Rajasthan Board RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 1 मंगलाचरणम् (वेदामृतम्)
RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 1 पाठ्य-पुस्तकस्य अभ्यास-प्रणोत्तराणि
RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 1 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्ना
प्रश्न 1.
कति संहिता:? (संहिताएँ कितनी हैं?)
उत्तर:
चतस्रः (चार)।
प्रश्न 2.
चतुर्णा वेदानां नामानि लिखत। (चारों वेदों के नाम लिखिए।)
उत्तर:
ऋग्वेदः, यजुर्वेदः, सामवेदः अथर्ववेदश्च एते चत्वारः वेदाः सन्ति। (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद ये चार वेद हैं।)
प्रश्न 3.
का पावका (पाविका)? (पवित्र करने वाली कौन है?)
उत्तर:
सरस्वती: पाविका। (सरस्वती पवित्र करने वाली है।)
प्रश्न 4.
देवाः केन यज्ञम् अयजन्त? (देवताओं ने किससे यज्ञ किया?)
उत्तर:
देवाः यज्ञेन यज्ञम् अयजन्त। (देवताओं ने यज्ञ से यज्ञ किया।)
प्रश्न 5.
के नाकं सचन्त (सेवन्ते)? (कौन स्वर्ग को प्राप्त करते हैं?)।
उत्तर:
देवाः नाकं सचन्त (सेवन्ते)। (देवता स्वर्ग को प्राप्त करते हैं।)
प्रश्न 6.
आदित्यानां स्वसा का? (आदित्यों की बहिन कौन है?)
उत्तर:
धेनुः आदित्यानां स्वसाः। (गाय आदित्यों की बहिन है।)
प्रश्न 7.
गौः कस्य नाभिस्वरूपा? (गाय किसका मूल है?)
उत्तर:
गौः ऋतस्य नाभिस्वरूपा। (गाय अमृत का मूल है।)
प्रश्न 8.
युष्माकं मन्त्रः कीदृशः अस्तु? (तुम्हारा मन्त्र-विचार कैसा हो?)
उत्तर:
अस्माकं मन्त्रः समानः अस्तु। (हमारा मन्त्र समान हो।)
प्रश्न 9.
नः अभिष्टये का शं भवतु? (हमारी सुख-शान्ति के लिए क्या कल्याणकारी है?)
उत्तर:
नः अभिष्टये अग्नि देवी शं भवतु। (हमारी सुख-शान्ति के लिए अग्निदेव कल्याणकारी हो।)
प्रश्न 10.
नः सीता (कृषिभूमिः) कथं भवितव्या? (हमारे लिए सीता (कृषि भूमि) कैसी हो?)
उत्तर:
सीता नः अभिपयसा ऊर्जस्वती घृतवत् पिन्वमाना आवृत्स्व। (सीता हमारे लिए पवित्र जल से ऊर्जस्विनी होती हुई पानी की तरह प्रवाहित होती हुई हमारी ओर उन्मुख हो।)
RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 1 लघूत्तरात्मक प्रश्ना:
प्रश्न 1.
सरस्वती कथम् अस्माकं यज्ञादीनां पूर्णतां करिष्यति? (सरस्वती कैसे हमारे यज्ञ आदि को पूर्ण करे?)
उत्तर:
सरस्वती वाजेभिः (अन्न-बल-वेग-विज्ञानादिभिः) नः यज्ञं वष्टु (वहतु)। (सरस्वती-अन्न-बल-वेग और विज्ञान से हमारे यज्ञ को पूर्ण करें।)।
प्रश्न 2.
देवाः कथं नाकं सेवन्ते? (देव कैसे स्वर्ग को भोगते हैं?)
उत्तर:
देवाः महिमानः नाक सेवन्ते। (देवता सम्माननीय स्थान प्राप्त करके स्वर्ग को भोगते हैं।)
प्रश्न 3.
गौः किमर्थं न वधयोग्या? (गाय क्यों वध के योग्य नहीं है?)
उत्तर:
गौः रुद्राणां माता, वसूनां दुहिता आदित्यानां स्वसा अमृतस्य नाभि अतः न वध योग्याः। (गाय रुद्रों की माँ, वसुओं की बेटी, आदित्यों की बहिन तथा अमृत का मूल है। अतः वध योग्य नहीं है।)
प्रश्न 4.
समानभावः कुत्र भवितव्यः? (समान भाव कहाँ-कहाँ होना चाहिए?)
उत्तर:
मंत्र-समितिः-मन-चित्तषु समानं– भावः भवितव्यः। (विचार, गोष्ठी, मन और चित्त में समान भाव होना। चाहिए।)
प्रश्न 5.
समानेन किं भविष्यति? (समान से क्या होगा?)
उत्तर:
समानेन एकताया भावः भविष्यति। (समान से एकता का भाव होगा।)
प्रश्न 6.
मनः कीदृशम् अस्तु? मन कैसा हो?)
उत्तर:
मनः समानम् अस्तु। (मन समान हो।)
प्रश्न 7.
कुत्र-कुत्र नः अभयं भवेत्? (हमारे लिए अभय कहाँ-कहाँ होना चाहिए?)
उत्तरम्
नः प्रजाभ्यः पशुभ्यः च अभयं भवेत्। (हमारी प्रजा (सन्तान) व पशुओं को अभय हो।)
प्रश्न 8.
कीदृशी सीता विश्वैः देवैः अनुमता? (कैसी कृषिभूमि सभी देवों द्वारा स्वीकृत है?)
उत्तर:
घृतेन मधुना समक्ता सीता विश्वैः देवैः अनुमता। (जल और शहद से सिंचित सीता सभी देवों द्वारा स्वीकृत है।)
प्रश्न 9.
अन्यः अन्यम् कथम् अभिहर्यत (अभिलषेत्)? (परस्पर कैसी अभिलाषा करें?)।
उत्तर:
यथा गौः नवजातं वत्सम् अभिहर्यत तथैव अन्योऽन्यम् अभिलषेत्। (जैसे गाय नवजात बछड़े को चाहती है। वैसे ही एक-दूसरे को चाहें।)
प्रश्न 10.
के-के पृथिवीं धारयन्ति? (क्या-क्या पृथिवी को धारण करते हैं?)
उत्तर:
वृहद् सत्यम् उग्रम्, ऋतम्, दीक्षा, तपः, ब्रह्मयज्ञः एते सर्वे पृथिवीं धारयन्ति। (विस्तृतज्ञान, सत्य, तीव्रता, प्राकृतिक नियम, दक्षता, तप, ब्रह्मज्ञान और यज्ञ ये सभी पृथ्वी को धारण करते हैं।)
RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 1 निबंधात्मक प्रश्नाः
प्रश्न 1.
अधोलिखितश्लोकांनाम् अन्वयं हिन्दीभाषायाम् आशयं च लिखत (निम्नलिखित श्लोकों का अन्वय और हिन्दी आशय लिखिए-)
(क) पावका नः सरस्वती, वाजेभिर् वाजिनीवती।
यज्ञं वष्टु धियावसुः।
उत्तर:
अन्वय-पावका वाजिनीवती धियावसुः सरस्वती वाजेभिः नः यज्ञं वष्टु॥
आशय-पवित्र करने वाली, पोषण करने वाली ज्ञान-शक्ति-रूप-ऐश्वर्य प्रदान करने वाली देवी सरस्वती अन्न-शक्ति-क्रिया एवं विज्ञान आदि के द्वारा हमारे यज्ञ को पूर्णता प्रदान कराये।
(ख) यतोः यतः समीहसे ततो नोऽभयं कुरु।’
शन्नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्य॥
उत्तर:
अन्वय-यतो यत: समीहसे ततः नः अभयं कुरु। प्रजाभ्यो न: पशुभ्यश्च शम् अभयं च कुरु।
आशंय-हे परमात्मा! जिस-जिससे तुम चाहो, उस-उससे ही हमें अभय करो। हमारी प्रजा अथवा सन्तानों को कल्याण करो तथा पशुओं को अभय प्रदान करो।
(ग) घृतेन सीता मधुन समक्ता विश्वैदैवैरनुमता मरुद्भिः।
सा नः सीते पयसाभ्याववृत्स्वोर्जस्वती घृतवत् पिन्वमाना॥
उत्तर:
अन्वय-मधुना घृतेन समक्ता सीता विश्वैः देवैः मरुद्भिः अनुमता। सीते! सानः अभि पयसा ऊर्जस्वती घृतवत् पिन्वमाना आववृत्स्बे॥
आशय-जल और शहद से सिंचित, भलीभाँति अभिव्यक्त हे सीते (कॅढ़)। आप सभी देवों द्वारा और मरुद्गणों द्वारा स्वीकृत हुई जल से सींची हुई ऊर्जा वाली अर्थात् सम्पन्न हुई जल की तरह बहती हमारी ओर उन्मुख हो।
(घ) सह्यदयं सामनस्यविद्वेष कृणोमि वः।
अन्यो अन्यमभि हर्यत वत्सं जातमिवाघ्या॥
उत्तर:
अन्वय-वः सहृदयम् सांमनस्यम्, अविद्वेषं कृणोमि। अन्यो अन्यम् अभिहर्यत् अघ्न्या जातं वत्सम् इव।
आशय-हे मनुष्यो! हम वैदिक ऋषि आपके लिए द्वेषरहित और सौमनस्य बढ़ाने वाले कार्य करते हैं। अत: आप भी इसी प्रकार प्रेम-पूर्वक व्यवहार करें, जिस प्रकार एक गाय नवजात बछड़े से स्नेह करती है।
प्रश्न 2.
मन्त्राणां पादपूर्तिं कुरुत-(मन्त्रों की चरण पूर्ति कीजिए-)
(क) समानो मन्त्रः समितिः समानी ………………………………..
……………………………….. संमानेन वो हविषा जुहोमि॥
(ख) ……………………………….. स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्ताक्ष्र्यो अरिष्टनेमिः ………………………………..॥
(ग) सत्यं बृहदूतमुग्रं दीक्षा तपो ………………………………..
……………………………….. पत्न्युरुं लोकं पृथिवीं नः कृणोतु॥
(घ) ……………………………….. तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त ………………………………..
उत्तर:
(क) समानो मन्त्रः समितिः समानी समानं मनः सह चित्तमेषाम्।
समानं मन्त्रमभिमन्त्रये वः समानेन वो हविषा जुहोमि।
(ख) स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
(ग) सत्यं बृहदृतमुग्रं दीक्षा तपो ब्रह्मयज्ञः पृथिवीं धारयन्ति।
सा नो भूतस्य भव्यस्य पत्न्युरुं लोकं पृथिवी नः कृणोतु॥
(घ) यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त, यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः॥
प्रश्न 3.
अधोलिखितानां श्लोकानां संस्कृते व्याख्यां कृत्वा भावार्थं लिखत-(निम्नलिखित मन्त्रों की संस्कृत व्याख्या करके भावार्थ लिखिए–)
(क) पावका नः सरस्वती, वाजेभिर् वाजिनीवती।
यज्ञं वष्टु धियावसुः॥
उत्तर:
संस्कृत व्याख्याः-पाविका, क्रियाशीला, बुद्धिरूप वसून् प्रदायिनी देवी सरस्वती अन्न बलवेगविज्ञानादिभिः अस्माकं यज्ञं बहतु पूर्णतां वा प्रापयतु॥
हिन्दी भावार्थ-पवित्र करने वाली, अन्न-बल-वेग-विज्ञान आदि से पोषण प्रदान करने वाली बुद्धिमतापूर्वक ज्ञान-शक्ति-रूप-ऐश्वर्य को प्रदान करने वाली सरस्वती देवी ज्ञान और कर्म से हमारे यज्ञ को पूर्णता प्रदान करें॥
(ख) समानो मन्त्रः समितिः समानी मनः सह चित्तमेषाम्॥
समानं मन्त्रमभिमन्त्रये वः समानेन वो हविषा जुहोमि॥
उत्तर:
संस्कृत व्याख्याः -हे स्तोतार ! भवतां प्रार्थना (चिन्तनं) सदृशमेव भवेत्। भवतां सर्वेषां पारस्परिक मेलनं विमर्शमपि भेदरहितः भवेत्। (अहं ऋषिः) भवतां विचारधारां चिन्तनं वा आहूय सुसंस्कृतं करोमि। ऐक्यभावेन आह्वानं हवनं वा करोमि॥
हिन्दी भावार्थ-हे स्तोताओ! आप सभी की प्रार्थना या विचारधारा समान हो। (आपकी) सभी अर्थात् आपस में मिलना भेदभाव से रहित एक जैसा हो। आपका विचार तन्त्र-मन, बुद्धि और चित्त समान रूप (एक जैसे) हो। मैं आपको जीवन को एकता के मन्त्र से अभिमन्त्रित करता हूँ और एक समान आहुति प्रदान करके यज्ञमय करता हूँ।
(ग) स्वस्ति न इन्द्रो द्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः॥
स्वस्ति नस्ताक्ष्यों अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
उत्तर:
संस्कृत व्याख्याः-प्रवृद्ध कीर्तिशीलः इन्द्रदेवः अस्माकं कल्याणकारकः भवतु। सर्वज्ञः पोषणकर्ता पूषादेवः अस्मभ्यम् कल्याणकारको भवतु। दोषनाशेऽहिंसितो कुण्ठित वज्र गरुड़ अस्माकं कल्याणं करोतु। बहूनां पालकः ज्ञानस्य अधीश्वरः बृहस्पति अस्मभ्यं कल्याणं धारयतु।
हिन्दी भावार्थ-महान् यशस्वी इन्द्र हमारे लिए कल्याणकारी हो। सर्वज्ञाता पूषा (पोषणकर्ता) हमारे लिए कल्याणकारी हो। दुष्ट प्रवृत्तियों को तोड़ने में अकुण्ठित वज्र वाला तार्क्स (गरुड़) हमारे लिए कल्याणकारक (हितकारक) हों। बहुतों के पालन करने वाले ज्ञान के अधीश्वर बृहस्पति देव हमारा कल्याण करें।
(घ) सहृदयं सांमनस्यमविद्वेषं कृणोमि वः।
अन्यो अन्यमभि हर्यत वत्सं जातमिवान्या॥
उत्तर:
संस्कृत व्याख्याः- भो मानवा! वयं वैदिक ऋषयः भवद्भ्यः द्वेषरहितं सौमनस्यवर्धकं न कार्याणि विदधाम अतः भवन्तोऽपि परस्परं तथैव प्रेमपूर्ण व्यवहारं कर्तुम् अभिलषेयुः। यथा नवजाते वत्स धेनुः स्निह्यन्ति। |
हिन्दी भावार्थ-हे मनुष्यो! हम आपके लिए हृदय को प्रेमपूर्ण बनाने वाले तथा सौमनस्य बढ़ाने वाले कर्म करते हैं। आप लोग परस्पर इसी प्रकारे व्यवहार करें। जिस प्रकार नवजात बछड़े से गाय स्नेह करती है।
RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 1 व्याकरणात्मक प्रश्नोत्तराणि
प्रश्न 1.
अधोलिखितपदानां सन्धिविच्छेदं कृत्वा सन्धेर्नामापि लिखत- (निम्नलिखित पदों की सन्धिविच्छेद करके सन्धि का नाम भी लिखिए-)
उत्तर:
प्रश्न 2.
अधोलिखितसामासिकपदानां समास-विग्रहं कृत्वा समासस्य नाम लिखत-(निम्न समस्त पदों को समास-विग्रह करके नाम लिखिए-)
उत्तर:
प्रश्न 3.
अधोलिखितपदेषु धातु-लकार-पुरुष-वचनादीनां निर्देशं कुरुत-(निम्नलिखित पदों में धातु, लकार, पुरुष-वचन आदि का निर्देश कीजिए-)।
उत्तर:
प्रश्न 4.
अधोलिखितपदेषु मूलशब्द-विभक्ति लिङ्ग वचनादीनां निर्देशं कुरुत-(निम्नलिखित पदों में मूल शब्द, विभक्ति, लिङ्ग, वचन आदि को निर्देश कीजिए-)
उत्तर:
RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 1 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तराणि
प्रश्न 1.
संहिता का? (संहिता क्या है?)
उत्तर:
मन्त्राणां सङ्कलनमेव संहिता (वेदः) कथ्यते। (मन्त्रों के संकलन को ही संहिता (वेद) कहते हैं।)
प्रश्न 2.
संहिताः कति सन्ति? (संहिता कितनी हैं?)
उत्तर:
संहिताः चतस्रः सन्ति। (संहिताएँ चार होती हैं।)
प्रश्न 3.
संहितानां नामानि लिखत। (संहिताओं के नाम लिखिए?)
उत्तर:
ऋक्, यजुः, साम अथर्वसंज्ञिकाः चतस्रः संहिताः। (ऋक्, यजुः, साम और अथर्व नामक चार संहिताएँ हैं।)
प्रश्न 4.
सरस्वती कीदृशी भवति? (सरस्वती कैसी होती है?)
उत्तर:
सरस्वती पाविका वाजिनीवती च भवति। (सरस्वती पवित्र करने वाली और क्रियाशील होती है।)
प्रश्न 5.
सरस्वती केन नः यज्ञं वष्ट? (सरस्वती किससे हमारा यज्ञ सम्पन्न करे?)
उत्तर:
सरस्वती वाजेभिः नः यज्ञं वष्टु। (सरस्वती अन्न-बल-वेग-विद्वान आदि से हमारा यज्ञ सम्पन्न करें।)
प्रश्न 6.
देवाः केन प्रथमाः अभवन्? (देव किससे प्रथम हो गये?)
उत्तर:
देवाः यज्ञेन प्रथमाः अभवन्। (देव यज्ञ से प्रथम हो गये।)
प्रश्न 7.
रुद्राणां माता का उक्ता? (रुद्रों की माँ कौन कही गई है?)
उत्तर:
रुद्राणां माता धेनुः उक्ता। (रुद्रों की माँ गाय कही गई है।)
प्रश्न 8.
अमृतस्य उद्गम स्थलं विमुक्तम्? (अमृत का उद्गम स्थल क्या कहा गया है?)
उत्तर:
धेनुः अमृतस्य उद्गमस्थलमुक्तम्। (गाय को अमृत का उद्गमस्थल कहा गया है।)
प्रश्न 9.
कीदृशी धेनुः अवध्या? (कैसी गाये न मारने योग्य है?)
उत्तर:
अनागा गौः अवध्या। (निष्पाप गाय अवध्य है।)
प्रश्न 10.
ऋषिः देवान् कीदृश्या हविषा जुहोति? (ऋषि कैसी हवि से देवों को आहुति देता है?)
उत्तर:
ऋषिः देवान् समानेन हविषा जुहोति। (ऋषि देवों को समान हवि से आहुति देता है।)
प्रश्न 11.
मनः कीदृक् भवति? (मन कैसा होता है?)
उत्तर:
मन: जाग्रतो दूरम् उदेति सुप्तस्य च तथैव उदैति। (मन जागते हुए को दूर जाता है और सोते हुए का भी दूर . जाता है।)
प्रश्न 12.
दूरङ्गतं मनः केषामेकं ज्योतिः? (दूर गया मन किनकी एक ज्योति है?)
उत्तर:
दूरङ्गतं मनः ज्योतिषामेकं ज्योतिः। (दूर गया मंन इन्द्रियों की एक ज्योति है।)
प्रश्न 13.
ऋषिः केभ्योऽभयमीहते? (ऋषि किनसे अभय चाहता है?)
उत्तर:
ऋषिः पशुभ्योऽभयमीहते। (ऋषि पशुओं से अभय चाहता है।)
प्रश्न 14.
ऋषिः केभ्यः शम् ईहते? (ऋषि किनसे शान्ति चाहता है?)
उत्तर:
ऋषिः प्रजाभ्यः शमीहते। (ऋषि प्रजा से शान्ति चाहता है।)
प्रश्न 15.
देवी कस्मै नः शं भवतु? (देवी किसलिए हमारे लिए शान्त हो?)
उत्तर:
देवी नः अभीष्टये शं भवतु। (देवी हमारे कल्याण के लिए शान्त हो।)
प्रश्न 16.
पूषा कीदृक् देवः? (पूषा कैसा देव है?)
उत्तर:
पूषा विश्ववेदाः देवः। (पूषा सर्वज्ञ देव है।)
प्रश्न 17.
‘वृद्धश्रवाः’ इति कस्य देवस्य वैशिष्ट्यम्? (वृद्धश्रवा किस देव की विशेषता है?)
उत्तर:
वृद्धश्रवाः इन्द्रदेवस्य वैशिष्ट्यम्। (वृद्धश्रवा इन्द्रदेव की विशेषता है।)
प्रश्न 18.
अरिष्टनेमिः कः कथ्यते? (अरिष्टनेमि कौन कहलाता है?)
उत्तर:
ताक्ष्र्योऽरिष्टनेमिः कथ्यते। (गरुड़ तार्थ्य अरिष्टनेमि कहलाता है।)
प्रश्न 19.
मधुनाधृतेन समक्ता सीता कैः अनुमता? (जल और शहद से सींची हुई सीता किनके द्वारा स्वीकृत है?)
उत्तर:
मधुनाघृतेन समक्ता सीता सर्वे: देवैः मरुद्भिः अनुमता। (मधुर जल से सींची सीता सभी देवताओं द्वारा अनुमत (स्वीकृत) हो।)
प्रश्न 20.
अस्माकं भूतस्य भव्यस्य पत्नी का? (हमारी भूतकालिक और भविष्यत् काल में होने वालों की पालना करने वाली कौन हैं?)
उत्तर:
पृथिवीं अस्माकं भूतस्य भव्यस्य पत्नी। (पृथिवी हमारे हो चुके और होने वालों की पालन करने वाली है।)
प्रश्न 21.
सरस्वती काभिः अस्मभ्यम् ज्ञानशक्ति प्रददाति। (सरस्वती किनसे हम को ज्ञान-शक्ति प्रदान करती है)?
उत्तर:
सरस्वती वाजिभि अर्थात् अन्नबलवेगविज्ञानादिभिः अस्मभ्यम् ज्ञानशक्तिं प्रददाति। (सरस्वती अन्न, बल, वेग विज्ञान आदि द्वारा हमें शक्ति प्रदान करती है।)
प्रश्न 22.
वाजिनीवती का? (क्रियाशीला क्या है?)
उत्तर:
सरस्वती वाजिनीवती। (सरस्वती क्रियाशीला है।)
प्रश्न 23.
देवाः यज्ञं केन अयजन्त? (देवों ने यज्ञ किससे सम्पन्न किया?)
उत्तर:
देवा: यज्ञेन यज्ञम् अयजन्त। (देवों ने यज्ञ से यज्ञ को सम्पन्न किया।)
प्रश्न 24.
देवाः कस्मात् धर्माणि प्रथमानि आसन्? (देवता धर्म में प्रथम किसलिये है?)।
उत्तर:
ते यज्ञेन यज्ञम् अयजन्त अत: धर्माणि प्रथमान्यासन्। (उन्होंने यज्ञ से यज्ञ को सम्पन्न किया। अत: वे धर्म में प्रथम थे।)
प्रश्न 25.
देवाः नाकं कथं महिमानः सचन्ते? (देवता स्वर्ग में सम्मानीय स्थान कैसे पैदा करते हैं?)
उत्तर:
ते धर्मक्षेत्रे प्रथमाः सन्ति अतः नाकं महिमानः सेवन्ते। (वे धर्म के क्षेत्र में प्रथम है। अतः स्वर्ग में सम्मानीय स्थान प्राप्त करते हैं।)
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