ध होने से बाढ़ की स्थिति की जाती है। हवा में प्रदूषण फैलने से अनेक असाध्य रोग फैल जाते हैं, कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। प्लास्टिक कचरा खाने से गाय आदि पशुओं की जानें चली जाती हैं। इस तरह प्लास्टिक थैलियों से पर्यावरण को हानि पहुँचती है।

4. प्लास्टिक थैलियों पर प्रतिबन्ध-प्लास्टिक थैलियों के उत्पादनकर्ताओं को कुछ लाभ हो रहा हो तथा उपभोक्ताओं को भी सामान ले जाने में सुविधा मिल रही हो, परन्तु यह क्षणिक लाभ पर्यावरण को दीर्घकालीन हानि पहुँचा रहा है। कुछ लोग बीस माइक्रोन से अधिक मोटे प्लास्टिक को रिसाइक्लड करने का समर्थन करते हैं, परन्तु वह रिसाइक्लड प्लास्टिक भी एलर्जी, त्वचा रोग एवं पैकिंग किये गये खाद्य पदार्थों में प्रदूषण फैलाता है। अतएव प्लास्टिक थैलियों पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए। राजस्थान सरकार ने इस पर प्रतिबन्ध लगाने का निर्णय लिया है, जो कि पर्यावरण की दृष्टि से उचित एवं स्वागतयोग्य कदम है।

5. उपसंहार–प्लास्टिक थैलियों का उपयोग पर्यावरण की दृष्टि से सर्वथा घातक है। यह असाध्य रोगों को बढ़ाता है। इससे अनेक हानियाँ होने से इसे पर्यावरण का शत्रु भी कहा जाता है। प्लास्टिक उद्योगों को भले ही क्षणिक लाभ होता हो, परन्तु इसका बुरा असर सभी के स्वास्थ्य पर पड़ता है। अतः जनहित में प्लास्टिक थैलियों पर पूर्णतया प्रतिबन्ध लगाया जाना जरूरी है।

9. इन्टरनेट की उपयोगिता
अथवा
इन्टरनेट-क्रान्ति : वरदान और अभिशाप
अथवा
इन्टरनेट : ज्ञान को भण्डार
अथवा
विद्यार्थी-जीवन में इन्टरनेट की भूमिका
अथवा
सूचना एवं संचार की महाक्रान्ति : इन्टरनेट संकेत बिन्दु-

1. प्रस्तावना–नवीनतम प्रौद्योगिकी
2. इन्टरनेट प्रणाली
3. इन्टरनेट का प्रसार
4. इन्टरनेट से लाभ एवं हानि
5. आधुनिक जीवन में उपयोगिता
6. उपसंहार।।

1. प्रस्तावना वर्तमान में सूचना एवं दूर-संचार प्रौद्योगिकी का असीमित विस्तार हो रहा है। इसमें अब ऐसे अनेक उपकरण आ गये हैं, जिनसे सारे विश्व से तत्काल सम्पर्क साधा जा सकता है और परस्पर विचार-विमर्श किया जा सकता है। आज कम्प्यूटर एवं सेलफोन के द्वारा सूचना एवं मनोरंजन का एक सुन्दर साधन बन गया है, जिसे इन्टरनेट कहते हैं। इन्टरनेट के प्रति युवाओं में विशेष आकर्षण है और इससे दूरी की बाधा समाप्त हो गई है।

2. इन्टरनेट प्रणाली-यह ऐसे कम्प्यूटरों एवं स्मार्ट फोनों की प्रणाली है, जो सूचना लेने और देने अर्थात् उनका आदान-प्रदान करने के लिए आपस में जुड़े रहते हैं। इन्टरनेट का आशय विश्व के करोड़ों कम्प्यूटरों को जोड़ने वाला ऐसा संजाल है, जो क्षण-भर में समस्त जानकारियाँ उपलब्ध करा देता है। प्रत्येक इन्टरनेट कम्प्यूटर ‘होस्ट’ कहलाता है और यह स्वतन्त्र रूप से डाउनलोड किया जाता है।

3. इन्टरनेट का प्रसार–इन्टरनेट को प्रारम्भ सन् 1960 के दशक में हुआ। अमेरिका के वैज्ञानिकों ने सर्वप्रथम ऐसे विकेन्द्रित सत्ता वाले नेटवर्क का आविष्कार किया, जिसमें सभी कम्प्यूटरों को समान रूप से परस्पर जोड़ा गया। आगे चलकर इसका बहु-उद्देश्यीय स्वरूप निखरा । इससे वेबसाइटों की संरचना, उनका रजिस्ट्रेशन, उनका संचालन एवं डाउनलोड करने से सम्बन्धित विविध सॉफ्टवेयरों का निर्माण किया गया। आज सारे विश्व में करोड़ों वेबसाइटों के रूप में इन्टरनेट का संजाल फैल गया है। अब तो वीडियो, ऑडियो, गेम्स, डेस्कटयप, वॉलपेपर, फोटोग्राफ, ईबुक्स आदि अनेक बातों का परिचालन इन्टरनेट से हो जाता है। इन्टरनेट के ब्राउजर ओपन करते ही पंजीकृत वेब के द्वारा मनचाही जानकारी घर बैठे मिल जाती है। इस कारण आज इन्टरनेट का असीमित प्रसार हो गया है और सूचना एवं संचारक्षेत्र में महाक्रान्ति आ गयी है।

4. इन्टरनेट से लाभ एवं हानि-इन्टरनेट से अनेक लाभ हैं । इन्टरनेट कनेक्शन से किसी भी समय, किसी भी विषय की तत्काल जानकारी मिल जाती है। इससे छात्र, शिक्षक, व्यापारी, वैज्ञानिक, सरकारी विभाग आदि सभी सूचनाओं का आदानप्रदान कर सकते हैं। इन्टरनेट पर ई-मेल, टेली-बुकिंग, टेली-बैंकिंग, ई-मार्केटिंग आदि अनेक नई-नई सुविधाएँ उपलब्ध रहती हैं। इस दृष्टि से यह अत्यधिक उपयोगी है परन्तु इन्टरनेट से कई हानियाँ भी हैं। इस पर कई बार मनपसन्द सामग्री के फ्रीडाउनलोड करते ही ऐसे खतरे आते हैं जो कम्प्यूटर सिस्टम को तो तबाह करते ही हैं, निजी सूचना-तन्त्र में भी सेंध लगाते हैं। वायरस, स्पाईवेयर और एडवेयर के कारण इन्टरनेट से डाउनलोड करते ही बहुत सी हानि होती है। इससे समय, धन एवं उपकरणों का नुकसान झेलना पड़ता है।

5. आधुनिक जीवन में उपयोगिता–आज इन्टरनेट की सभी के लिए नितान्त उपयोगिता है। व्यापारिक, शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा व्यक्तिगत कार्यों में इसकी सहायता से सारे काम साधे जा सकते हैं। मनोरंजन की दृष्टि से भी इसकी बहुत उपयोगिता है। विश्व-भर में परस्पर विचार-विमर्श करने तथा ज्ञान का आदानप्रदान करने में इसका महत्त्व सर्वोपरि है। विद्यार्थियों के लिए तो यह ज्ञान का । भण्डार है।

6. उपसंहार-वर्तमान काल में इन्टरनेट का द्रुतगति से विकास हो रहा है। और इस पर कई तरह के सॉफ्टवेयर मुफ्त में डाउनलोड किये जा सकते हैं। भले ही इन मुफ्त के डाउनलोडों से अनेक बार हानियाँ उठानी पड़ती हैं, फिर भी सूचनासंचार के अनुपम साधन के साथ सामाजिक-आर्थिक प्रगति में इनकी भूमिका अपरिहार्य बन गई है।

10. मोबाइल फोन : वरदान या अभिशाप ।
अथवा
मोबाइल फोन का प्रचलने एवं प्रभाव
अथवा
मोबाइल फोन : छात्रों को लाभ या हानि संकेत बिन्दु-

1. प्रस्तावना
2. मोबाइल फोन का बढ़ता प्रभाव
3. मोबाइल फोन से लाभ : वरदान
4. मोबाइल फोन से हानि : अभिशाप
5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-आधुनिक युग में विज्ञान द्वारा अनेक आश्चर्यकारी आविष्कार किये गये, जिनमें कम्प्यूटर एवं मोबाइल या सेलफोन का विशेष महत्त्व है। पहले तार से जुड़े हुए फोन या दूरभाष का प्रचलन हुआ, फिर मोबाइल फोन का जिस तेजी से प्रसार हुआ, वह संचार-साधन के क्षेत्र में चमत्कारी घटना है। अब तो मोबाइल फोन भी स्मार्टफोन के रूप में संचार-सुविधा का विशिष्ट साधन बन गया है।

2. मोबाइल फोन का बढ़ता प्रभाव प्रारम्भ में मोबाइल फोन कुछ सम्पन्न लोगों तक ही प्रचलित रहा, मोबाइल फोन–सेट महँगे थे, सेवा प्रदाता कम्पनियाँ भी कम थीं और सेवा-शुल्क अधिक था। लेकिन अब अनेक सेवा प्रदाता कम्पनियाँ खड़ी हो गयी हैं, मोबाइल फोन भी सस्ते-से-सस्ते मिलने लगे हैं। इस कारण अब हर व्यक्ति मोबाइल फोन रखने लगा है। अब मजदूर, सफाईकर्मी, किसान, खोमचे वाले आदि सभी वर्गों के लोग इसे अत्यावश्यक संचार-उपकरण के रूप में अपना रहे हैं।

3. मोबाइल फोन से लाभ : वरदान-मोबाइल फोन अतीव छोटा यन्त्र है, जिसे व्यक्ति अपनी जेब में रखकर कहीं भी ले जा सकता है और कभी भी कहीं से दूसरों से बात कर सकता है। इससे समाचार का आदान-प्रदान सरलता से होता है और देश-विदेश में रहने वाले अपने लोगों के सम्पर्क में लगातार रहा जा सकता है। व्यापार-व्यवसाय में तो यह लाभदायक एवं सुविधाजनक है ही, अन्य क्षेत्रों में भी यह वरदान बन रहा है। असाध्य रोगी की तुरन्त सूचना देने, अनेक प्रकार के खेलकूदों के समाचार जानने, मनचाहे गाने सुनने, गेमिंग से मनोविनोद करने, केलकुलेटर का कार्य करने, ह्वाट्सएप एवं इन्टरनेट फारमेट द्वारा मनचाही फिल्म देखने या समाचार जानने आदि अनेक लाभदायक और मनोरंजक कार्य इससे किये जा सकते हैं। छात्रों के लिए शिक्षा की दृष्टि से यह काफी उपयोगी सिद्ध हो। रहा है।

4. मोबाइल फोन से हानि : अभिशाप–प्रत्येक वस्तु के अच्छे और बुरे । दो पक्ष होते हैं। मोबाइल फोन से भी अनेक हानियाँ हैं । वैज्ञानिक शोधों के अनुसार मोबाइल से बात करते समय रेडियो किरणें निकलती हैं, जो व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक होती हैं। इससे लगातार सुनने पर कान कमजोर हो जाते हैं, मस्तिष्क में चिढ़चिढ़ापन आ जाता है। छात्रों को मोबाइल गेमिंग की बुरी लत पड़ने से उन पर दूरगामी दुष्प्रभाव पड़ता है। दुष्ट लोगों द्वारा अश्लील सन्देश भेजना, अपराधी प्रवृत्ति को बढ़ावा देना तथा अनचाही सूचनाएँ भेजना इत्यादि। से मोबाइल फोन का दुरुपयोग किया जाता है, जिससे समाज में अपराध बढ़ रहे हैं। साथ ही अपव्यय भी बढ़ रहा है और युवाओं में चेटिंग का नया रोग भी फैल रहा है। इन सब कारणों से मोबाइल फोन हानिकारक एवं अभिशाप ही है।

5. उपसंहार-मोबाइल फोन दूरभाष की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण आविष्कार है तथा इसका उपयोग उचित ढंग से तथा आवश्यक कार्यों के सम्पादनार्थ किया जावे, तो यह वरदान ही है। लेकिन अपराधी लोगों और युवाओं में इसके दुरुपयोग की प्रवृत्ति बढ़ रही है, छात्रों में गेमिंग की लत पड़ रही है, यह सर्वथा अनुचित है। मोबाइल फोन का सन्तुलित उपयोग किया जाना ही लाभदायक है।

11. जल-संरक्षण : हमारा दायित्व
अथवा
जल-संरक्षण की आवश्यकता एवं उपाय
अथवा
जल संरक्षण : जीवन सुरक्षण
अथवा
जल है तो जीवन है।
अथवा
जल है तो कल है। संकेत बिन्दु-

1. प्रस्तावना
2. जल-चेतना हमारा दायित्व
3. जल-संकट के दुष्परिणाम
4. जल-संरक्षण के उपाय
5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-सृष्टि के पंचभौतिक पदार्थों में जल का सर्वाधिक महत्त्व है। और यही जीवन का मूल आधार है। इस धरती पर जल के कारण ही पेड-पौधों, वनस्पतियों, बाग-बगीचों आदि के साथ प्राणियों का जीवन सुरक्षित है। जीवन-सुरक्षा का मूल-तत्त्व होने से कहा गया है-‘जल है तो जीवन है’ या ‘जल ही अमृत है।’ धरती पर जलाभाव की समस्या उत्तरोत्तर बढ़ रही है। अतएव धरती पर जल संरक्षण का महत्त्व मानकर संयुक्त राष्ट्रसंघ ने सन् 1992 में विश्व जल-दिवस मनाने की घोषणा की, जो प्रतिवर्ष 22 मार्च को मनाया जाता है।

2. जल-चेतना हमारा दायित्व-हमारी प्राचीन संस्कृति में जल-वर्षण उचित समय पर चाहने के लिए वर्षा के देवता इन्द्र और जल के देवता वरुण का पूजन किया जाता था। इसी प्रकार हिमालय के साथ गंगा, यमुना, सरस्वती आदि नदियों का स्तवन किया जाता था। हमारे राजा एवं समाजसेवी श्रेष्ठिवर्ग पेयजल हेतु कुओं, तालाबों, पोखरों आदि के निर्माण पर पर्याप्त धन व्यय करते थे, वे जल-संचय का महत्त्व जानते थे। किन्तु वर्तमान काल में मानव की स्वार्थी प्रवृत्ति, भौतिकवादी चिन्तन एवं अनास्थावादी दृष्टिकोण के कारण उपलब्ध जल का ऐसा विदोहन किया जा रहा है, जिससे अनेक क्षेत्रों में अब पेयजल का संकट उत्पन्न हो गया है। इसीलिए हमारा दायित्व है कि हम जल को जीवन-रक्षक तत्त्व के रूप में संरक्षण प्रदान करें और न केवल वर्तमान को अपितु भविष्य को भी निरापद बनावें।।

3, जल-संकट के दुष्परिणाम-हमारे देश में औद्योगीकरण, शहरीकरण, खनिज-सम्पदा की बड़ी मात्रा में विदोहन तथा भूजल को अतिशय दोहन से जलसंकट उत्तरोत्तर बढ़ रहा है। इससे न तो खेती-बाड़ी की सिंचाई हेतु पानी मिल रहा है और न पेयजल की उचित पूर्ति हो रही है। जल-संकट के कारण पुराने तालाब, सरोवर एवं कुएँ सूख रहे हैं, नदियों का जल-स्तर घट रहा है और जमीन के अन्दर का जल-स्तर भी लगातार कम होता जा रहा है। इस तरह जल-संकट के कारण अनेक जन्तु-जीवों एवं पादपों का अस्तित्व मिट गया है, खेतों की उपज घट रही है और वनभूमि सूखने लगी है। धरती का तापमान निरन्तर बढ़ रहा है। इस तरह जल-संकट के अनेक दुष्परिणाम देखने में आ रहे हैं।

4. जल-संरक्षण के उपाय—जिन कारणों से जल-संकट बढ़ रहा है, उनका निवारण करने से यह समस्या कुछ हल हो सकती है। इसके लिए भूगर्भीय जल का विदोहन रोका जावे और खानों-खदानों पर नियन्त्रण रखा जावे। वर्षा के जल का संचय कर भूगर्भ में डाला जावे, बरसाती नालों पर बाँध या एनीकट बनाये जावे, तालाबों-पोखरों व कुओं को अधिक गहरा-चौड़ा किया जावे और बड़ी नदियों को आपस में जोड़ने का प्रयास किया जावे। जनता में जल-संरक्षण के प्रति जागृति लायी जावे। इस तरह के उपायों से जल-संकट का समाधान हो सकता है।

5. उपसंहार-जल को जीवन का आधार मानकर समाज में नयी जागृति लाने का प्रयास किया जावे। ‘अमृतं जलम्’ जैसे जन-जागरण के कार्य किये जावें। इससे जल-चेतना की जागृति लाने से जल-संचय एवं जल-संरक्षण की भावना का प्रसार होगा तथा इससे धरती का जीवन सुरक्षित रहेगा।

12. कन्या भ्रूण हत्या : लिंगानुपात की समस्या
अथवा
कन्या-भ्रूण हत्या पाप है : इसके जिम्मेदार आप हैं
अथवा
कन्या-भ्रूण हत्या : एक चिन्तनीय विषय
अथवा
कन्या-भ्रूण हत्या : एक जघन्य अपराध संकेत बिन्दु-

1. प्रस्तावना
2. कन्या-भ्रूण हत्या के कारण
3. कन्या-भ्रूण हत्या की विद्रूपता
4. कन्या-भ्रूण हत्या के निषेधार्थ उपाय
5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-परमात्मा की सृष्टि में मानव का विशेष महत्त्व है, उसमें नर के समान नारी का समानुपात नितान्त वांछित है। नर और नारी दोनों के संसर्ग से भावी सन्तान का जन्म होता है तथा सृष्टि-प्रक्रिया आगे बढ़ती है। परन्तु वर्तमान काल में अनेक कारणों से नर-नारी के मध्य लिंग-भेद का विकृत रूप सामने आ रहा है, जो कि पुरुष-सत्तात्मक समाज में कन्या-भ्रूण हत्या का पर्याय बनकर असमानता बढ़ा रहा है। हमारे देश में कन्या-भ्रूण हत्या आज चिन्तनीय विषय है।

2. कन्या-भ्रूण हत्या के कारण भारतीय मध्यमवर्गीय समाज में कन्या-जन्म को अमंगलकारी माना जाता है, क्योंकि कन्या को पाल-पोषकर, शिक्षित-सुयोग्य बनाकर उसका विवाह करना पड़ता है। इस निमित्त काफी धन व्यय हो जाता है। विशेषकर विवाह में दहेज आदि के कारण मुसीबतें आ जाती हैं। कन्या को पराया धन और पुत्र को ही कुल-परम्परा को बढ़ाने वाला तथा वृद्धावस्था का सहारा मानते हैं। इसी कारण ऐसे लोग कन्या-जन्म नहीं चाहते हैं। इन सब कारणों से पहले कुछ. क्षेत्रों अथवा जातियों में कन्या-जन्म के समय ही उसे मार दिया जाता था। अब भ्रूणहत्या के द्वारा कन्या-जन्म को पहले ही रोक दिया जाता है।

3. कन्या-भ्रूण हत्या की विद्रूपत–वर्तमान में अल्ट्रासाउण्ड मशीन वस्तुतः कन्या-संहार का हथियार बन गया है। लोग इस मशीन की सहायता से लिंग-भेद ज्ञात कर लेते हैं, और यदि गर्भ में कन्या हो तो कन्या-भ्रूण को गिराकर नष्ट कर देते हैं।

कन्या-भ्रूण हत्या के कारण लिंगानुपात का संतुलन बिगड़ गया है। कई राज्यों में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की संख्या बीस से पच्चीस प्रतिशत कम है। इस कारण सुयोग्य युवकों की शादियाँ नहीं हो पा रही हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार हमारे देश में प्रतिदिन लगभग ढाई हजार कन्या-भ्रूणों की हत्या की जाती है। हरियाणा, पंजाब तथा दिल्ली में इसकी विद्रूपता सर्वाधिक दिखाई देती है। कन्या-भ्रूण हत्या का मूल कारण दकियानूसी एवं स्वार्थी मध्यमवर्गीय समाज की अमानवीय सोच है। लगता है कि ऐसे लोगों में लिंग-चयन का मनोरोग निरन्तर विकृत होकर उभर रहा है।

4. कन्या-भ्रूण हत्या के निषेधार्थ उपाय–भारत सरकार ने कन्या-भ्रूण हत्या को प्रभावी ढंग से रोकने के लिए अल्ट्रासाउण्ड मशीनों से लिंग-ज्ञान पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया है। इसके लिए प्रसवपूर्व निदान तकनीकी अधिनियम (पी.एन.डी.टी.), 1994′ के रूप में कठोर दण्ड-विधान किया गया है। साथ ही नारी सशक्तीकरण, बालिका निःशुल्क शिक्षा, पैतृक उत्तराधिकार, समानता का अधिकार आदि अनेक उपाय अपनाये गये हैं। यदि भारतीय समाज में पुत्र एवं पुत्री में अन्तर नहीं माना जावे, कन्या-जन्म को परिवार में मंगलकारी समझा जावे, कन्या को घर की लक्ष्मी एवं सरस्वती मानकर उसका लालन-पालन किया जावे, तो कन्या-भ्रूण हत्या पर प्रतिबन्ध स्वतः ही लग जायेगा।

5. उपसंहार-वर्तमान में लिंग-चयन एवं लिंगानुपात विषय पर काफी चिन्तन किया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्रसंघ में कन्या-संरक्षण के लिए घोषणा की गई है। भारत सरकार ने भी लिंगानुपात को ध्यान में रखकर कन्या-भ्रूण हत्या पर कठोर प्रतिबन्ध लगा दिया है। वस्तुतः कन्या-भ्रूण हत्या का यह नृशंस कृत्य पूरी तरह समाप्त होना चाहिए।

13. राजस्थान में बढ़ता जल-संकट। संकेत बिन्दु-1. प्रस्तावना 2. जल-संकट की स्थिति 3. जल-संकट के कारण 4. संकट के समाधान हेतु सुझाव 5. उपसंहार।।
1. प्रस्तावना—पंचभौतिक पदार्थों में पृथ्वी के बाद जल तत्त्व का महत्त्व सर्वाधिक माना गया है। मंगल आदि अन्य ग्रहों में जल के अभाव से ही जीवन एवं वनस्पतियों का विकास नहीं हो पाया है—ऐसा नवीनतम खोजों से स्पष्ट हो गया है। धरती पर ऐसे कई भू-भाग हैं जहाँ पर जलाभाव से रेगिस्तान का प्रसार हो रहा । है तथा प्राणियों को कष्टमय जीवन-यापन करना पड़ता है। राजस्थान प्रदेश का अधिकतर भू-भाग जल-संकट से सदा ग्रस्त रहता है। समय पर उचित अनुपात में । वर्षा न होने पर यह संकट और भी बढ़ जाता है।

2. जल-संकट की स्थिति-राजस्थान में प्राचीन काल में सरस्वती नदी ‘प्रवाहित होती थी, जो अब धरती के गर्भ में विलुप्त हो गई। यहाँ पर अन्य कोई ऐसी नदी नहीं बहती है, जिससे जल-संकट का निवारण हो सके। चम्बल एवं माही।

आदि नदियाँ राजस्थान के दक्षिणी-पूर्वी कुछ भाग को ही हरा-भरा रखती हैं। इसका पश्चिमोत्तर भूभागे तो एकदम निर्जल है। इसी कार, यहाँ पर गिस्तान का उत्तरोत्तर विस्तार हो रहा है। पंजाब से श्रीगंगानगर जिले में से होकर इन्दिरा गाँधी नहर के द्वारा जो जल राजस्थान के पश्चिमोत्तर भाग में पहुँचाया जा रहा है, उसकी स्थिति भी सन्तोषप्रद नहीं है। पूर्वोत्तर राजस्थान में हरियाणा से जो पानी मिलता है, वह भी जलापूर्ति नहीं कर पाता है। इस कारण राजस्थान में जल-संकट की स्थिति सदा ही बनी रहती है।

3. जल-संकट के कारण–राजस्थान में उत्तरोत्तर आबादी बढ़ रही है और औद्योगिक गति भी बढ़ रही है। यहाँ के शहरों में एवं बड़ी औद्योगिक इकाइयों में भूगर्भीय जल का दोहन बड़ी मात्रा में हो रहा है। खनिज सम्पदा यथा संगमरमर, ग्रेनाइट, इमारती पत्थर, चूना पत्थर आदि के विदोहन से भी धरती का जल स्तर गिरता जा रहा है। दूसरी ओर वर्षा काल में सारा पानी बाढ़ के रूप में बह जाता है। शहरों में कंकरीट-डामर आदि के निर्माण कार्यों से वर्षा का पानी धरती के अन्दर नहीं जा पाता है। इस कारण पाताल-तोड़ कुएँ. भी सूख गये हैं। पुराने कुएँ, बावड़ी आदि की अनदेखी करने से भी जल स्रोत सूख गये हैं। पिछले कुछ वर्षों से राजस्थान में वर्षा भी अत्यल्प मात्रा में हो रही है। इस कारण बाँधों, झीलों, तालाबों-पोखरों और छोटी कुइयों में भी पानी समाप्त हो गया है। इन सब कारणों से यहाँ पर जलसंकट गहराता जा रहा है।

4. संकट के समाधान हेतु सुझाव-राजस्थान में बढ़ते हुए जल-संकट के समाधान के लिए ये उपाय किये जा सकते हैं—(1) भूगर्भ के जल का असीमित विदोहन रोका जावे। (2) खनिज सम्पदा के विदोहन को नियन्त्रित किया जावे। (3) शहरों में वर्षा के जल को धरती के गर्भ में डालने की व्यवस्था की जावे। (4) बाँधों एवं एनीकटों का निर्माण, कुओं एवं बावड़ियों को अधिक गहरी और कच्चे तालाबों-पोखरों को अधिक गहरा-चौड़ा किया जावे। (5) पंजाब-हरियाणागुजरात में बहने वाली नदियों का जल राजस्थान में लाने के प्रयास किये जावें। ऐसे उपाय करने से निश्चय ही राजस्थान में जल-संकट का निवारण हो सकता है।

5. उपसंहार”रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून” अर्थात् पानी के बिना जन-जीवन अनेक आशंकाओं से घिरा रहता है। सरकार को तथा समाजसेवी संस्थाओं को विविध स्रोतों से सहायता लेकर राजस्थान में जल-संकट के निवारणार्थ प्रयास करने चाहिए। ऐसा करने से ही यहाँ की धरा मंगलमय बन सकती है।

14. आधुनिक सूचना-प्रौद्योगिकी
अथवा
भारत में सूचना क्रान्ति का प्रसार
अथवा
संचार माध्यम से उसके बढ़ते प्रभाव
अथवा
सूचना क्रान्ति के युग में भारत संकेत बिन्दु-

1. प्रस् ना
2. भारत में सूचना प्रौद्योगिकी या संचारक्रान्ति
3. सूचना प्रौद्योगिकी का विकास या संचार माध्यमों का प्रसार
4. सूचना प्रौद्योगिकी या संचार माध्यमों से लाभ
5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना वर्तमान काल नवीनतम वैज्ञानिक आविष्कारों का युग है। पहले दूर संचार के सीमित साधन थे। बेतार का तार (वायरलेस), तार, टेलीप्रिन्टर, रेडियो आदि साधनों से सूचना-समाचार प्रेषण होता था। परन्तु अब कम्प्यूटर के आविष्कार के साथ टेलीफोन, मोबाइल, टेलीविजन आदि अनेक इलेक्ट्रोनिक उपकरणों के आविष्कारों से इस क्षेत्र में आश्चर्यजनक प्रगति हुई है। वस्तुतः कम्प्यूटर क्रान्ति के कारण दूर-संचार के क्षेत्र में विशेष प्रगति हुई है तथा इससे आज के मानव का दैनिक जीवन काफी लाभान्वित हो रहा है।

2, भारत में सूचना प्रौद्योगिकी या संचार-क्रांति-हमारे देश में सन् 1984 में केन्द्र सरकार द्वारा कम्प्यूटर नीति की घोषणा होते ही संचार-क्रान्ति का सूत्रपात हुआ। दिल्ली में सूचना केन्द्र स्थापित कर सभी राज्यों की राजधानियों से उसका कम्प्यूटर से सम्पर्क स्थापित किया गया। संचार-उपग्रहों का प्रक्षेपण कर जगह-जगह माइक्रोवेव टावर एवं दूरदर्शन टावर स्थापित किये गये। दूर-संचार विभाग को पूर्णतया सूचना प्रौद्योगिकी का रूप दिया गया। निजी कम्पनियों ने भी अपने यवर स्थापित कर सारे देश में संचार के नेटवर्क को गति प्रदान की। इसके फलस्वरूप दूरदर्शन के चैनलों तथा मोबाइल सेवाओं का विस्तार हुआ। साथ ही टेलेक्स, ई-मेल, ई-कॉमर्स, फैक्स, इन्टरनेट आदि संचारसाधनों का असीमित विस्तार होने से संचार-तंत्र से सूचना प्रौद्योगिकी में आश्चर्यजनक क्रान्ति आ गई है।

3. सूचना प्रौद्योगिकी का विकास या संचारमाध्यमों का प्रसार–वर्तमान काल में संचार-सुविधाओं में जो क्रान्ति आयी है, उससे रेल एवं वायुयान आदि के टिकटों का आरक्षण, वेबसाइट पर विभिन्न परिणामों का प्रसारण, रोजगार समाचार एवं व्यापार-जगत् के उतार-चढ़ाव आदि का तत्क्षण पता चल जाता है। साइबर कैफों का विस्तार होने से अत्यल्प खर्च पर उनसे सारी जानकारी हासिल की जा सकती है। फैक्स एवं टेलीप्रिन्टर से संचार-सुविधाओं का तीव्र गति से प्रसार हुआ है। अब तो ई-मेल विवाह-सम्बन्ध भी होने लगे हैं। विभिन्न भू-उपग्रहों की सहायता से सारे विश्व की प्रमुख घटनाएँ प्रत्यक्ष दिखाई देती हैं और अन्तरिक्ष की गतिविधियों को देखा जा सकता है। यह सब संचार-क्रांति के प्रसार से ही संभव हो सका है।

4. सूचना प्रौद्योगिकी या संचारमाध्यमों से लाभ-संचारमाध्यमों से समाज एवं देश को अनेक लाभ हुए हैं। शिक्षा-क्षेत्र में साइबर शिक्षा, दूरदर्शन। चैनल से शिक्षा तथा ऑन लाइन एजुकेशन का प्रसार हुआ है जिससे शहरों से दूर रहने वालों को लाभ मिल रहा है। विशालतम दूर-संचार नेटवर्क स्थापित होने एवं ऑनलाइन आवेदन करने से युवाओं को रोजगार के नये अवसर मिल रहे हैं। सर्वाधिक लाभ समाचार-पत्रों को हुआ है, जिससे जनता भी लाभान्वित हो रही है। इंजीनियरिंग क्षेत्र में नये क्षेत्रों का सृजन हुआ है तथा देश के बड़े औद्योगिक परिसरों का विस्तार होने से सामान्य जनता को अत्यधिक लाभ मिल रहा है। अब संचार-क्रान्ति से जीवन में अत्यधिक गतिशीलता आ गई है।

5. उपसंहार–वर्तमान में सूचना प्रौद्योगिकी के फलस्वरूप संचार-क्षेत्र में जो क्रान्ति आयी है, उससे व्यक्ति के दैनिक जीवन तथा सामाजिक जीवन को अनेक लाभ मिल रहे हैं। इससे रोजगार की उपलब्धता के साथ ही ज्ञान-विज्ञान एवं व्यवसाय आदि में भी अनेक सुविधाएँ बढ़ी हैं । निस्सन्देह संचार-क्रांति की आश्चर्यजनक प्रगति सभी के लिए लाभकारी रहेगी।

15. भारत में नक्सलवाद की समस्या
अथवा
नक्सलवाद : एक गम्भीर समस्या संकेत बिन्दु-

1. प्रस्तावना
2, नक्सलवाद की समस्या के कारण
3. नक्सलवाद की समस्या का विस्तार
4. नक्सली हमले
5. नक्सलवाद की समस्या के समाधान हेतु प्रयास
6. उपसंहार।।

1. प्रस्तावना-विगत कुछ वर्षों से आतंकवाद की तरह नक्सलवाद भारत की आन्तरिक सुरक्षा के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन कर उभरा है। नक्सलवादी आन्दोलन का नाम एक गाँव ‘नक्सलबाड़ी’ के नाम से जुड़ा है जो भारत-नेपाल और बांग्लादेश की सीमा पर स्थित है। 1967 में यहाँ के आदिवासियों ने भूस्वामियों की शोषण व अन्यायपूर्ण नीतियों के विरुद्ध हथियार उठाये। इस आन्दोलन के समर्थक माओवादी क्रान्तिकारी विचारधारा से अत्यधिक प्रभावित थे। आदिवासी एवं पिछड़े क्षेत्रों का उचित आर्थिक विकास नहीं होने से वहाँ पर नक्सलवाद पनपा, जो अब लगभग बीस राज्यों में फैलकर गम्भीर समस्या बन रहा है।

2. नक्सलवाद की समस्या के कारण देश में नक्सलवाद की समस्या को बढ़ावा मिलने का मूल कारण गरीबी, भूमि सुधारों की ओर ध्यान नहीं दिया जाना तथा बेरोजगारी है। आदिवासियों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं हो रहा है तथा दूरदराज के पिछड़े इलाकों में सुशासन की हालत पतली है।

3. नक्सलवाद की समस्या का विस्तार–नक्सलवादी से प्रारम्भ हुआ यह नक्सलवाद धीरे-धीरे देश के मध्य पूर्वी भागों में फैल गया। वर्ष 2004 में माओवादी विद्रोही संगठन पीपुल्स वार ग्रुप और माओवादी कम्युनिस्ट सेन्टर ऑफ इण्डिया एक हो गये। उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी आफ इण्डिया (माओवादी) का गठन किया। नक्सलवादियों का यह दावा है कि वे गरीब ग्रामीण जनता के हमदर्द हैं, खासकर दलितों और आदिवासियों के पक्षधर हैं।

एक आकलन के अनुसार बीस राज्यों के करीब दो सौ जिलों में नक्सली किसी न किसी रूप में मौजूद हैं। जिन राज्यों में नक्सलवाद पूरे प्रभाव के साथ मौजूद है उनमें झारखण्ड, बिहार, आन्ध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, प. बंगाल प्रमुख हैं।

4. नक्सली हमले-नक्सली हिंसा आज सम्पूर्ण देश के लिए गम्भीर चुनौती बनी हुई है। अब तक हजारों लोग इस हिंसा के शिकार हो चुके हैं। एक सर्वेक्षण के मुताबिक अब तक 10000 से भी अधिक लोग नक्सली हिंसा में अपनी जानें गंवा चुके हैं। वर्ष 2010 में नक्सलियों द्वारा कई हमले किये गये जिनमें 6 अप्रेल, 2010 को छत्तीसगढ़ के दांतेवाड़ा जिले की घटना महत्त्वपूर्ण है जिसमें सीआरपीएफ

के 76 जवानों को मौत के घाट उतार दिया गया। इसके अतिरिक्त 27 मई, 2010 को नक्सलियों द्वारा रेल की पटरी उड़ाने से मुम्बई से कोलकाता जा रही ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस के 13 डिब्बे पटरी से उतर गये, जिससे 150 से भी अधिक लोगों ने प्राण गंवाए। सन् 2012 से 2015 तक झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और बिहार में अनेक स्थानों पर नक्सलियों ने केन्द्रीय सुरक्षा बलों को अपना निशाना बनाया। वर्तमान में छत्तीसगढ़ का आदिवासी क्षेत्र नक्सली हमलों का केन्द्र बना हुआ है।

5. नक्सलवाद की समस्या के समाधान हेतु प्रयास-नक्सलवाद की समस्या के समाधान हेतु सरकार ने 14 सूत्री योजना तैयार की है। इस योजना में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के आर्थिक-सामाजिक विकास पर विशेष जोर दिया जा रहा है और राज्य सरकारों को निर्देश दिए गए हैं कि वे भूमि सुधार तेजी से लागू करें। बुनियादी सुविधाओं के विकास के साथ पिछड़े एवं दूरदराज के इलाकों में युवा वर्ग को रोजगार देने और क्षेत्रीय अधिकार देने की व्यवस्था की जा रही है।

6. उपसंहार—इस प्रकार नक्सलवाद भारत के आदिवासी, शोषित, दलित व . श्रमिक तबके के असन्तोष का परिणाम है। भारत सरकार द्वारा इस समस्या के स्थायी.. समाधान हेतु हिंसात्मक साधनों के स्थान पर सुधारात्मक उपायों को लागू किया जाना चाहिए।

16, बाल-विवाह : एक अभिशाप संकेत बिन्दु-

1. प्रस्तावना
2. बाल-विवाह की कुप्रथा
3. बाल-विवाह का अभिशाप
4. समस्या के निवारणार्थ उपाय
5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना–भारतीय संस्कृति में सोलह संस्कारों में विवाह-संस्कार का विशेष महत्त्व है। वैदिक काल में यह संस्कार पवित्र भावनाओं का परिचायक था, परन्तु परवत काल में इसमें अनेक बुराइयाँ एवं कुप्रथाएँ समाविष्ट हो गई। इन्हीं विकृतियों के फलस्वरूप हमारे देश में अनमेल विवाह तथा बाल-विवाह का प्रचलने हुआ, जो कि हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन के लिए घोर अभिशाप है।

2. बाल-विवाह की कुप्रथा-इस कुप्रथा का प्रचलन मध्यकाल में हुआ, जब विदेशी-विधर्मी यवन-तुर्क आक्रान्ताओं ने अपनी वासना की पूर्ति के लिए कन्याअपहरण एवं जबर्दस्ती रोटी-बेटी का सम्बन्ध बनाने की कुचाल चली। इस कारण भारतीय हिन्दू समाज में अशिक्षित एवं अशक्त लोगों ने अपनी कन्या का बालपन में ही विवाह कराना उचित समझा। दहेज प्रथा के कारण भी बाल-विवाह का प्रचलन हुआ। बालक-बालिका पूर्णतया नासमझ रहने से अपने विवाह-संस्कार का विरोध भी नहीं कर पाते और बाल-विवाह में अधिक दहेज भी नहीं देना पड़ता। इसी कारण यह कुप्रथा निम्न-मध्यम वर्ग में विशेष रूप से प्रचलित हुई।

3. बाल-विवाह का अभिशाप-विवाह-संस्कार में कन्यादान पवित्र मांगलिक कार्य माना जाता है। परन्तु इसमें प्रथा दहेज के रूप में उत्तरोत्तर विकृति बढ़ती रही, फलस्वरूप लोग कन्या को भार मानने लगे तथा बालपन में ही उसका विवाह करवा कर अपने कर्तव्य से मुक्त होने लगे। परन्तु इस गलत परम्परा से समाज में अनेक समस्याओं का जन्म हुआ। बचपन में ही विवाह हो जाने से कम उम्र में ही सन्तानोत्पत्ति होने लगती है। जनसंख्या की असीमित वृद्धि तथा निम्नवर्ग के जीवनस्तर में निरन्तर गिरावट का एक कारण यह भी है। बालिका-वधू को शिक्षा प्राप्ति का मौका नहीं मिलता है। कुछ तो असमय विधवा भी हो जाती हैं और अभिशप्त जीवन जीने को विवश रहती हैं। इन सब बुराइयों को देखने से बाल-विवाह हमारे समाज के लिए एक अभिशाप ही है।

4. समस्या के निवारणार्थ उपाय-बाल-विवाह की बुराइयों को देखकर समय-समय पर समाज-सुधारकों ने जन-जागरण के उपाय किये। भारत सरकार ने इस सम्बन्ध में कठोर कानून बनाया है और लड़कियों का अठारह वर्ष से कम तथा लड़कों का इक्कीस वर्ष से कम आयु में विवाह करना कानूनन निषिद्ध कर रखा है। फिर भी बाल-विवाह निरन्तर हो रहे हैं। अकेले राजस्थान के गाँवों में वैशाख मास में अक्षय तृतीया को हजारों बाल-विवाह होते हैं । सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार अब विवाह का पंजीकरण करना कानूनन अनिवार्य हो गया है। इससे भी अब बाल-विवाह पर रोक लग सकती है। सरकार द्वारा बालविवाह की कुप्रथा को रोकने के लिए और भी कठोर उपाय किये जाने चाहिए। समाज-सुधारकों को इस दिशा में भरसक प्रयास करने चाहिए।

5. उपसंहार–बाल-विवाह ऐसी कुप्रथा है, जिससे वर-वधू का भविष्य अन्धकारमय बन जाता है। इससे समाज में कई विकृतियाँ आ जाती हैं, कभी-कभी यौनाचार भी हो जाता है। अतः इस कुप्रथा का निवारण अपेक्षित है, तभी समाज को इस अभिशाप से मुक्त कराया जा सकता है।

17. बढ़ते हुए फैशन का दुष्प्रभाव
अथवा
युवा वर्ग और फैशन
अथवा
फैशन की व्यापकता और उसका दुष्प्रभाव संकेत बिन्दु-

1. प्रस्तावना
2. फैशनपरस्ती का प्रचलन
3. फैशन के विविध रूप
4. फैशन का दुष्प्रभाव एवं हानि
5. उपसंहार।।

1. प्रस्तावना-आज आम नागरिक भौतिकवादी प्रवृत्ति से ग्रस्त होकर जहाँ सब कुछ भोगना चाहता है, वहीं वह प्रगतिशीलता एवं नयेपन के नाम पर जिन्दगी को फैशनपरस्ती में ढालना उचित मानता है। यही कारण है कि आज को शिक्षित युवा वर्ग नित्य नये फैशन-शो की ओर आकृष्ट रहता है। अब तो हर क्षेत्र में, हर वर्ग एवं समाज में उत्तरोत्तर फैशन-परस्ती का मोह बढ़ता जा रहा है। प्रौढ़ लोग भी फैशन-शो में स्वयं को सम्मिलित करने में गौरव का अनुभव कर रहे हैं।

2. फैशनपरस्ती का प्रचलन–बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव से समाज के खुलेपन की नींव पड़ी। फिर धन बटोरने के आशय से बनाई गई फिल्मों के द्वारा फैशनपरस्ती को बढ़ावा दिया गया। प्रारम्भ में युवाओं के द्वारा किसी फिल्मी अभिनेता की तरह बाल सँवारने, पैण्ट-कोट आदि पहनने तथा चलने-फिरने की नकल का फैशन चला। युवतियों के द्वारा भी अभिनेत्रियों

के पोशाक आदि की नकल की जाने लगी। परन्तु बाद में विभिन्न कम्पनियों के द्वारा अपने उत्पादों, प्रसाधन-सामग्रियों, वस्त्रों तथा डिजाइनों का तेजी से प्रचारप्रसार करने की दृष्टि से विज्ञापनबाजी की गई, आये दिन महानगरों में रेम्प-शो किये जाने लगे और दूरदर्शन के प्रत्येक चैनल पर उनका प्रतिदिन अधिकाधिक प्रसारण होने लगा, तो उनके प्रभाव से फैशनपरस्ती का ऐसा नशा चढ़ा कि अब वह नशा उतरने की बजाय लगातार चढ़ता ही जा रहा है। इससे सारा सामाजिक जीवन फैशनपरस्ती की चपेट में आ गया है।

3. फैशन के विविध रूप-वर्तमानकाल में फैशन के विविध रूप देखने को मिल रहे हैं। विशेषतः युवतियाँ एवं प्रौढ़ाएँ नये-नये फैशनों की विज्ञापनबाजी करती प्रतीत होती हैं। जैसे तंग जीन्स-टाप्स पहनना, पारदर्शी बिकनी पहनकर घूमना, नाभि तक नग्न-शरीर का प्रदर्शन करना, सौन्दर्य प्रसाधनों के द्वारा चेहरे को जरूरत से अधिक आकर्षक बन्ना आदि के फैशन के रूप उनमें प्रचलित हो गये हैं। उनकी देखा-देखी कहें अथवा बड़ी कम्पनियों की विज्ञापनबाजी का प्रभाव – मानें-युवा व प्रौढ़ व्यक्ति भी अब फैशनपरस्त हो गये हैं। इस प्रकार समाज में उठना-बैठना, वार्तालाप करना, चलना-फिरना, खाना-पहनना आदि सब फैशन के अनुसार ढाला जाने लगा है।

4. फैशन का दुष्प्रभाव एवं हानि–आज फैशनपरस्ती के कारण अनेक दुष्प्रभाव दिखाई दे रहे हैं। अब धार्मिक क्रियाओं तथा अनुष्ठानों को दकियानूसी आचरण माना जाता है। युवक-युवतियों की वेशभूषा काम-वासना को जाग्रत कराने वाली बन गई है। सिनेमाओं तथा दूरदर्शन के चैनलों पर प्रदर्शित अश्लील दृश्यों की खुलेआम नकल की जाती है। समाज में आये दिन व्यभिचार, यौनाचार एवं दुराचार की घटनाएँ घटती रहती हैं। इन सबका मूल कारण यह फैशनपरस्ती ही है। फैशन के लिए धन की काफी जरूरत होती है। कुछ युवा इस कारण धनार्जन के नाजायज तरीके अपनाते हैं, कुछ युवतियाँ कॉलगर्ल बन जाती हैं तथा सौन्दर्य प्रतियोगिताओं के नाम पर अपनी अस्मिता को बेच देने में जरा भी संकोच नहीं करती हैं। हमारी संस्कृति एवं समाज पर इस फैशनपरस्ती का अत्यधिक बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

5. उपसंहार–समय के अनुरूप स्वयं को ढालना उचित है, परन्तु कोरे फैशन . के मोह में पड़कर स्वयं को अध:पतन की ओर धकेलना उचित नहीं है। सामाजिक जीवन पर बढ़ते हुए फैशन का जो दुष्प्रभाव पड़ रहा है, वह प्रायः सभी को ज्ञात है, लेकिन कोई इसका विरोध नहीं कर पा रहा है। अतएव बढ़ती हुई फैशनपरस्ती । पर नियन्त्रण रखना हमारा आवश्यक कर्तव्य बन गया है।

18. आतंकवाद : भारत के लिए चुनौती
अथवा
आतंकवाद : भारत की विकट समस्या संकेत बिन्दु-

1. प्रस्तावना
2. भारत में आतंकवाद
3. आतंकवादी घटनाएँ
4, आतंकवाद का दुष्परिणाम
5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना ‘आतंक’ का शाब्दिक अर्थ है-भय, त्रास या अनिष्ट बढ़ाना। नामरिकों पर हमले करना, सामूहिक नरसंहार करना, भय का वातावरण बनाना अथवा तुच्छ स्वार्थ की खातिर अमानवीय आचरण कर वर्चस्व बढ़ाना आतंकवाद कहलाता है। आतंकवाद कट्टर धार्मिकता, जातीयता एवं नस्लवादी उन्माद से उपजता है तथा शत्रु राष्ट्रों की भेद-नीति से बढ़ता है। भारत में उग्रवाद एवं आतंकवाद पड़ोसी देश पाकिस्तान द्वारा पोषित तथा कुछ स्वार्थी कट्टरपंथियों द्वारा छद्म रूप से संचालित है। वर्तमान में भारत में आतंकवाद एक विकट समस्या बन गया है।

2. भारत में आतंकवाद–भारत-पाक विभाजन के समय से ही धार्मिक कट्टरता एवं पाकिस्तानी नेताओं की तुच्छ स्वार्थपरता से जम्मू-कश्मीर में उग्रवाद चलने लगा । सन् 1989 में जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रन्ट नाम से सशस्त्र अलगाववादी आन्दोलन प्रारम्भ हुआ। इसके साथ ही कुछ इस्लामी-तालिबानी संगठन उभरे, जिन्होंने ‘जेहाद’ के नाम पर आतंकवाद को बढ़ावा दिया। पाकिस्तान ने इन आतंकवादियों को प्रशिक्षण, आर्थिक सहायता, विस्फोटक सामग्री और अत्याधुनिक हथियार उपलब्ध कराये। ये सारे काम पाकिस्तान पर्दे के पीछे करता रहा और इसे मुस्लिम बहुल कश्मीरियों को आत्म-निर्णय की माँग से जोड़ता रहा। इन आतंकवादियों को अन्य इस्लामिक संगठनों से भी गुप्त रूप से मदद मिले रही है। इसी तरह भारत के पूर्वोत्तर सीमान्त राज्यों में कुछ अलगाववादी लोग आतंक फैला रहे हैं। इससे हमारे देश में आतंकवाद निरन्तर पैर पसार रहा है।

3. आतंकवादी घटनाएँ-पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी समय-समय पर भारत के विभिन्न भागों में अमानवीय घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। दिल्ली के लाल किले पर, कश्मीर विधानसभा भवन पर, संसद भवन पर, गांधीनगर अक्षर धाम पर तथा मुम्बई पर आतंकवादियों ने जो हमले किये, भीड़भाड़ वाले अनेक स्थानों पर बम-विस्फोट करके जान-माल की जो हानि पहुँचाई और भयानक क्रूरता का परिचय दिया, वह राष्ट्र की आत्मा के लिए एक चुनौती है। अब भी जम्मू-कश्मीर की सीमा पर प्रतिदिन भाड़े के आतंकवादियों के साथ हमारे सैनिकों की मुठभेड़ें होती रहती हैं। इनमें हजारों आतंकवादी मारे गये हैं और पकड़े भी गये हैं। हमारे सैनिकों को भी हानि झेलनी पड़ी है। प्रतिवर्ष आतंकी घटनाओं में सैकड़ों निर्दोष नागरिक मारे जा रहे हैं। इससे सन्त्रास का वातावरण बढ़ रहा है।

4. आतंकवाद का दुष्परिणाम-वर्तमान में आतंकवाद शत्रु-राष्ट्रों के कूटनीतिक इशारों पर छद्म-युद्ध का रूप धारण करने लगा है। जिसका :: दुष्परिणाम यह है कि भारत को अपनी सीमाओं पर सेना तैनात करनी पड़ रही है। आतंकवाद-विरोधी पुलिस-बल का गठन भी किया गया है। आतंकवाद को रोकने में काफी धन व्यय हो रहा है । कई निर्दोष लोग इनके शिकार हो रहे हैं, सैनिक शहीद हो रहे हैं तथा राष्ट्रीय सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाया जा रहा है। आतंकवादियों के आत्मघाती हमले एवं षड्यन्त्र स्वतन्त्र भारत की प्रभुसत्ता के लिए विकट चुनौती बन रहे हैं।

5. उपसंहार-आतंकवाद यद्यपि कम नहीं हो रहा है, परन्तु भारत सरकार इस दिशा में गम्भीरता से प्रयास कर रही है। सेनाएँ एवं विशेष पुलिसः दस्ते आतंकवादियों की चुनौतियों का उचित जवाब दे रहे हैं। आतंकवाद अब विश्व-समस्या बन गया है। मानवता के हित में इसका नामोनिशान मिटाना परमावश्यक कर्तव्य है।

19. कम्प्यूटर के बढ़ते कदम और प्रभाव
अथवा
कम्प्यूटर के बढ़ते चरण
अथवा
कम्प्यूटर के चमत्कार संकेत बिन्दु-

1. प्रस्तावना-परिचय
2, कम्प्यूटर के बढ़ते चरण
3. कम्प्यूटर के विविध प्रयोग एवं प्रभाव
4. उपसंहार।।

1. प्रस्तावना वर्तमान काल में विज्ञान ने आश्चर्यजनक प्रगति की है। इस प्रगति में कम्प्यूटर का आविष्कार आधुनिक युग की सर्वाधिक चमत्कारी घटना है। सन् 1926 में टेलीविजन के आविष्कार के बाद वैज्ञानिकों ने अनुसंधान करके मानवमस्तिष्क के रूप में कम्प्यूटर का आविष्कार किया। कम्प्यूटर देखने में टाइपराइटर और टेलीविजन का संयुक्त रूप है। यह तीव्र गति से प्रोसेसिंग कर एक सेकण्ड में तीस लाख तक की गणना कर सकता है। इस प्रकार गणित-सांख्यिकी के क्षेत्र में कम्प्यूटर का आविष्कार आश्चर्यजनक है और यह हजारों मानवों के मस्तिष्कों का कार्य एक-साथ कुछ ही सेकण्डों में कर सकता है।

2. कम्प्यूटर के बढ़ते चरण–वर्तमान काल में कम्प्यूटर का उपयोग मुद्रण, वैज्ञानिक अनुसन्धान, अन्तरिक्ष विज्ञान एवं कृत्रिम उपग्रहों के प्रक्षेपण के साथ ही अनेक कार्यों में किया जा रहा है। इसमें कई सूचनाएँ एक साथ एकत्र रखी जा सकती हैं तथा असाध्य सांख्यिकीय प्रश्नों को पूर्णतया शुद्ध हल किया जा सकता है। शुद्ध गणना के लिए यह अचूक साधन है। आज बैंकों में, रेलवे कार्यालयों में, औद्योगिक इकाइयों के संचालन में, आर्थिक प्रबन्धन एवं सैन्य-गतिविधियों और खगोलीय गणना में कम्प्यूटर का प्रयोग प्राथमिकता के साथ हो रहा है। ज्योतिष गणना, मौसम की भविष्यवाणी, कृत्रिम भू-उपग्रहों एवं अन्तरिक्ष-यानों के प्रक्षेपण, वायुयानों के संचालन तथा सूचना प्रौद्योगिकी एवं मीडिया के क्षेत्र में कम्प्यूटर को विशेष रूप से अपनाया जा रहा है। ई-मेल, ई-कॉमर्स, इण्टरनेट, सेलफोन आदि के प्रसार के साथ मनोरंजन के लिए भी कम्प्यूटर को अपरिहार्य माना जा रहा है।

3. कम्प्यूटर के विविध प्रयोग एवं प्रभाव-अब कम्प्यूटर का उपयोग अनेक क्षेत्रों में हो रहा है। छोटे व्यवसायी से लेकर बड़े उद्योग-धन्धों, रेल-बस टिकटों के आरक्षण, आवागमन, शेयर बाजारों, मनोरंजन के कार्यक्रमों आदि में कम्प्यूटर का उपयोग आम बात हो गई है। दूरसंवेदी उपग्रहों से लेकर दूरसंचार के सभी कार्यकलापों में कम्प्यूटर का प्रयोग क्रान्तिकारी सिद्ध हो रहा है। चिकित्सा के क्षेत्र में जटिल ऑपरेशन करने में, परमाणु आयुधों के निर्माण में, जटिल यान्त्रिक इकाइयों के संचालन एवं श्रम-कौशल के संवर्द्धन में इसकी उपयोगिता बढ़ रही है। विभिन्न परीक्षाओं के अंकन-कार्य, परिणाम प्रदर्शन, पानी-बिजली आदि के लाखों बिल बनाने में इसका उपयोग अनिवार्य-सा हो गया है। इस तरह कम्प्यूटर का विविध क्षेत्रों में प्रयोग होने से मानव-शक्ति का विकास उत्तरोत्तर हो रहा है।

4. उपसंहार-कम्प्यूटर विज्ञान को क्रान्तिकारी आविष्कार है। यह मानव का परिष्कृत एवं शक्तिशाली मस्तिष्क जैसा है। इसमें हजारों संकेतों एवं गणनाओं को विशुद्ध रूप से संग्रह-स्मरण करने की क्षमता है। वर्तमान युग में जीवन के हर क्षेत्र में इसे अपनाया जा रहा है और इसका शिक्षण-प्रशिक्षण प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक एवं उपयोगी है।

20. समय का सदुपयोग संकेत बिन्दु-

1. प्रस्तावना
2. समय के सदुपयोग की जरूरत
3. समय के सदुपयोग से लाभ
4. समय के दुरुपयोग से हानि
5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-मानव-जीवन में समय सबसे अधिक मूल्यवान् है। समय को ‘काल’ भी कहते हैं। समय निरन्तर गतिशील, क्षणभंगुर और परिवर्तनशील है। मनुष्य ने आज ज्ञान-विज्ञान की सहायता से भौतिक साधनों पर अधिकार कर लिया है, परन्तु समय अपराजेय है। भूली हुई विद्या, खोई हुई इज्जत, नष्ट हुआ धन, गिरा हुआ स्वास्थ्य, और बिछुड़े हुए मित्र या सम्बन्धी पुनः मिल सकते हैं, परन्तु बीता हुआ समय पुनः नहीं मिलता है। समय सबके लिए समान है और समय कभी किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। समय का सदुपयोग न करने वाला पछताता है। इसीलिए कहा गया है कि “समय चूकि पुनि का पछिताने ।’

2, समय के सदुपयोग की जरूरत-मानव-जीवन की सफलता का रहस्य समय के सदुपयोग में छिपा हुआ है। समय के सदुपयोग से सामान्य व्यक्ति भी महान् बन जाता है। संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं, उनके जीवन की सफलता का रहस्य समय का सदुपयोग ही रहा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी समय के बहुत पाबन्द थे। वे एक-एक क्षण का पूरा ध्यान रखते थे। हरेक समाज और देश की प्रगति में समय के सदुपयोग को मुख्य कारण माना जाता है। समय रोके नहीं रुकता, वह तो चलता ही रहता है, इसलिए समय का सदुपयोग न करने वाला बाद में पछताता

3. समय के सदुपयोग से लाभ-जीवन में समय के सदुपयोग से अनेक लाभ मिलते हैं। इससे व्यक्ति आलसी नहीं रहता है। प्रत्येक काम उचित समय पर करने से बाद में पछताना नहीं पड़ता है। समय के सदुपयोग से अपना हित तथा समाज व देश का हित-कार्य भी सध जाता है। समय के सदुपयोग की आदत पड़ने से दैनिक जीवनचर्या सुव्यवस्थित हो जाती है तथा किसी भी काम में हानि या नुकसान नहीं उठाना पड़ता है। समय ही बलाबल को साधता है। अतः समय का सदुपयोग करना सब तरह से लाभकारी रहता है।

4. समय के दुरुपयोग से हानि–समय का उचित उपयोग न करने से जीवन में निराशा, असफलता, असन्तोष और हानि ही हाथ लगती है। समय का दुरुपयोग करने वाला व्यक्ति आलसी, गप्पी, पर-निन्दक, व्यर्थ घूमने वाला, नासमझ एवं कर्त्तव्यहीन होता है। ऐसा व्यक्ति जीवनभर अभावों एवं कष्टों से घिरा रहता है। समय का सदुपयोग न करने से व्यक्तित्व का पतन होता है, चरित्र की हानि होती है, और ऐसे व्यक्ति को बाद में अपने आचरण पर पछतावा भी होता है।

5. उपसंहार–वर्तमान में समय को लेकर भारतीय लोग बदनाम हैं। प्रायः – भारतीयों को समय का महत्त्व न समझने वाला माना जाता है। समय का सदुपयोग करने से न केवल व्यक्ति का, अपितु समस्त समाज एवं राष्ट्र का हित होता है। इससे उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है। समय का सदुपयोग ही सभी सफलताओं का मूलमन्त्र है।

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