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RBSE Class 11 Sanskrit छन्द-परिचयः

June 25, 2019 by Safia Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 11 Sanskrit छन्द-परिचयः

पाठ्यपुस्तकस्य अभ्यास प्रश्नोत्तराणि

प्रश्न 1.
कोऽलंकारः? साहित्ये अलङ्काराणां का उपयोगिता? (अलंकार क्या है? साहित्य में अलंकारों की क्या उपयोगिता है?)
उत्तर:
‘अलङ्करोति इति अलङ्कारः, अलङ्क्रियन्ते शब्दाः अर्थाः वा अनेनेति अलंङ्कारः।” (अर्थात् जैसे शरीर की सुन्दरता बढ़ाने के लिए हार-कुण्डल आदि आभूषण हम धारण करते हैं, उसी प्रकार काव्यरूपी शरीर की शोभा बढ़ाने के लिए जिन तत्वों अथवा धर्मों का प्रयोग किया जाता है, वे ही अलंकार कहे जाते हैं।)

उपयोगिता-काव्यस्य शोभा वर्धनाय अलङ्काराः आवश्यकाः भवन्ति। ( काव्य की शोभा बढ़ाने के लिए अलंकार . आवश्यक होते हैं।)

प्रश्न 2.
अलङ्काराः कतिविधाः? उदाहरणसहितं लिखत। (अलंकार कितने प्रकार के होते हैं? उदाहरण सहित लिखिए।)
उत्तर:
अलङ्काराः त्रिविधाः भवन्ति

  1. शब्दालङ्कारः यथा-अनुप्रास-यमकादयः।
  2. अर्थालङ्कार:-यथा-उपमा, रूपकम्, इत्यादयः।
  3. उभयालङ्कारः-यथा-पुनरुक्तवदाभासः।

(अलंकार तीन प्रकार के होते हैं-

  1. शब्दालंकार-जैसे-अनुप्रास, यमक आदि।
  2. अर्थालंकार-जैसे-उपमा, रूपक आदि।
  3. उभयालंकार-जैसे-पुनरुक्तवदाभास।)

प्रश्न 3.
अनुप्रासालङ्कारस्य लक्षणोदाहरणानि लिखत। (अनुप्रास अलंकार का लक्षण एवं उदाहरण लिखिए।)
उत्तर:
अनुप्रासः-लक्षणम्-वर्णसाम्यमनुप्रासः। (अर्थात् जहा वर्गों की समानता होती है वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। यहाँ स्वरों की विषमता होने पर भी व्यञ्जनों की समता (साम्य) से अनुप्रास होता है।)

उदाहरणम्-
वहन्ति वर्षन्ति नदन्ति भान्ति ध्यायन्ति नृत्यन्ति समाश्वसन्ति।
नद्यो: घनाः मत्तगजाः वनान्ताः प्रियाविहीनाः शिखिनः प्लवङ्गाः।

प्रश्न 4.
अधोलिखितानाम् अलङ्काराणां लक्षणोदाहरणानि लिखत(निम्नलिखित अलंकारों के लक्षण एवं उदाहरण लिखिए-)
(क) उपमा
(ख) रूपकम्
(ग) उत्प्रेक्षा
(घ) अतिशयोक्तिः
उत्तर:
(क) उपमा-लक्षणम्-‘साधर्म्यमुपमा भेदे”।
उदाहरणम्-
वागर्थाविव सम्पृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये।
जगतः पितरौ वन्दे पार्वती-परमेश्वरौ।

(ख) रूपकम्-लक्षणम्- “तद्रूपकमभेदो यः उपमानोपमेययोः”
उदाहरणम्-
संसार विषवृक्षस्य द्वे फले रसवत्फले।
काव्यामृतरसास्वादः सङ्गमः सज्जनैः सह।

(ग) उत्प्रेक्षा-लक्षणम्-‘सम्भावनमथोत्प्रेक्षा प्रकृतस्य समेन यत्।”
उदाहरणम्-
लिम्पतीव तमोऽङ्गानि वर्षतीवाञ्जनं नभः।
असत्पुरुषसेवेव दृष्टिविफलतां गता।।

(घ) अतिशयोक्तिः -लक्षणम्-सिद्धत्वेऽध्यवसायस्यातिशयोक्तिर्निगद्यते।
उदाहरणम्-
यूथेऽपयाते हस्तिग्रहणोद्यतेन केन कलभो गृहीतः।

प्रश्न 5.
अधोलिखितपङ्क्तिषु के अलङ्काराः? (निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-कौन से अलंकार हैं?)
(क) अन्यत्सौकुमार्यमन्यैव च कापि वर्तनच्छाया।
श्यामा सामान्यप्रजापतेः रेखैव च न भवति।

(ख) यः स्वभावो हि यस्यास्ति स नित्यं दुरतिक्रमः।
श्वा यदि क्रियते राजा तत्किं नाश्नात्युपानहम्।

(ग) रविसङ्क्रान्तसौभाग्यस्तुषारारुणमुण्डलः।
नि:श्वासान्ध इवादर्शश्चन्द्रमा न प्रकाशते।

(घ) नवपलाशपलाशवनं पुरः स्फुटपराग-परागतपङ्कजम्।
मृदुलतान्त-लतान्तमलोकयत् स सुरभिं सुरभिं समनोहरैः।

(ङ) अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।
उत्तर:
(क) अतिशयोक्तिः,
(ख) अर्थान्तरन्यासः,
(ग) उपमा,
(घ) यमकम्,
(ङ) रूपकम्।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तराणि वस्तुनिष्ठ प्रश्नाः
शुद्ध-उत्तरस्य क्रमाक्षरं चित्वा लिखत। (सही उत्तर का क्रमाक्षर चुनकर लिखिए।)

प्रश्नः 1.
अर्थालङ्कारः भवति (अर्थालंकार होता है):
(क) शब्दाश्रितः
(ख) काव्याश्रितः
(ग) ‘अंर्थाश्रितः
(घ) शब्दार्थाश्रितः।
उत्तर:
(ग) ‘अंर्थाश्रितः

प्रश्नः 2.
अधस्तनेषु अर्थालङ्कारः अस्ति (नीचे लिखे हुए में अर्थालंकार है):
(क) अनुप्रासः।
(ख) यमकम्
(ग) श्लेिषः
(घ) रूपकम्।
उत्तर:
(घ) रूपकम्।

प्रश्नः 3.
‘अलङ्करोति इति अलङ्कारः’ व्युत्पत्या अलङ्कारशब्देन किम् वस्तु तत्त्वं वा उच्यते? (‘अलङ्करोति इति अलङ्कारः’ इस व्युत्पत्ति से अलंकार किस वस्तु या तत्व को कहा जाता है?)
(क) शोभाधायकं
(ख) अर्थाधायकं
(ग) भावाधायकं
(घ) शब्दोधायकम्।
उत्तर:
(क) शोभाधायकं

प्रश्नः 4.
‘अलङ्कृतिः अलङ्कारः’ इति व्युत्पत्या कः अलङ्कारः? (‘अलङ्कृतिः अलङ्कारः’ इस व्युत्पत्ति से अलंकार क्या है?)
(क) शब्दबोधः
(ख) अर्थबोधः
(ग) शब्दार्थबोधः
(घ) सौन्दर्यबोधः।
उत्तर:
(घ) सौन्दर्यबोधः।

प्रश्नः 5.
एतेषु अलङ्कारेषु शब्दालङ्कार कः अस्ति? (इन अलंकारों में शब्दालंकार कौन-सा है?)
(क) यमकः
(ख) उपमा
(ग) उत्प्रेक्षा
(घ) दीपकः
उत्तर:
(क) यमकः

प्रश्नः 6.
एतेषु अलङ्कारेषु अर्थालङ्कार कः? (इन अलंकारों में अर्थालंकार कौन-सा है?)
(क) उपमा
(ख) अनुप्रासः
(ग) यमकः
(घ) श्लेषः।
उत्तर:
(क) उपमा

प्रश्नः 7.
“संसार विषवृक्षस्य द्वे एव रसवत् फले। काव्यामृत रसास्वादः सङ्गमः सज्जनैः सह।” उक्तम् उदाहरणं कस्य अलंकारस्य अस्ति? (उक्त उदाहरण किस अलंकार का है?)
(क) श्लेषस्य
(ख) रूपकस्य
(ग) उत्प्रेक्षायाः
(घ) यमकस्य।
उत्तर:
(ख) रूपकस्य

प्रश्नः 8.
मन्ये, शङ्के, ध्रुवम्, प्रायः, इव, नूनम् इत्यादिभिः चिनैः कः अलङ्कारः व्यज्यते?
(मन्ये, शङ्के, ध्रुवम्, प्रायः, इव, नूनम् आदि चिह्न से कौन सा अलङ्कार व्यक्त होता है?)
(क) उपमा
(ख) रूपक
(ग) उत्प्रेक्षा
(घ) सन्देहः।
उत्तर:
(ग) उत्प्रेक्षा

प्रश्नः 9.
यस्मिन् अलंकारे उपमेय-उपमानयोः सम्भावना व्यज्यते, सः अस्ति(जिस अलंकार में उपमेय-उपमान की सम्भावना व्यक्त होती है, वह है-)
(क) अर्थान्तरन्यासः
(ख) उत्प्रेक्षा
(ग) सन्देहः।
(घ) यमकः
उत्तर:
(ख) उत्प्रेक्षा

प्रश्नः 10.
यत्र दौ स्वतन्त्रवाक्यौ समर्थ्यसमर्थकभावेन तिष्ठतः तत्र कः अलङ्कारः भवति? (जहाँ दो स्वतन्त्र वाक्य समर्थ्य-समर्थक भाव से उपस्थित होते हैं वहाँ कौन सा अलंकार होता है?)
(क) अर्थान्तरन्यासः
(ख) उत्प्रेक्षा
(ग) यमकः
(घ) सन्देहः।
उत्तर:
(क) अर्थान्तरन्यासः

प्रश्नः 11.
‘लिम्पतीव तमोऽङ्गानि’ उदाहरणमस्ति- (लिम्पतीव तमोऽङ्गानि उदाहरण है-)
(क) सन्देहस्य
(ख) उत्प्रेक्षायाः
(ग) भ्रान्तिमानस्य
(घ) अर्थान्तरन्यासस्य
उत्तर:
(ख) उत्प्रेक्षायाः

प्रश्नः 12.
‘बृहत्सहायः कार्यान्तं क्षोदीयानपि गच्छति’ इति उदाहरणम् अस्ति(‘बृहत्सहायः कार्यान्तं क्षोदीयानपि गच्छति’ यह उदाहरण है)
(क) अर्थान्तरन्यासस्य
(ख) उत्प्रेक्षायाः
(ग) तुल्ययोगितायाः
(घ) दीपकस्य।
उत्तर:
(क) अर्थान्तरन्यासस्य

प्रश्नः 13.
‘नवपलाशपलाश वनं पुरः’ उदाहरणमस्ति-(नवपलाशपलाश वनं पुरः’ उदाहरण है-)
(क) श्लेषस्य
(ख) यमकस्य
(ग) उत्प्रेक्षायाः
(घ) अर्थान्तरन्यासस्य।
उत्तर:
(ख) यमकस्य

लघूत्तरात्मक प्रश्नाः
प्रश्न: 1.
कस्मिन् अलङ्कारे शब्दप्रयोगेण चमत्कारो भवति? (किस अलंकार में शब्द प्रयोग से चमत्कार होता है?)
उत्तर:
शब्दालङ्कारे शब्दप्रयोगेण चमत्कारो भवति। (शब्दालंकार में शब्द-प्रयोग से चमत्कार होता है।)

प्रश्नः 2.
अलङ्काराः कतिविधाः भवन्ति? (अलंकार कितने प्रकार के होते हैं?)
उत्तर:
अलङ्काराः त्रिविधाः भवन्ति-शब्दालङ्कारः, अर्थालङ्कारः उभयालङ्कारः च। (अलंकार तीन प्रकार के होते हैं-शब्दालंकार, अर्थालंकार और उभयालंकार।)

प्रश्नः 3.
स्वरव्यञ्जनसमुदायस्य क्रमेण आवृत्तिः कस्मिन् अलङ्कारे भवति? (स्वरव्यंजन समुदाय की क्रमानुसार आवृत्ति किस अलंकार में होती है?)
उत्तर:
स्वरव्यञ्जनसमुदायस्य क्रमेण आवृत्तिः ‘यमक’ इत्यस्मिन् अलङ्कारे भवति। (स्वरव्यंजन समुदाय की क्रमानुसार आवृत्ति यमक अलंकार में होती है।)

प्रश्नः 4.
उत्प्रेक्षालङ्कारस्य कतिपयानि चिह्नानि लिख्यताम्। (उत्प्रेक्षा अलंकार के कुछ चिह्नों को लिखिए।)
उत्तर:
उत्प्रेक्षालङ्कारस्य कतिपयानि चिह्नानि मन्ये, शङ्के, ध्रुवम्, प्रायः, नूनम् इव च सन्ति। (उत्प्रेक्षा अलंकार के कतिपय चिह्न मन्ये, शङ्के, ध्रुवम्, प्रायः, नूनम् तथा इव हैं।)

प्रश्नः 5.
काव्यशास्त्रे शब्दार्थयोः सौन्दर्यवर्धकं तत्त्वं किम् उच्यते? (काव्यशास्त्र में शब्द और अर्थ के सौन्दर्यवर्द्धक तत्त्व को क्या कहते हैं?)
उत्तर:
काव्यशास्त्रे शब्दार्थयोः सौन्दर्यवर्धकं तत्त्वम् अलङ्कार’ इति उच्यते। (काव्यशास्त्र में शब्द और अर्थ के सौन्दर्यवर्द्धक तत्त्व को ‘अलंकार’ कहते हैं।)

प्रश्नः 6.
यस्मिन् अलङ्कारे काव्यशोभा शब्दाश्रिता, सः किम् उच्यते? (जिस अलंकार में काव्य की शोभा शब्द पर आश्रित होती है, उसे क्या कहा जाता है?)
उत्तर:
यस्मिन् अलङ्कारे काव्यशोभा शब्दाश्रिता, स: शब्दालङ्कारः उच्यते। (जिस अलंकार में काव्य की शोभा शब्द पर आश्रित होती है, उसे शब्दालंकार कहते हैं।)

प्रश्नः 7.
कस्मिन् अलङ्कारे आवृत्तानां शब्दानाम् अर्थः पृथक्-पृथक् भवति? (किस अलंकार में आवृत्त शब्दों का अर्थ अलग-अलग होता है?)।
उत्तर:
यमकालंकारे आवृत्तानां शब्दानाम् अर्थः पृथक्-पृथक् भवति। (यमक अलंकार में आवृत्त शब्दों का अर्थ अलग-अलग होता है।)

प्रश्नः 8.
कस्मिन् अलङ्कारे उपमानस्य अस्तित्वं लोकसिद्धत्वं वा आवश्यकं न भवति? (किस अलंकार में उपमान का अस्तित्वे या लोकसिद्धत्व आवश्यक नहीं होता?)
उत्तर:
उत्प्रेक्षालङ्कारे उपमानस्य अस्तित्वं लोकसिद्धत्वं वा आवश्यकं न भवति। (उत्प्रेक्षा अलङ्कार में उपमान का अस्तित्व या लोकसिद्धत्व आवश्यक नहीं होता।)

प्रश्नः 9.
शब्दालङ्कारद्वयस्य कस्यचिद् नाम लिखत। (किन्हीं दो शब्दालंकारों के नाम लिखिए।)
उत्तर:
अनुप्रासः, यमकः। (अनुप्रास, यमक।)

प्रश्नः 10.
अर्थालङ्कारद्वयस्य नाम लिख्यताम्। (दो अर्थालंकारों के नाम लिखिए।)
उत्तर:
उत्प्रेक्षा, रूपकः (उत्प्रेक्षा, रूपक)।

दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्नाः

प्रश्नः 1.
अधोलिखितेषु अलंकारेषु द्वयोः उदाहरणं लिखत- (नीचे लिखे हुए अलंकारों में से दो के उदाहरण लिखिए-) अनुप्रासः, यमकम्, श्लेषः।
उत्तर:
अनुप्रासालंकारस्य उदाहरणम् (अनुप्रास अलंकार का उदाहरण)
लताकुञ्ज गुञ्जन् मदवदलिपुञ्ज चैपलयन्,
समालिङ्गनङ्ग द्रुततरमनङ्ग प्रबलयन्।
मरुन्मन्दं मन्दं दलितमरविन्दं तरलयन्,
रजोवृन्दं विन्दन् किरति मकरन्दं दिशि दिशि।

यमकालंकारस्य उदाहरणम् (यमक अलंकार का उदाहरण)
अस्ति यद्यपि सर्वत्र नीरं नीरजराजितम्।
रमते न मरालस्य मानसं मानसं विना।

श्लेषालंकारस्य उदाहरणम् (श्लेष अलंकार का उदाहरण)
पृथु कार्तस्वरपात्रं भूषित नि:शेष परिजनं देवा।
विलसत्करेणुगहनं सम्प्रति सममावयोः सदनम्।

प्रश्न: 2.
अधोलिखितयोः अलंकारयोः एकस्य सोदाहरणं लक्षणं लिखत(नीचे लिखे हुए अलंकारों में से एक का उदाहरण सहित लक्षण लिखिए-) उपमा, रूपकम्।
उत्तर:
उपमा
लक्षणम्-प्रस्फुटं सुन्दरं साम्यमुपमेत्यभिधीयते।
उदाहरणम्-हरस्तु किञ्चित् परिलुप्तधैर्यश्चन्द्रोदयारम्भ इवाम्बुराशि।
उमामुखे बिम्बफलाधरोष्ठे व्यापारयामास विलोचनानि।

रूपकम्-
लक्षणम्- तद्रूपकमभेदो य उपमानोपमेययोः।
उदाहरणम्-
पर्याप्तपुष्पस्तबकस्तनाभ्यः स्फुरत्प्रवालोष्ठमनोहराभ्यः।
लतावधूभ्यस्तरवोऽप्यवापुविनम्रशाखा भुजगन्धनानि।

प्रश्नः 3.
अधोलिखितपरिभाषासु रिक्तस्थानपूर्तिं कुरुत– (नीचे लिखी हुई परिभाषाओं में रिक्तस्थान की पूर्ति कीजिए-)
(क) अनुप्रासः शब्दसाम्यं ……………………………….. स्वरस्य यत्।
(ख) श्लिष्टैः पदैरनेकार्थाभिधाने ………………………………..।
उत्तर:
(क) अनुप्रासः शब्दसाम्यं वैषम्येऽपि स्वरस्य यत्।
(ख) श्लिष्टैः पदैरनेकार्थाभिधाने श्लेष इष्यते।

प्रश्नः 4.
(क) शब्दालंकार : कः? (शब्दालंकार क्या है?)
उत्तर:
शब्दाश्रितः योऽलंकारः, सः शब्दालंकार.।
(जो अलंकार शब्द पर आधारित होता है, वह शब्दालंकार है।)

(ख) उभयालंकारः कः? (उभयालंकार क्या है?)
उत्तर:
योऽलंकारः शब्दाश्रितः अर्थाश्रितः इत्थम् उभयाश्रितः भवति, सः उभयालंकारः। (जो अलंकार शब्दाश्रित तथा अर्थाश्रित है, इस प्रकार दोनों का आश्रय प्राप्त करता है, वह उभयालंकार है।)

प्रश्नः 5.
अधोलिखितयोः अलंकारयोः एकस्य उदाहरणं लिखत(नीचे लिखे हुए अलंकारों में से एक का उदाहरण लिखिए-) उपमा, अर्थान्तरन्यासः।
उत्तर:
उपमा- तदन्तरे सा विरराज धेनुर्दिनक्षपामध्यगतेव सन्ध्या।

अर्थान्तरन्यासः-
पादाहतं तदुत्थाय मूर्धानमधिरोहति।
स्वस्थादेवापमानेऽपि देहिनस्तद्वरं रजः॥

प्रश्नः 6.
अधोलिखितासु पंक्तिषु केऽलंकाराः–(नीचे लिखी हुई पंक्तियों में कौन-कौन से अलंकार हैं-)
(क) वहन्ति वर्षन्ति नदन्ति भान्ति।
(ख) नवपलाशपलाश वनं पुरः।
(ग) सुग्रीव इव शान्तारिर्धाराभिरभिषिच्यते।
उत्तर:
(क) अनुप्रासः,
(ख) यमकम्,
(ग) उपमा।

प्रश्न 7.
(क) अर्थान्तरन्यासस्य लक्षणं दीयताम्। (अर्थान्तरन्यास अलंकार का लक्षण दीजिए।)
उत्तर:
भवेद् अर्थान्तरन्यासोऽनुक्तार्थान्तराऽभिधा।

(ख) अर्थान्तरन्यासः शब्दालङ्कारोऽस्ति अर्थालंङ्कारो वा? (अर्थान्तरन्यास शब्दालङ्कार है अथवा अर्थालङ्कार?)
उत्तर:
अर्थान्तरन्यासः अर्थालङ्कारोऽस्ति। (अर्थान्तरन्यास अर्थालङ्कार है।)

प्रश्नः 8.
अधोलिखितेषु उदाहरणेषु केऽलंकाराः? (नीचे लिखे हुए उदाहरणों में कौन-कौन अलंकार हैं?)
(क) लिम्पतीव तमोऽङ्गानि वर्षतीवाञ्जन नभः।
असत्पुरुषसेवेव दृष्टिविफलतां गता।

(ख) बृहत्सहायः कार्यान्तं क्षोदीयानपि गच्छति।
सम्भूयाम्भोधिमभ्येति महानद्या नगापगाः।

(ग) यावदर्थपदां वाचमेवमादाय माधवः।
विरराम महीयांसः प्रकृत्या मितभाषिणः।
उत्तर:
(क) उत्प्रेक्षा,
(ख) अर्थान्तरन्यासः,
(ग) अर्थान्तरन्यासः।

प्रश्नः 9.
अपोलिखितासु परिभाषासु रिक्तस्थानपूर्तिं कुरुत- (नीचे लिखी हुई परिभाषाओं में रिक्तस्थान की पूर्ति कीजिए-)
(क) तद्रूपकम्’ ……………………………….. “य उपमानोपमेययोः।
(ख) अनुप्रासः ……………………………….. वैषम्येऽपि ……………………………….. यत्।
(ग) श्लिष्टैः पर्दै ……………………………….. श्लेष उच्यते।
उत्तर:
(क) तद्रूपकम् अभेदो ये उपमानोपमेययोः।
(ख) अनुप्रासः शब्दसाम्यं वैषम्येऽपि स्वरस्य यत्।
(ग) श्लिष्टैः पदैः अनेकार्थाभिधाने श्लेष उच्यते।

प्रश्न: 10.
(क) अनुप्रासस्य लक्षणं लिखत। (अनुप्रासं का लक्षण लिखिए।)
उत्तर:
अनुप्रासः शब्दसाम्यं वैषम्येऽपि स्वरस्य यत्।

(ख) चमकस्य एकम् उदाहरणं लिखत। (यमक का एक उदाहरण लिखिए।)
उत्तर:
नवपलाशपलाशवनं पुरः स्फुटपराग परागतः पङ्कजम्।

प्रश्न: 11.
(क) उपमालंकारस्य लक्षणं लिखत। (उपमालंकार का लक्षण लिखिए।)
उत्तर:
प्रस्फुटं सुन्दरं साम्यमुपमेत्यभिधीयते।

(ख) उप्रेक्षालंकारस्य एकम् उदाहरणं लिखत। (उत्प्रेक्षालंकार का एक उदाहरण लिखिए।)
उत्तर:
लिम्पतीव तमोऽङ्गानि वर्षतीवाञ्जनं नमः। असत्पुरुषसेवेव दृष्टिविफलतां गता।

(ग) पम्पटानुसारेण अर्थान्तरन्यासालंकारस्य लक्षणं लिखत। (मम्मट के अनुसार अर्थान्तरन्यास अलंकार का लक्षण लिखिए।)
उत्तर:
सामान्यं वा विशेषो वा तदन्येन समर्थ्यते।
यत्र सोऽर्थान्तरन्यासः साधणेतरेण वा ॥

प्रश्न: 12.
अधोलिखितासु परिभाषासु रिक्तस्थानं पूरयत(नीचे लिखी हुई परिभाषाओं में रिक्तस्थान को पूरा कीजिए-)
(क) श्लिष्टे: पदैरनेका ………………………………..।
(ख) अनुप्रासः ……………………………….. वैषम्येऽपि स्वरस्य यत्।
(ग) ……………………………….. रूपितारोपो विषये निरपहनवे।
उत्तर:
(क) श्लिष्टै: पदैरनेकार्थाभिधाने श्लेष इष्यते।
(ख) अनुप्रासः शब्दसायं वैषम्येऽपि स्वरस्य यत्।
(ग) रूपकं रूपितारोपो विषये निरपनवे।

अलङ्करोति इति ……………………………….. कथ्यन्ते। (पृष्ठ 134)

अलङ्करोति इति अलङ्कारः”, “अलङिक्रयन्ते शब्दाः अर्थाः वा अनेनेति अलङ्कार” अर्थात् जैसे शरीर की सुन्दरता बढ़ाने के लिए हार-कुण्डल आदि आभूषणों को हम धारण करते हैं वैसे ही काव्य रूप शरीर की शोभा बढ़ाने के लिए जिन तत्वों अथवा धर्मों का प्रयोग किया जाता है, वे ही अलङ्कार कहे जाते हैं। इसलिए कवि दण्डी ने कहा है-“काव्य शोभाकरान् धर्मानलङ्कारान् प्रचक्षते।” अर्थात् जो काव्य की शोभा बढ़ाते हैं वे धर्म ही अलङ्कार कहे जाते हैं। अलङ्कारों के स्वरूप का विवेचन करते हुए काव्यप्रकाश का प्रणेता मम्मट लिखता है

उपकुर्वन्ति तं सन्तं येऽङ्गद्वारेण जातुचित्।
हारादिवदलङ्कारास्तेऽनुप्रासोपमादयः।

काव्ये ……………………………….. पुनरुक्तवदाभासः। (पृष्ठ 134)
अलङ्कारों के भेद-काव्य में शब्द और अर्थ के उत्कर्ष को बढ़ाने वाले तत्त्व का नाम ही अलङ्कार है। अलङ्कार का आधार शब्द और अर्थ रूप से है। इसलिए अलङ्कारों के तीन प्रकार हैं

1. शब्दालङ्कार-जहाँ शब्द के कारण अलङ्कार की स्थिति होती है वह शब्दालङ्कार है। शब्दों के माध्यम से (विशेष प्रयोग से) जहाँ अलंकृति होती है, वहाँ शब्दालंकार होता है। जैसे-अनुप्रास, यमक आदि।
(नोट-इसकी परीक्षा के लिए उस शब्द के किसी पर्यायवाची शब्द का प्रयोग करके देखना चाहिए। यदि पर्यायवाची शब्द के प्रयोग करने पर अलंकार की सत्ता न रहे तो वह शब्दालंकार है। क्योंकि यह अलंकार मुख्य रूप से उस शब्द पर निर्भर है। जैसे-‘समर समरसोऽयम्’ इस वाक्य में ‘समर’ शब्द के स्थान पर यदि ‘युद्ध’ शब्द को रख दिया जाय तो यहाँ यमक अलंकार नहीं रहेगा, अत: यह शब्दालंकार है।)

2. अर्थालङ्कार- जहाँ अर्थ के कारण अलंकार की स्थिति होती है, वह अर्थालंकार है। अर्थ के चमत्कार से जहाँ सान्दर्य-बोध होता है, वहाँ अर्थालंकार होता है। जैसे-उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, दीपक आदि।
(नोट-पर्यायवाची शब्द का प्रयोग करने पर भी जहाँ अलंकार की स्थिति बनी रहती है, वहाँ अर्थालंकार समझना चाहिए। जैसे “वागर्थाविव सम्पृक्तौ” इस श्लोक में ‘वाक्’ शब्द के स्थान पर ‘वाणी’ शब्द को रख दिया जाए ‘‘वाण्यर्थाविव सम्पृक्तौ” तब भी उपमा अलंकार उसी प्रकार बना रहता है, अतः यह अर्थालंकार है।)

3. उभयालङ्कार-जो शब्द और अर्थ दोनों से ही सौन्दर्य का बोध कराते हैं, वे उभयालंकार होते हैं। जैसेपुनरुक्तवदाभास।

पाठ्यक्रम में निर्धारित अलंकार
1. अनुप्रास अलंकार
यह शब्दालंकार है। रस, भाव आदि के अनुगत जो वर्ण–विन्यास है, वह अनुप्रास है। (अनु = अनुगतः, प्र=प्रकृष्टः, आसः = न्यासः इति अनुप्रासः।)

लक्षणम्-वर्णसाम्यमनुप्रासः” (काव्यप्रकाशकार मम्मट के अनुसार) अर्थात् जहाँ वर्गों की समता (समानता) होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। यहाँ स्वरों की विषमता होने पर भी व्यञ्जनों की समानता से अनुप्रास अलंकार है।

उदाहरणम्-वहन्ति वर्षन्ति नदन्ति भान्ति, ध्यायन्ति नृत्यन्ति समाश्वसन्ति।

नद्यो घनाः मत्तगजाः वनान्ताः, प्रियाविहीनाः शिखिन: प्लवङ्गाः।

इस श्लोक में “वहन्ति, वर्षन्ति, नदन्ति, भान्ति, ध्यायन्ति, नृत्यन्ति, समाश्वसन्ति” इन शब्दों में ‘न’, ‘त’ इन दोनों की बार-बार आवृत्ति है। वर्गों की समानता से श्लोक के सौन्दर्य में अभिवृद्धि हो रही है। अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

अनुप्रास अलंकार के पाँच प्रमुख भेद हैं-

  1. छेकानुप्रास,
  2. वृत्यानुप्रास,
  3. श्रुत्यनुप्रास,
  4. अन्त्यानुप्रास।
  5. लाटानुप्रास।

अन्य उदाहरण-
1. ततोऽरुणपरिस्पन्द मन्दीकृतवपुः शशी।
दधे कामपरिक्षामकामिनीगण्डपाण्डुताम्।

2. अनङ्गरङ्गप्रतिमं तदङ्ग भङ्गीभिरङ्गीकृतमानतायाः।
कुर्वन्ति यूनां सहसा यथैता: स्वान्तानि शान्तापरिचिन्तनानि।

3. यस्य न सविधे दयिता दवदहनस्तुहिनदीधितिस्तस्य।
यस्य च सविधे दयिता दवदहनस्तुहिनदीधितिस्तस्य।

2. उपमा अलंकार

यह अर्थालंकार है। उपमान और उपमेय के समान धर्म से सादृश्य ही उपमा है।

उपमा के लिए चार पदार्थों की आवश्यकता होती है। उपमान-जिसके साथ तुलना होती है। जैसे-सूर्य, चन्द्र आदि।
2. उपमेय-जिसकी तुलना होती है। जैसे-मुख, नृप आदि।
3. वाचक शब्द-इव, समान इत्यादि।
4. साधारण धर्म-उपमान और उपमेय की जो विशिष्टता समान रूप से होती है, तुलना का जो आधार होता है वह ही साधारण धर्म है। जैसे-सुन्दरता, तेज इत्यादि।

लक्षणम्- “साधर्म्यमुपमा भेदे”, अर्थात् उपमान और उपमेय में भेद होने पर भी समानता का (साधर्म्य का) वर्णन ही उपमा है।

उदाहरणम्-
वागर्थाविव सम्पृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये।
जगतः पितरौ वन्दे पार्वती परमेश्वरौ।।

यहाँ ‘पार्वती-परमेश्वर’ ये दो उपमेय हैं, ‘वाक् और अर्थ’ ये दो उपमान हैं, ‘इव’ उपमा वाचक शब्द है, ‘वागर्थप्रतिपत्ति’ यह साधारण धर्म है। अत: इस श्लोक में उपमा अलंकार है।

अन्य उदाहरण-
1. रविसङ्क्रान्तसौभाग्यस्तुषारारुणमण्डलः।
नि:श्वासान्ध इवीदर्शश्चन्द्रमा न प्रकाशते।

2. स्वप्नेऽपि समरेषु त्वां विजयश्रीर्न मुञ्चति।
प्रभावप्रभवं कान्तं स्वाधीनपतिका यथा।

3. करवाल इवचरतस्तस्य वागमृतोपमा।
विषकल्पं मनो वेत्सि यदि जीवसि तत्सखे।

3. रूपक अलंकार
यह अर्थालंकार है। यह एकता को रूपित करता है, अर्थात् उपमेय को उपमान बना लेता है। जहाँ उपमेय को उपमान के साथ अभेद प्रस्तुत किया जाता है, वहाँ रूपक अलंकार होता है।

लक्षणम्-‘तद्रूपकमभेदो यः उपमानोपमेययो:’
अर्थात् उपमान और उपमेय (जिनका भेद प्रसिद्ध है) का जो (समानता के कारण) अभेद है, वह रूपक अलंकार है।

उदाहरणम्-
अनलङ्कृतशरीरोऽपि चन्द्रमुख आनन्दयति मम हृदयम्। यहाँ ‘चन्द्रमुख’ शब्द में ‘मुख’ में चन्द्रमा का आरोप होने से रूपक है।

अन्य उदाहरण-
1. संसारविषवृक्षस्य द्वे फले रसवत्फले।
काव्यामृतरसास्वादः सङ्गमः सज्जनैः सह।

2. मुखं तव कुरङ्गाक्षि! सरोजमिति नान्यथा।

3. अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।

4. दृष्टांत अलंकार
लक्षणम्-चेद विम्ब प्रतिबिम्बत्वम् दृष्टांत: तदलंकृते। यदि उपमान तथा उपमेय वाक्यों में यदि विम्ब प्रतिबिम्ब भाव होता है तब वहाँ दृष्टांत अलंकार कहा जाता है।

उदाहरण- विपक्षमश्लीकृत्य प्रतिष्ठा खलु दुर्लभा।
अनीत्वा पङ्कताम् धूलिमुदकम् नावतिष्ठते।।

उक्त उदाहरण में विम्ब प्रतिबिम्ब भाव के कारण दृष्टांत अलंकार है।

5. अतिशयोक्ति अलंकार
यह अर्थालंकार है। अधिकता से कही हुई अर्थात् अत्यधिक बढ़ा-चढ़ाकर कही हुई उक्ति अतिशयोक्ति होती है। उपमेय में उपमान का आरोप अतिशयोक्ति है।

लक्षणम्- ‘सिद्धत्वेऽध्यवसायस्यातिशयोक्तिर्निगद्यते”।

अध्यवसाय = उपमेय और उपमान की अभेदस्थापना अर्थात् उपमेय का उपमान के साथ निगरण होने से अभेद का निश्चय होता है। अर्थात् जहाँ अध्यवसाय के सिद्ध होने पर उपमेय के निमित्त केवल उपमान का ही कथन होता है, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।

उदाहरणम्- यूथेऽपयाते हस्तिग्रहणोद्यतेन केन कलभो गृहीतः।

यहाँ अर्जुन और अभिमन्यु दो उपमेये हैं। किन्तु इन दोनों का निगरण करके अर्जुन का हाथीरूप से और अभिमन्यु का हाथी का बच्चा रूप से दो उपमानों द्वारा वर्णन किया गया है। अतः यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार है।

अन्य उदाहरण-
1. पश्य नीलोत्पलद्वन्द्वानि सरन्ति शिताः सराः।

2. अन्यत्सौकुमार्यमन्यैव च कापि वर्तनच्छाया।
श्यामा सामान्यप्रजापते: रेखैव च न भवति।

3. उदेति पूर्वं कुसुमं ततः फलम्, घनोदयः प्राक् तदनन्तरं पयः।
निमित्तनैमित्तकयोरयं क्रम, स्तव प्रसादस्य पुरस्तु सम्पदः।

पाठ्यपुस्तक में प्रदत्त अन्य छन्द

6. यमक अलंकार

यह शब्दालंकार है। यमौ द्वौ समजातौ तत्प्रकृतिर्यमकम्’। अर्थात् जहाँ समान रूप से दिखाई देने वाले दो शब्द अर्थ की दृष्टि से (प्रकृति की दृष्टि से) भिन्न होते हैं, वहाँ यमक अलंकार होता है। (यमक का अर्थ होता है जोड़ा। स्वर और व्यंजनों के समूह का यहाँ जोड़ा बनता है।)

लक्षणम्- “सत्यर्थे पृथगर्थायाः स्वरव्यञ्जन संहतेः।
क्रमेण तेनैवावृत्तिर्यमकं विनिगद्यते।”

अर्थात् जहाँ अर्थयुक्त भिन्न-भिन्न अर्थों के शब्दों की पूर्वक्रम से आवृत्ति होती है, वहाँ यमक अलंकार होता है। यहाँ एक वर्णसमूह का अर्थ दूसरे वर्णसमूह से अलग होगा। जैसे-‘समरसमरसोऽयम्’, यहाँ पहले पद ‘समर’ का अर्थ युद्ध है, द्वितीय पद ‘समरस’ का अर्थ समानभावयुक्त है।

उदाहरणम्- नवपलाश-पलाशवनं पुरः स्फुटपराग-परागतपङ्कजम्।
मृदुलतान्त-लतान्तमलोकयत् स सुरिभं सुरभिं समनोहरैः।

यहाँ ‘पलाश-पलाश’, ‘पराग-पराग’, ‘लतान्तु-लतान्त’, ‘सुरभिं-सुरभिम्’ इन पदों की आवृत्ति दिखाई देती है। किन्तु वास्तविक रूप से इनके अर्थों में भिन्नता है। देखें

पलाश-पत्रम्, पलाश-किंशुकम्। परागः-रजकणः, परागतम्-व्याप्तम्। मृदुलतान्त-कोमलातपेन क्लान्त:, लतान्तम्-लतायाः अन्तिम भागम्। सुरभिम्-सुगन्धूम्, सुरभिम्-वसन्त समयम्।

अन्य उदाहरण-

1. सरस्वति! प्रसादं मे स्थितिं चित्तसरस्वति।
सरस्वति! कुरुक्षेत्र कुरु क्षेत्र सरस्वती।

2. संसार साकं दर्पण कन्दर्पण ससारसा।
शरन्नवाना बिभ्राणा नाविभ्राणा शरन्नवा।

3. सन्नारी भरणोमायमाराध्य विधुशेखरम्।
सन्नारी भरणोऽमायस्ततस्त्वं पृथिर्वी जया।

4. प्रकृत्या हिमकोशाढ्यो दूरसूर्यश्च साम्प्रतम्।
यथार्थनामा सुव्यक्तं हिमवान् हिमवान् गिरिः।

7. श्लेष अलंकार

यह शब्दालंकार है। श्लिष्ट पदों के द्वारा जहाँ अनेक अर्थों का कथन होता है, वहाँ श्लेष अलंकार माना जाता है।

लक्षणम्-‘‘श्लिष्टै: पदैरनेकार्थाभिधाने श्लेष इष्यते”

अर्थात् जहाँ अर्थ भेद के द्वारा भिन्न शब्द भी एक रूप (युगपद) उच्चारण से समझे जाते हैं वहाँ, श्लेषालंकार होता है। आचार्य मम्मट के मतानुसार श्लेष आठ प्रकार का होता है-

  1. वर्णश्लेष
  2. पदश्लेष
  3. लिङ्गश्लेष
  4. भाषाश्लेष
  5. प्रकृतिश्लेष
  6. प्रत्ययश्लेष
  7. विभक्तिश्लेष
  8. वचनश्लेष।

उदाहरणम्-
प्रतिकूलतामुपगते हि विधौ विफलत्वमेति बहुसाधनता।

अवलम्बनाय दिनभर्तुरभून्न पतिष्यतः कर सहस्रमपि। विधि = भाग्य, विधु = चन्द्रमा। विधि और विधु दोनों का सप्तमी एकवचन में ‘विधौ’ रूप होता है। अतः यहाँ इ, और उ वर्गों को श्लेष है। अतः एक पद के द्वारा ही दो अर्थों को समझने से श्लेषालंकार है।

अन्य उदाहरण-
1. पृथुकार्तस्वरपात्रं भूषित नि:शेषपरिजनं देव!।
विलसत्करेणुगहनं सम्प्रति समभावयोः सदनम्।

2. योऽसकृतत्परगोत्राणां पक्षच्छेदक्षणक्षमः।
शतकोटिदतां विभ्रद्विबुधेन्द्रः स राजते।

3. सर्वस्वं हर सर्वस्य त्वं भवच्छेदतत्परः।
नयोपकार साम्मुख्यमायासि तनुवर्तनम्।

8. उत्प्रेक्षा अलंकार

यह अर्थालंकार है। जहाँ उपमेय की उपमान के साथ सम्भावना की जाती है, वह ही उत्प्रेक्षा है।

लक्षणम्- “सम्भावनमथोत्प्रेक्षा प्रकृतस्य समेन यत्।”

अर्थात् प्रकृतस्य = वर्ण्य की (उपमेय की) उपमान के साथ जो सम्भावना (एककोटिक सन्देह की उत्पत्ति) की जाती है, वह ही उत्प्रेक्षा है। उदाहरणम्-लिम्पतीव तमोङ्गानि वर्षतीवाञ्जनं नभः।
असत्पुरुष सेवेव दृष्टिर्विफलतां गता।। यहाँ ‘घने अन्धकार की व्यापकता’ उपमेय है। ‘लेपन’ उपमान है। दोनों की एकरूपता की सम्भावना की गयी है, अतः यहाँ उत्प्रेक्षा है।

जहाँ श्लोक में, ‘मन्ये, शंके, ध्रुवम्, प्रायः, नूनम्’ इत्यादि शब्दों का प्रयोग होता है, वहाँ प्रायः उत्प्रेक्षा अलंकार ही होता है।

अन्य उदाहरण-
1. ज्ञाने मौनं क्षमा शक्तौ त्यागे श्लाघाविपर्ययः।
गुणाः गुणानुबन्धित्वास्य सप्रसवा इव।।

2. पतितैः पतमानैश्च पादपस्यैश्च मारुतः।
कुसुमैः पश्य सौमित्रे! क्रीडन्निव समन्ततः।

3. समयः स वर्तत इवेष यत्र मां,
समनन्दयत् सुमुखि! गौतमार्पितः।
अयमागृहीत-कमनीयकङ्कणः,।
तव मूर्तिमानीव महोत्सवः करः।

9. अर्थान्तरन्यास अलंकार
यह अर्थालंकार है। सम्भाव्यमान अर्थ के उपपादन के लिए दूसरे अर्थ से जहाँ समर्थन किया जाता है, वहाँ अर्थान्तरन्यास होता है। अर्थात् समर्थ्य (जिसका समर्थन किया जाता है) वाक्य का दूसरे वाक्य से समर्थन किया जाता है। (अर्थान्तर शब्द का अर्थ है-एक अर्थ का समर्थन करने के लिए अर्थान्तर-दूसरे अर्थ को, न्यास = रखना।

लक्षणम्-
सामान्यं वा विशेषो वा तदन्येन समर्थ्यते।
यत्र सोऽर्थान्तरन्यासः साधणेतरेण वा।

अर्थात् जहाँ साधर्म्य से अथवा वैधय॑ से सामान्य का विशेष से अथवा विशेष का सामान्य से समर्थन किया जाता है, वहाँ अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है। उदाहरणम्-वृहत्सहायः कार्यान्तं क्षोदीयानपि गच्छति।
सम्भूयाम्भोधिमभ्येति महानद्या नगापगाः। यहाँ उत्तरार्द्ध विशेष से पूर्वार्द्ध सामान्य का समर्थन किया गया है, अत: यहाँ अर्थान्तरन्यास अलंकार है।

अन्य उदाहरण-
1. यावदर्थपदां वाचमेवमादाय माधवः।
विरराम महीयांसः प्रकृत्या मितभाषिणः।

2. यः स्वभावो हि यस्यास्ति स नित्यं दुरतिक्रमः।
श्वा यदि क्रियते राजा तत्किं नाश्नात्युपानहम्।

3. हनुमानब्धिमतरद् दुष्करं किं महात्मनाम्।

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