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RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 9 व्यापारिक विधि एवं अनुबन्ध अधिनियम

July 8, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Business Studies Chapter 9 व्यापारिक विधि एवं अनुबन्ध अधिनियम

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 9 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 9 अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
क्या भारतीय अनुबन्ध अधिनियम व्यापारिक विधि का अंग है?
उत्तर:
हाँ,भारतीय अनुबन्ध अधिनियम व्यापारिक विधि का अंग है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 9 व्यापारिक विधि एवं अनुबन्ध अधिनियम

प्रश्न 2.
अनुबन्ध का अर्थ क्या है?
उत्तर:
अनुबन्ध दो या दो से अधिक पक्षकारों (व्यक्तियों) के बीच किया गया एक ऐसा ठहराव है, जो पक्षकारों के मध्य वैधानिक दायित्वों एवं अधिकारों की उत्पत्ति करता है।

प्रश्न 3.
अनुबन्ध की कोई चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  1. दो या दो से अधिक पक्षकारों का होना।
  2. पक्षकारों के मध्य ठहराव का होना।
  3. पक्षकारों में अनुबन्ध करने की क्षमता होना।
  4. पक्षकारों की स्वतन्त्र सहमति।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 9 व्यापारिक विधि एवं अनुबन्ध अधिनियम

प्रश्न 4.
व्यर्थ अनुबन्ध क्या है?
उत्तर:
ऐसा अनुबन्ध शुरू से ही व्यर्थ नहीं होता है बल्कि किसी विशिष्ट घटना के घटने या न घटने पर अनुबन्ध व्यर्थ हो जाता है।

प्रश्न 5.
क्या सभी ठहराव अनुबन्ध होते हैं?
उत्तर:
सभी ठहराव अनुबन्ध नहीं होते हैं।

प्रश्न 6.
वैध ठहराव क्या है?
उत्तर:
ऐसे ठहराव जिनका उद्देश्य वैधानिक होता है अर्थात् जो अवैध, अनैतिक तथा लोकनिति के विरुद्ध नहीं होते हैं।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 9 व्यापारिक विधि एवं अनुबन्ध अधिनियम

प्रश्न 7.
अप्रवर्चनीय अनुबन्ध क्या है?
उत्तर:
जो अनुबन्ध लिखितं या मौखिक शब्दों में न होकर पक्षकारों के कार्यों या आचरण से प्रकट होता है, उसे अप्रवर्चनीय अनुबन्ध कहते हैं।

प्रश्न 8.
जितना दाम – उतना काम से क्या अर्थ है?
उत्तर:
जितना दाम – उतना काम से अर्थ है कि अनुबन्ध भंग की दशा में पीड़ित पक्षकार ने जितना कार्य कर लिया है, उसका तो भुगतान दिया ही जाना चाहिए।

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 9 लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
क्या भारतीय अनुबन्ध अधिनियम पर्याप्त है?
उत्तर:
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की संरचना में भारत में उपलब्ध वातावरण, रीति – रिवाज, व्यापारिक व्यवहार तथा यहाँ की विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखा गया है। लेकिन भारतीय सन्नियम जहाँ अस्पष्ट एवं भ्रामक है वहाँ पर भारतीय न्यायालयों द्वारा इंग्लिश सामान्य सन्नियम का सहारा लेना आवश्यक हो जाता है।

प्रश्न 2.
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम का क्षेत्र क्या है?
उत्तर:
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम क्षेत्र के अन्तर्गत वर्तमान में निम्न विषय वस्तु का अध्ययन किया जाता है –

  1. अनुबन्ध के सामान्य सिद्धान्त तथा अर्द्ध अनुबन्ध (धारा 1 से 75 तक)।
  2. हानि रक्षा तथा गारन्टी अनुबन्ध प्रावधान (धारा 124 से 147 तक)।
  3. निक्षेप तथा गिरवी अनुबन्धों सम्बन्धी प्रावधान (धारा 148 से 181 तक)।
  4. एजेन्सी अनुबन्धों सम्बन्धी प्रावधान (धारा 182 से 238 तक)।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 9 व्यापारिक विधि एवं अनुबन्ध अधिनियम

प्रश्न 3.
अनुबन्ध एक ऐसा ठहराव है, जो राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय होता है। क्यों?
उत्तर:
जिस व्यक्ति के सम्मुख प्रस्ताव रखा जाता है और वह उस प्रस्ताव पर अपनी सहमति प्रकट कर देता है तो कहा जाता है कि प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया। एक प्रस्ताव जब स्वीकार कर लिया जाता है, तो वह वचन कहलाता है। इस प्रकार ठहराव एवं स्वीकृति प्रस्ताव है लेकिन ये राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय होना आवश्यक है। इस प्रकार के वह ठहराव जो राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय न हो तो ठहराव होते हुए भी अनुबन्ध नहीं कहे जा सकते हैं।

उदाहरण के लिए, पीताम्बर अपनी पत्नी इन्दु को जयपुर आमेर का किला दिखाने का प्रस्ताव रखता है जिस पर इन्दु अपनी स्वीकृति दे देती है। यदि पीताम्बर अपनी पत्नी को आमेर का किला नहीं दिखाता या इन्दु स्वयं नहीं देखना चाहती तो दोनों पक्षकारों को एक दूसरे के विरुद्ध ठहराव के अन्तर्गत कोई वैधानिक उपचार प्राप्त नहीं होगा क्योंकि यह पति – पत्नी के बीच किया गया सामाजिक ठहराव है।

प्रश्न 4.
एक ठहराव कब अनुबन्ध बन जाता है?
उत्तर:
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 10 के अनुसार, वे सब ठहराव अनुबन्ध बन जाते हैं जो न्यायोचित प्रतिफल और उद्देश्य के लिए अनुबन्ध करने वाले पक्षकारों की स्वतन्त्र सहमति से किए गए हों, जिन्हें स्पष्ट रूप से व्यर्थ घोषित न कर दिया गया हों और जो किसी विशेष अधिनियम के आदेश पर लिखित, साक्षी द्वारा प्रमाणित एवं रजिस्टर्ड हो।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 9 व्यापारिक विधि एवं अनुबन्ध अधिनियम

प्रश्न 5.
क्या ठहराव वैधानिक होता है?
उत्तर:
जब दो पक्षकारों के मध्य किया जाने वाले ठहराव का उद्देश्य वैधानिक होता है तो वह वैधानिक ठहराव माना जायेगा। लेकिन जब राजनियम में ऐसे ठहराव के प्रति कोई प्रतिबन्ध है, या ऐसा ठहराव किसी व्यक्ति या उसकी सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाने वाला हो, ठहराव का प्रवर्तनीय राजनियम की किसी धारा का उल्लंघन करता हो, ठहराव कपटमय हो या किसी ठहराव को न्यायालय लोकनीति के विरुद्ध अथवा अनैतिक मानता हो आदि दशाओं में ठहराव वैधानिक नहीं होता है।

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अनुबन्ध क्या है? एक वैध अनुबन्ध के आवश्यक लक्षणों को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अनुबन्ध का अर्थ:
अनुबन्ध शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द “Contrautum” से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ है “आपस में मिलना”। अनुबन्ध दो या दो से अधिक पक्षकारों (व्यक्तियों) के बीच किया गया एक ऐसा ठहराव है, जो पक्षकारों के मध्य वैधानिक दायित्वों एवं अधिकारों की उत्पत्ति करता है।

सर विलियम एन्सन के अनुसार – “अनुबन्ध दो या से दो अधिक व्यक्तियों के बीच किया गया ठहराव है जिसे राजनियम द्वारा प्रवर्तित करवाया जा सकता है तथा जिसके अन्तर्गत एक या एक से अधिक पक्षकारों को दूसरे पक्षकार या पक्षकारों के विरुद्ध कुछ अधिकार प्राप्त होते हैं।”

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम 1872 (I.C. Act 1872) की धारा 2(H) के अनुसार – “अनुबन्ध एक ऐसा ठहराव है जो राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय होता है।”
उपरोक्त परिभाषाओं के विश्लेषण से स्पष्ट हो जाता है कि अनुबन्ध में दो तत्व विद्यामान हैं –

  1. अनुबन्ध एक ठहराव है जो प्रस्ताव की स्वीकृति देने से उत्पन्न होता है।
  2. यह ठहराव राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय होता है तथा पक्षकारों के मध्य वैधानिक दायित्व उत्पन्न करता है।

अनुबन्ध = ठहराव + रोजनियम द्वारा प्रवर्तनीयता।

वैध अनुबन्ध के आवश्यक लक्षण:
एक वैध अनुबन्ध के लिए निम्नलिखित लक्षणों का होना अनिवार्य है –
1. दो या दो से अधिक पक्षकार होना – किसी भी वैध अनुबन्ध के लिए दो या दो से अधिक पक्षकारों का होना अनिवार्य है जिससे एक प्रस्तावक या वचनदाता तथा दूसरा प्रस्तावगृहीता या वचनंगृहीता कहलाता है। प्रस्तावक प्रस्ताव रखता है और प्रस्तावगृहीता उस प्रस्ताव को स्वीकार कर सकता है। यह किसी भी अनुबन्ध का प्रथम लक्षण है।

2. ठहराव का होना – किसी भी वैध अनुबन्ध के लिए दोनों पक्षकारों के मध्य ठहराव का होना आवश्यक है। ठहराव का जन्म प्रस्ताव की स्वीकृति देने से होता है लेकिन यदि दो पक्षकार एक साथ ही समय पर एक ही वस्तु के क्रमशः क्रय तथा विक्रय के लिए प्रस्ताव करते हैं तो इससे ठहराव का निर्माण नहीं होता है ये तो प्रति – प्रस्ताव है।

3. वैधानिक सम्बन्ध स्थापित करने की इच्छा – वैध अनुबन्ध निर्माण के लिए दोनों पक्षकारों की इच्छा परस्पर वैधानिक सम्बन्ध स्थापित करना चाहिए। वैध अनुबन्ध के लिए दोनों पक्षकारों के दिमाग में यह बात निश्चित होनी चाहिए कि उन्हें एक – दूसरे के प्रति कुछ कानूनी अधिकार होंगे और यदि इसमें से कोई पक्षकार अनुबन्ध को पूरा नहीं करेगा तो उसे न्यायालय द्वारा पूरा करवाया जा सकेगा। ऐसे ठहराव जैसे – साथ – साथ खेलने जाना, समारोह में जाना, साथ – साथ घूमने जाना, पारिवारिक, राजनैतिक अथवा सामाजिक दायित्व तो उत्पन्न करते हैं परन्तु इनको उद्देश्य किसी प्रकार का वैधानिक सम्बन्ध स्थापित करना नहीं है, तो ये ठहराव अनुबन्ध नहीं है।

4. पक्षकारों में अनुबन्ध करने की क्षमता – एक अवयस्क, अस्वस्थ और बुद्धिहीन व्यक्ति तथा स्पष्ट रूप से अनुबन्ध करने के लिए अयोग्य घोषित व्यक्ति अनुबन्ध नहीं कर सकता अर्थात् वैध अनुबन्ध के लिए अनुबन्ध करने वाले पक्षकारों में अनुबन्ध करने की क्षमता होनी चाहिए।

5. स्वतन्त्र सहमति – प्रत्येक अनुबन्ध के लिए पक्षकारों में स्वतन्त्र सहमति का होना आवश्यक है। यदि शारीरिक एवं मानसिक दबाव या धोखे, भ्रम या गलती से अनुबन्ध के लिए सहमति दी जाती है तो वह स्वतन्त्र सहमति नहीं मानी जाती है। पक्षकारों की स्वतन्त्र सहमति उसी समय मानी जायेगी जब वे एक ही विषय पर एक ही अर्थ में सहमत हों तथा अनुबन्ध से सम्बन्धित समस्त शर्तों पर एक मत हों।

6. वैधानिक उद्देश्य – किसी ठहराव का उद्देश्य वैधानिक होना चाहिए अर्थात् वह राजनियम की दृष्टि से मान्य होना चाहिए। अतः जबे ठहराव राजनियम की किसी धारा का उल्लंघन करता हो, किसी व्यक्ति या उसकी सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाने वाला हो और न्यायालय उसे लोकनीति के विरुद्ध अथवा अनैतिक मानता हो तो वह अनुबन्ध वैध नहीं होगा।

7. ठहराव स्पष्ट रूप से व्यर्थ घोषित न किया गया हो – भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की विभिन्न धाराओं में जिन ठहरावों का उल्लेख किया गया है वे स्पष्ट रूप से व्यर्थ घोषित कर दिए गए हैं। इस प्रकार बिना प्रतिफल, बिना उद्देश्य, विवाह, व्यापार तथा कानूनी कार्यवाही में रुकावट डालने वाले ठहराव अथवा अनिश्चितता, बाजी तथा असम्भव कार्य करने से सम्बन्धित ठहराव स्पष्ट रूप से व्यर्थ घोषित कर दिए गए हैं।

8. निश्चितता – प्रत्येक ठहराव की शर्ते दोनों पक्षकारों द्वारा निश्चित होनी चाहिए। निश्चितता से आशय स्पष्टता से है इसलिए जहाँ ठहराव अस्पष्ट है वहाँ पर शर्ते पूरी करना सम्भव नहीं होता इसलिए राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय नहीं कराया जा सकता है।

9. कानूनी औपचारिकतायें – अनुबन्ध लिखित, साक्षी द्वारा प्रमाणित रजिस्टर्ड होना चाहिए। यदि किसी अधिनियम द्वारा ऐसा करना अनिवार्य कर दिया गया हो। अन्य दशाओं में अनुबन्ध सामान्यतः लिखित, मौखिक अथवा गर्भित किसी भी रूप में हो सकता है।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 9 व्यापारिक विधि एवं अनुबन्ध अधिनियम

प्रश्न 2.
सभी अनुबन्ध ठहराव होते हैं लेकिन सभी ठहराव अनुबन्ध नहीं होते हैं। विवेचना कीजिए।
उत्तर:
“सभी अनुबन्ध ठहराव होते हैं, लेकिन सभी ठहराव अनुबन्ध ठहराव नहीं होते हैं” यह कथन वास्तव में पूर्ण रूप से सत्य है लेकिन इसकी विवेचना से पूर्व ठहराव तथा अनुबन्ध शब्दों का अर्थ जान लेना आवश्यक है।

ठहराव – प्रत्येक वचन तथा वचनों का प्रत्येक समूह जिसमें वचन एक-दूसरे के लिए प्रतिफल होते हैं, ठहराव कहलाता है, जैसे – अनुज, धीरज को अपनी दुकान 5,00,000 में बेचने का प्रस्ताव करता है, धीरज इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है। यहाँ अनुज और धीरज के बीच ठहराव है क्योंकि धीरज दुकान के बदले अनुज को 5,00,000 देता है। जो अंनुज को दुकान के प्रतिफल में मिलते हैं।

अनुबन्ध – अनुबन्ध दो या दो से अधिक पक्षकारों (व्यक्तियों) के बीच किया गया एक ऐसा ठहराव है जो पक्षकारों के मध्य वैधानिक दायित्वों एवं अधिकारों की उत्पत्ति करता है। भारतीय अनुबन्ध अधिनियम 1872 की धारा 2(H) के अनुसार, “अनुबन्ध एक ऐसा ठहराव है जो राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय होता है।” जैसे – श्याम स्वेच्छापूर्वक अपना मोबाइल बलराम को 1,500 में देने को तैयार हो जाता है तथा बलराम स्वेच्छापूर्वक अर्थात् बिना किसी दवाब के अपनी सहमति प्रदान करता है तो इसे अनुबन्ध कहा जायेगा। अनुबन्ध की परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि अनुबन्ध के लिए तीन तत्व अत्यन्त आवश्यक हैं –

  1. ठहराव
  2. वैधानिक दायित्व
  3. राजनियम द्वारा प्रवर्तित होना।

यहाँ ठहराव और अनुबन्ध का अर्थ जानने के पश्चात् कहा जा सकता है कि ठहराव एक अनुबन्ध की अपेक्षा अधिक व्यापक है, क्योंकि ठहराव पारिवारिक, राजनैतिक अथवा सामाजिक आदि के रूप में हो सकता है परन्तु एक ठहराव अनुबन्ध का रूप उसी समय धारण कर सकेगा जबकि वह वैधानिक दायित्व उत्पन्न करे और राजनियम द्वारा प्रवर्तित कराया जा सके। अब हम उपरोक्त कथन को दो भागों में विभाजित करके विश्लेषण करेंगे।

1. सभी अनुबन्ध ठहराव होते हैं – एक वैध अनुबन्ध के लिए पक्षकारों के मध्य ठहराव होना चाहिए अर्थात् बिना ठहराव के अनुबन्ध का जन्म हो ही नहीं सकता है। इस प्रकार जहाँ अनुबन्ध होगा वहाँ ठहराव अवश्य होगा। अनुबन्ध का दूसरा आवश्यक तत्व है कि पक्षकारों के मध्य वैधानिक दायित्व उत्पन्न हो। बहुत से ठहराव ऐसे होते हैं जिनके द्वारा कोई वैधानिक दायित्व उत्पन्न नहीं होता अतः वे अनुबन्ध नहीं कहे जा सकते हैं। केवल वे ही ठहराव जो वैधानिक दायित्व उत्पन्न करते हैं; अनुबन्ध का आधार होते हैं, जैसे – कृष्णा अपनी कार मरम्मत के लिए रवि को देता है। रवि कार की मरम्मत कर देता है तथा अपनी मजदूरी के 500 मांगता है। यहाँ पर कृष्णा और रवि के मध्य वैधानिक दायित्व उत्पन्न हो गया अतः यह एक अनुबन्ध है।

अनुबन्ध के लिए आवश्यक तत्व यह भी है कि वह ठहराव राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय होना चाहिए। राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय होने से आशय है कि यदि एक पक्षकार अपने वचन का पालन न करे तो दूसरे पक्षकार को यह अधिकार होगा कि वह न्यायालय के माध्यम से वचन का पालन करायेगा। यह ठहराव राजनियम द्वारा उसी समय प्रवर्तनीय कराया जा सकता है। जब ठहराव पक्षकारों की स्वतन्त्र सहमति से किए गए हों, उनका प्रतिफल एवं उद्देश्य वैधानिक हो तथा अधिनियम के अन्तर्गत स्पष्टतया व्यर्थ घोषित नहीं किये गये हों। इसके अलावा यदि आवश्यक हो तो ठहराव लिखित, प्रमाणित तथा रजिस्टर्ड भी हो। उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि सभी अनुबन्ध ठहराव होते हैं।

2. सभी ठहराव अनुबन्ध नहीं होते – हम दैनिक क्रियाकलापों में कई ऐसे ठहराव करते हैं, जैसे – साथ – साथ खेलने जाना, पिकनिक जाना, किसी क्लब में जाना, किसी विवाह, जन्मदिन में जाना, साथ – साथ भोजन करना, घूमने जाना आदि। ऐसे ठहराव पारिवरिक, राजनैतिक अथवा सामाजिक दायित्वं तो उत्पन्न करते हैं। परन्तु इनका उद्देश्य किसी प्रकार का वैधानिक सम्बन्ध स्थापित करना नहीं है। इस कारण ये ठहराव अनुबन्ध नहीं है।

उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण – विमल अपने मित्र लोकेश को अपने पुत्र के जन्मदिन पर भोजन के लिए आमन्त्रित करता है। लोकेश ने इस निमंत्रण को स्वीकार कर लिया लेकिन निश्चित दिन व समय पर लोकेश किसी कार्यवश भोजन के लिए नहीं पहुँचा। जिस पर विमल द्वारा भोजन सामग्री पर किए गए खर्चे के प्रतीक्षा के कपट के लिए लोकेश पर न्यायालय में वाद प्रस्तुत किया गया, जो न्यायालय द्वारा निरस्त कर दिया गया, क्योंकि न्यायालय की दृष्टि से ठहराव वैधानिक सम्बन्ध स्थापित करने के उद्देश्य से नहीं किया गया था।

इस प्रकार सामाजिक ठहराव, पारिवारिक ठहराव, राजनैतिक ठहराव, अनुबन्ध करने के अयोग्य पक्षकारों द्वारा किए ठहराव, स्वतन्त्र सहमति के अभाव में किए गए ठहराव, स्पष्ट रूप से व्यर्थ घोषित ठहराव, धार्मिक व नैतिक ठहराव आदि ऐसे ठहराव हैं जो केवल ठहराव ही रहते हैं, अनुबन्ध नहीं हो सकते। इस प्रकार हम उपरोक्त विश्लेषणों के आधार पर यह कह सकते हैं कि सब अनुबन्ध, ठहराव होते हैं लेकिन सभी ठहराव, अनुबन्ध नहीं होते हैं।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 9 व्यापारिक विधि एवं अनुबन्ध अधिनियम

प्रश्न 3.
भारतीय अधिनियम के स्रोत क्या हैं?
उत्तर:
भारतीय अधिनियम के स्रोत निम्नलिखित हैं –

(1) परिनियम – परिनियम से आशय उन अधिनियमों से है जो किसी भी देश की संसदीय प्रणाली के अन्तर्गत संसद अथवा विधानसभाओं द्वारा बनाये जाते हैं। जिसमें देश की विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखा जाता है।

(2) इंग्लिश कॉमन लॉ – यह इंग्लैण्ड का सबसे प्राचीन राजनियम है। इसे वहाँ के योग्य न्यायाधीशों द्वारा महत्वपूर्ण वादों में दिए गए निर्णयों के आधार पर बनाया गया है। भारतीय व्यापारिक सन्नियम जहाँ पर स्पष्ट एवं भ्रामक हो जाता है वहाँ पर भारतीय न्यायालय इंग्लिश सामान्य सन्नियम का सहारा लेते हैं।

(3) भारतीय रीति – रिवाज – ऐसे रीति – रिवाज अधिक स्पष्ट एवं प्रामाणिक होने पर न्यायालयों द्वारा लिए जाने वाले निर्णयों को उचित आधार, मार्गदर्शन प्रदान करने में महत्वपूर्ण होते हैं।

(4) न्यायालयों के निर्णय – वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए न्यायालयों में नये – नये विषयों पर विवाद उत्पन्न होते रहते हैं और उन पर निर्णय देने के लिए अधिनियम, रीति – रिवाज तथा न्याय के सिद्धान्तों का सहारा लिया जाता है तथा उच्च एवं सर्वोच्च न्यायालयों द्वारा दिए गए निर्णयों को निम्न स्तरीय न्यायालयों द्वारा निर्णय लेते समय दृष्टान्त के रूप में प्रयोग किया जाता है।

(5) न्याय – विभिन्न विवादग्रस्त मामलों को निपटाने के लिए. इंग्लैण्ड की तरह भारतवर्ष में भी साधारण सन्नियम न्यायपूर्ण हल नहीं दे सकता है। न्यायालयों को न्याय के आधार पर विवादों को तय करने का अधिकार दे दिया गया है।

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 9 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 9 बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
व्यापारिक सन्नियम (विधि) क्षेत्र में आने वाले महत्वपूर्ण अधिनियम हैं –
(अ) भारतीय अनुबन्ध अधिनियम, 1872
(ब) भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932
(स) कम्पनी अधिनियम, 2013
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द)

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 9 व्यापारिक विधि एवं अनुबन्ध अधिनियम

प्रश्न 2.
भारतीय व्यापारिक सन्नियम का मुख्य आधार स्रोत किस देश के वाणिज्य अधिनियम पर आधारित हैं –
(अ) अमेरिका
(ब) इंग्लैण्ड
(स) फ्रान्स
(द) इटली
उत्तर:
(ब)

प्रश्न 3.
इंगलिश कॉमन लॉ सर्वाधिक पुराना राजनियम है –
(अ) भारत का
(ब) फ्रान्स को
(स) इंग्लैण्ड का
(द) अमेरिका की।
उत्तर:
(स)

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 9 व्यापारिक विधि एवं अनुबन्ध अधिनियम

प्रश्न 4.
ऐसे अधिनियमं जो किसी भी देश की संसदीय प्रणाली के अन्तर्गत संसद अथवा विधान सभाओं द्वारा बनाये जाते हैं, कहते हैं –
(अ) परिनियम
(ब) न्याय
(स) रीतिरिवाज
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ)

प्रश्न 5.
भारतीय व्यापारिक सन्मियम के स्रोत हैं –
(अ) न्याय
(ब) परिनियम
(स) भारतीय रीति – रिवाज
(द) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(द)

प्रश्न 6.
भारतीय अनुबन्थ अधिनियम 1872, देश में लागू किया गया –
(अ) जनवरी, 1872 को
(ब) सितम्बर, 1872 को
(स) नवम्बर, 1872 को
(द) अगस्त, 1872 को
उत्तर:
(ब)

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 9 व्यापारिक विधि एवं अनुबन्ध अधिनियम

प्रश्न 7.
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम, 1872 में प्रारम्भ के समय कुल धारायें थीं –
(अ) 365 धारायें
(ब) 281 धारायें
(स) 266 धारायें
(द) 238 धारायें
उत्तर:
(स)

प्रश्न 8.
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम, 1872 में हानि रक्षा तथा गारन्टी अनुबन्ध प्रावधान से सम्बन्धित विषय वस्तु वर्णित है –
(अ) धारा 1 से 75 तक
(ब) धारा 124 से 147 तक
(स) धारा 148 से 181 तक
(द) धारा 182 से 238 तक
उत्तर:
(ब)

प्रश्न 9.
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम, 1872 में धारा 182 से 238 सम्बन्धित है –
(अ) अनुबन्ध के सामान्य सिद्धान्त तथा अर्द्ध अनुबन्ध से
(ब) हानि रक्षा तथा गारन्टी अनुबन्ध प्रावधान से
(स) निपेक्ष तथा गिरवी अनुबन्ध सम्बन्धी प्रावधान से
(द) एजेन्सी अनुबन्ध सम्बन्धी प्रावधान से।
उत्तर:
(द)

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 9 व्यापारिक विधि एवं अनुबन्ध अधिनियम

प्रश्न 10.
“Contrautum” का शाब्दिक अर्थ क्या है –
(अ) आपस में मिलना
(ब) समझौता करना
(स) नियम बनाना
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ)

प्रश्न 11.
“अनुबन्ध एक ऐसा ठहराव है जो पक्षकारों के बीच दायित्व उत्पन्न करता है और उनकी व्याख्या करता है” यह परिभाषा दी है –
(अ) सर विलियम एन्सन ने
(ब) न्यायाधीश साइमण्ड ने
(स) भारतीय अनुबन्ध अधिनियम, 1872 की धारा 2(H) में
(द) इसमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब)

प्रश्न 12.
किसी वैध अनुबन्ध हेतु पक्षकार होने चाहिए।
(अ) कम से कम दो
(ब) दो या दो से अधिक
(स) (अ) और (ब) दोनों
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(स)

प्रश्न 13.
वैध अनुबन्ध के आवश्यक तत्व हैं –
(अ) ठहराव का होना।
(ब) पक्षकारों की स्वतन्त्र सहमति
(स) वैधानिक प्रतिफल
(द) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(द)

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 9 व्यापारिक विधि एवं अनुबन्ध अधिनियम

प्रश्न 14.
ऐसा ठहराव जो राजनियम द्वारा प्रवर्तित नहीं करवाया जा सकता है, कहते हैं –
(अ) व्यर्थ अनुबन्ध
(ब) वैध अनुबन्ध
(स) व्यर्थ ठहराव
(द) अवैध ठहराव
उत्तर:
(स)

प्रश्न 15.
कार्यों या आचरण द्वारा प्रकट प्रस्ताव को कहते हैं –
(अ) गर्भित प्रस्ताव
(ब) स्पष्ट प्रस्ताव
(स) विशिष्ट प्रस्ताव
(द) स्थानापन्न प्रस्ताव
उत्तर:
(अ)

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 9 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजनियम से क्या आशय है?
उत्तर:
राजनियम से आशय राज्य द्वारा मान्य एवं प्रयोग में लाये जाने वाले उन सिद्धान्तों के समूह से है जिनको वह न्याय के प्रशासन के लिए प्रयोग में लाता है।

प्रश्न 2.
व्यापारिक सन्नियम (विधि) क्या है?
उत्तर:
व्यापारिक व्यवहारों या लेन देनों के नियमित, नियन्त्रित, व्यवस्थित व प्रभावी करने वाले वैधानिक नियमों के समूह को व्यापारिक सन्नियम (विधि) कहते हैं।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 9 व्यापारिक विधि एवं अनुबन्ध अधिनियम

प्रश्न 3.
व्यापारिक सन्नियम (विधि) के क्षेत्र में आने वाले कोई दो महत्वपूर्ण अधिनियम बताइए।
उत्तर:

  1. कम्पनी अधिनियम, 2013
  2. बैंकिंग कम्पनी अधिनियम, 1949.

प्रश्न 4.
भारतीय व्यापारिक सन्नियओं को मुख्य आधार स्रोत इंग्लैण्ड के वाणिज्य अधिनियम पर क्यों आधारित है?
उत्तर:
भारत में सैकड़ों वर्षों तक ब्रिटिश राज रहा है, इस कारण भारतीय व्यापारिक सन्नियमों का मुख्य आधार स्रोत इंग्लैण्ड के वाणिज्य अधिनियम पर आधारित है।

प्रश्न 5.
इंग्लैण्ड का सर्वाधिक पुराना राजनियम कौन सा है?
उत्तर:
इंग्लिश कॉमन लॉ।

प्रश्न 6.
परिनियम का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
परिनियम से तात्पर्य उन अधिनियमों से है जो किसी भी देश की संसदीय प्रणाली के अन्तर्गत संसद अथवा विधान सभाओं द्वारा बनाये जाते हैं।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 9 व्यापारिक विधि एवं अनुबन्ध अधिनियम

प्रश्न 7.
व्यावसायिक जगत में व्यवसाय करने वाले पक्षकारों की अपने व्यापारिक अधिकारों की रक्षा कैसे होती है?
उत्तर:
अनुबन्ध अधिनियम द्वारा।

प्रश्न 8.
हमारे देश में भारतीय अनुबन्ध अधिनियम, 1872 कब लागू किया गया?
उत्तर:
सितम्बर, 1872 में।

प्रश्न 9
वस्तु विक्रय अधिनियम कां निर्माण कब किया गया?
उत्तर:
सन् 1930 में।

प्रश्न 10.
भारतीय अनुबन्ध की विषय वस्तु के अन्तर्गत अनुबन्ध के सामान्य सिद्धान्त तथा अर्द्ध अनुबन्ध किन धाराओं में वर्णित है?
उत्तर:
धारा 1 से 75 तक।

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प्रश्न 11.
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 148 से 181 में किन प्रावधानों सम्मिलित किया गया है?
उत्तर:
निपेक्ष तथा गिरवी अनुबन्धों सम्बन्धी प्रावधान।

प्रश्न 12.
अनुबन्ध शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के किस शब्द से हुई है?
उत्तर:
अनुबन्ध शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द से हुई है।

प्रश्न 13.
“अनुबन्ध एक ऐसा ठहराव है, जो राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय होता है।” यह परिभाषा है।
उत्तर:
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम, 1872 की धारा 2(H) द्वारा।

प्रश्न 14.
अनुबन्ध में कौन कौन से दो प्रमुख तत्व विद्यमान होते हैं?
उत्तर:

  1. अनुबन्ध एक ठहराव है जो प्रस्ताव की स्वीकृति देने से उत्पन्न होता है।
  2. यह ठहराव राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय होता है तथा पक्षकारों के मध्य वैधानिक दायित्व उत्पन्न करता है।

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प्रश्न 15.
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 2(H) के अलावा और किस धारा में वैधं अनुबन्ध के लक्षणों के सम्बन्ध में लिखा गया है?
उत्तर:
धारा 10 में।

प्रश्न 16.
किसी वैध अनुबन्ध के लिए कम से कम कितने पक्षकार होने चाहिए?
उत्तर:
कम से कम दो पक्षकार।

प्रश्न 17.
अनुबन्ध में पक्षकारों को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
एक प्रस्तावक या वचनदाता तथा दूसरा प्रस्तावग्रहीता या वचनग्रहीता कहलाता है। जिसमें प्रस्तावक प्रस्ताव रखता है और प्रस्तावग्रहीता उस प्रस्ताव को स्वीकार कर सकता है।

प्रश्न 18.
पक्षकारों के अनुबन्ध करने की क्षमता से क्या आशय है?
उत्तर:
वैध अनुबन्ध के लिए अनुबन्ध करने वाले व्यक्ति वयस्क हों, स्वस्थ मस्तिष्क हों और राजनियम द्वारा अनुबन्ध करने के अयोग्य घोषित न हों।

प्रश्न 19.
अनुबन्ध निर्माण में पक्षकारों की सहमति क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
किसी भी वैध अनुबन्ध के निर्माण के लिए ठहराव के सभी पक्षकारों को ठहराव की प्रत्येक बात के लिए समाने भाव से सहमति आवश्यक है।

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प्रश्न 20.
वैध अनुबन्ध के अन्तर्गत किन परिस्थितियों में स्वतन्त्र सहमति नहीं मानी जाती है?
उत्तर:
यदि शारीरिक एवं मानसिक दवाब या धोखे, भ्रम या गलती से अनुबन्ध के लिए सहमति दी जाती है तो वह स्वतन्त्र सहमति नहीं मानी जाती है।

प्रश्न 21.
वैध अनुबन्ध के लिए वैध प्रतिफल का होना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
कानून द्वारा किसी भी ठहराव के प्रवर्तनीय होने के लिए कुछ न कुछ प्रतिफल का होना आवश्यक है इसलिए वैध अनुबन्ध के लिए वैध प्रतिफल का होना आवश्यक है।

प्रश्न 22.
वैध अनुबन्ध में वैधानिक उद्देश्य से क्या आशय है?
उत्तर:
अनुबन्ध निर्माण के लिए ठहराव का उद्देश्य वैधानिक होना चाहिए अर्थात् ठहराव करने का उद्देश्य अवैध, अनैतिक अथवा लोकनीति के विरुद्ध नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 23.
वैध अनुबन्ध में निश्चितता से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
अनुबन्ध में निश्चितता से तात्पर्य स्पष्टता से है। जहाँ ठहराव अस्पष्ट है वहाँ पर शर्ते पूरी करना सम्भव नहीं होता। प्रत्येक ठहराव की शर्ते पक्षकारों द्वारा निश्चित होनी चाहिए।

प्रश्न 24.
यदि किसी ठहराव का निष्पादन करना असम्भव हो तो ठहराव पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
ठहराव व्यर्थ हो जाता है।

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प्रश्न 25.
वैध अनुबन्ध क्या है?
उत्तर:
वैध अनुबन्ध राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय ठहराव है जो पक्षकारों के मध्य वैधानिक दायित्व उत्पन्न करता है।

प्रश्न 26.
स्पष्ट अनुबन्ध किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिसमें पक्षकार प्रस्ताव, स्वीकृति एवं अनुबन्ध की शर्तों को लिखित या मौखिक रूप से प्रकट करते हैं, स्पष्ट अनुबन्ध कहते हैं।

प्रश्न 27.
अर्द्ध अनुबन्ध क्या है?
उत्तर:
अर्द्ध अनुबन्ध वह अनुबन्ध है जिसमें पक्षकारों द्वारा वचनों का आपसी आदान – प्रदान करके नहीं किया जाता है। बल्कि कानून द्वारा पक्षकारों पर थोपा जाता है।

प्रश्न 28.
द्वि पक्षीय अनुबन्ध किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह अनुबन्ध जिसमें दोनों ही पक्षकार वचनों का आदान – प्रदान कर उन्हें भविष्य में पूरा करने का ठहराव करते हैं।

प्रश्न 29.
गर्भित प्रस्तावं किसे कहते हैं?
उत्तर:
कार्यों या आचरण द्वारा प्रकट प्रस्ताव को गर्भित प्रस्ताव कहते हैं।

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प्रश्न 30.
स्थानापन्न प्रस्ताव क्या है?
उत्तर:
जब किसी प्रस्ताव की स्वीकृति प्रस्ताव की शर्ते से हटकर की जाती है तो उसे स्वीकृति नहीं बल्कि स्थानापन्न प्रस्ताव कहते हैं।

प्रश्न 31.
निषेधाज्ञा क्या है?
उत्तर:
न्यायालय को वह आदेश जो अनुबन्ध की शर्तों के विरुद्ध कार्य करने पर लगाया जाता है।

प्रश्न 32.
गिरवीकर्ता किसे कहते हैं?
उत्तर:
गिरवीकर्ता वह व्यक्ति है जो माल को गिरवी रखने हेतु निक्षेप करता है।

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 9 लघु उत्तरीय प्रश्न (SA – I)

प्रश्न 1.
किसी देश में विधि नियमन व्यवस्था व अन्य कानूनों की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर:
किसी देश के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, शैक्षिक, धार्मिक, तकनीकी विकास एवं कानून व्यवस्था, शान्ति व्यवस्था और सौहार्द का वातावरण बनाए रखने के लिए सरकार, समाज व अन्य वर्ग रीति रिवाजों, परम्पराओं, नियमों, उप नियमों के द्वारा गतिविधियों को संचालित करते हैं जिससे देश में पूर्ण शान्ति व्यवस्था, प्रभावी प्रबन्ध और संसाधनों का रचनात्मक एवं सृजनात्मक उपयोग हो सके। इस प्रयास को व्यवस्थित, प्रभावी एवं नियंत्रित करने के लिए विधि नियमन व्यवस्था व अन्य कानूनों की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 2.
विधि या सन्नियम का क्या अर्थ है?
उत्तर:
सामान्य शब्दों में, विधि का अर्थ किसी देश, राज्य या स्थानीय सरकार द्वारा सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक क्षेत्र में माननीय व्यवहार को व्यवस्थित व नियन्त्रित करने के लिए सरकार द्वारा बनाए गए नियम, उपनियम, वैधानिक प्रक्रियायें आदि हैं। इन्हें सन्नियम या राजनियम भी कहते हैं।

एक विद्वान के अनुसार – “राजनियम से आशय राज्य द्वारा मान्य एवं प्रयोग में लाए जाने वाले उन सिद्धान्तों के समूह से है जिनको वह न्याय के प्रशासन के लिए प्रयोग में लाता है।”

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प्रश्न 3.
व्यापारिक सन्नियम (विधि) का अर्थ बताइए।
उत्तर:
व्यापारिक विधि का अर्थ:
सामान्य अर्थ में व्यापारिक व्यवहारों या लेन देनों के नियमित, नियंत्रित, व्यवस्थित व प्रभावी करने वाले वैधानिक नियमों के समूह को व्यापारिक सन्नियम (विधि) कहते हैं।

प्रो. एम. सी. शुक्ला के अनुसार – “व्यापारिक सन्नियम (विधि) राजनियम की वह शाखा है जिसमें व्यापारिक व्यक्तियों के उन अधिकारों एवं दायित्वों का वर्णन होता है, जो व्यापारिक सम्पत्ति के विषय में व्यापारिक व्यवहारों से उत्पन्न होते हैं।”

प्रश्न 4.
व्यापारिक सन्नियम के क्या उद्देश्य हैं?
उत्तर:
व्यापारिक सन्नियम के उद्देश्य निम्न हैं –

  1. समस्त व्यावसायिक क्रियाओं पर नियन्त्रण रखना।
  2. व्यावहारिक क्रियाओं का नियमन करना।
  3. व्यापारियों के समस्त विवादों का निपटारा करना।
  4. व्यापारिक व्यक्तियों के उन अधिकारों एवं दायित्वों का वर्णन करना जो उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 5.
“इंग्लिश कॉमन लॉ” पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
इंग्लिश कॉमन लॉ:
यह इंग्लैण्ड का सबसे प्राचीन राजनियम है। इसे वहाँ के योग्य न्यायाधीशों द्वारा महत्वपूर्ण वादों में दिए गए निर्णयों के आधार पर बनाया है। भारतीय व्यापारिक सन्नियम जहाँ पर अस्पष्ट और भ्रामक हो जाता है वहाँ पर भारतीय न्यायालय इंग्लिश सामान्य सन्नियम का सहारा लेते हैं।

प्रश्न 6.
अनुबन्ध का क्या अर्थ है? बताइए।
उत्तर:
अनुबन्ध शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द “Contrautum” से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ है “आपस में मिलना”। अतः अनुबन्ध दो या दो से अधिक पक्षकारों (व्यक्तियों) के बीच किया गया एक ऐसा ठहराव है, जो पक्षकारों के मध्य वैधानिक दायित्व एवं अधिकारों की उत्पत्ति करता है।

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प्रश्न 7.
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा – 10 द्वारा अनुबन्ध को किस प्रकार परिभाषित किया गया है?
उत्तर:
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा – 10 में अनुबन्ध को स्पष्ट समझाया गया है कि सभी ठहराव अनुबन्ध हैं, जो न्यायोचित प्रतिफल और उद्देश्य के लिए अनुबन्ध करने की योग्यता वाले पक्षकारों की स्वतन्त्र सहमति से किए गए हों और जो किसी विशेष अधिनियम के आदेश पर लिखित, साक्षी द्वारा प्रमाणित एवं रजिस्टर्ड हों।

प्रश्न 8.
राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय होने के लिए प्रत्येक अनुबन्ध में कौन-कौन से तत्वों का होना आवश्यक है किन्हीं पाँच तत्वों को बताइए।
उत्तर:

  1. ठहराव का होना।
  2. पक्षकारों में अनुबन्ध करने की क्षमता।
  3. पक्षकारों की स्वतन्त्र सहमति।
  4. ठहराव का उद्देश्य वैधानिक हो।
  5. ठहराव की प्रत्येक शर्त निश्चित होनी चाहिए।

प्रश्न 9.
प्रस्ताव किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब एक पक्षकार किसी दूसरे पक्षकार के समक्ष किसी कार्य को करने या न करने की इच्छा इस उद्देश्य से प्रकट करता है कि दूसरे पक्षकार की सहमति प्राप्त हो, तो यहाँ एक पक्षकर द्वारा दूसरे पक्षकार के समक्ष इच्छा प्रकट करना ही प्रस्ताव कहलाता है, जैसे – श्याम मोहन के सम्मुख अपनी कार 1,50,000 में बेचने का प्रस्ताव रखता है। यहाँ पर श्याम अपनी कार बेचने की इच्छा प्रकट करता है कि मोहन उस पर अपनी स्वीकृति उसे खरीदने या न खरीदने के लिए दे।

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प्रश्न 10.
उत्पीड़न क्या है? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
उत्पीड़न:
किसी व्यक्ति के साथ ठहराव करने के उद्देश्य से कोई ऐसा कार्य करना या करने की धमकी देना जो भारतीय दण्ड विधान द्वारा वर्जित हो, या किसी व्यक्ति हितों के विपरीत उसकी सम्पत्ति को अवैधानिक रूप से रोकना या रोकने की धमकी देना उत्पीड़न है।

उदाहरण – ‘आलोक’ विजय की पिटाई करके 50,000 के प्रतिज्ञापत्र पर हस्ताक्षर करा लेता है तो माना जायेगा कि विजय की सहमति उत्पीड़न द्वारा ली गई है।

प्रश्न 11.
अनुचित प्रभाव पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
अनुचित प्रभाव:
जब कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की इच्छा को प्रभावित करने की स्थिति में होता है तथा वह इस स्थिति का उपयोग करके उस दूसरे व्यक्ति के साथ अनुबन्ध में अनुचित लाभ प्राप्त करता है।

कपट:
कपट अनुबन्ध के पक्षकार या उसके एजेन्ट द्वारा दूसरे पक्षकार के समक्ष अनुबन्ध के महत्वपूर्ण तथ्यों का मिथ्यावर्णन करना अथवा उन्हें छिपाना है ताकि दूसरे को धोखे में डालकर उसे अनुबन्ध के लिए प्रेरित किया जा सके।

प्रश्न 12.
सांयोगिक अनुबन्ध किसे कहते हैं?
उत्तर:
सांयोगिक अनुबन्ध किसी कार्य के करने या न करने का ऐसा अनुबन्ध है जिसमें वचनदाता अनुबन्ध के समपाश्विक किसी विशिष्ट भावी अनिश्चित घटना के घटित होने या घटित नहीं होने पर उस अनुबन्ध को पूरा करने का वचन देता है। हानि रक्षा, गारन्टी तथा बीमा के अनुबन्धों की श्रेणी में आते हैं।

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 9 लघु उत्तरीय प्रश्न (SA – II)

प्रश्न 1.
व्यापारिक सन्नियम (विधि) के क्षेत्र में आने वाले मुख्य रूप से अति महत्वपूर्ण अधिनियम कौन – कौन से हैं?
उत्तर:
व्यापारिक सन्नियम् (विधि) के क्षेत्र में आने वाले महत्वपूर्ण मुख्य रूप से अति महत्व अधिनियम निम्न हैं –

  1. भारतीय अनुबन्ध अधिनियम, 1872
  2. वस्तु विक्रय अधिनियम, 1930
  3. भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932
  4. विनिमय साध्य विलेख अधिनियम, 1882
  5. पंच निर्णय अधिनियम, 1940
  6. कम्पनी अधिनियम, 2013
  7. बैंकिंग कम्पनी अधिनियम, 1949
  8. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986
  9. आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955
  10. औद्योगिक सन्नियम
  11. श्रम अधिनियम
  12. बीमा अधिनियम
  13. सेबी अधिनियम
  14. विदेशी विनिमय प्रबन्धन अधिनियम, 1999
  15. पेटेन्ट, ट्रेडमार्क और कापीराइट अधिनियम
  16. सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम
  17. माल परिवहन सम्बन्धी सन्नियम।

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प्रश्न 2.
भारतीय व्यापारिक विधि के “इंग्लिश कॉमन लॉ” और ”न्यायालयों के निर्णय” स्रोत को बताइए।
उत्तर:
इंग्लिश कॉमन लॉ:
यह इंग्लैण्ड का सबसे प्राचीन राजनियम है। इसे वहाँ के योग्य न्यायाधीशों द्वारा महत्वपूर्ण वादों में दिए गए निर्णयों के आधार पर बनाया गया है। इसीलिए भारतीय सन्नियम जहाँ पर अस्पष्ट एवं भ्रामक हो जाता है वहाँ पर भारतीय न्यायालय इंग्लिश सामान्य अधिनियम का सहारा लेते हैं।

न्यायालयों के निर्णय:
वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए न्यायालयों में नये-नये विषयों पर विवाद उत्पन्न होते रहते हैं और उन पर निर्णय देने के लिए अधिनियम, रीति – रिवाज तथा न्याय के सिद्धान्तों का सहारा लिया जाता है तथा उच्च एवं सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों को निम्न स्तरीय न्यायालयों द्वारा निर्णय लेते समय दृष्टान्त के रूप में प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 3.
अनुबन्ध को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
अनुबन्ध:
अनुबन्ध दो या दो से अधिक पक्षकारों (व्यक्तियों) के बीच किया गया एक ऐसा ठहराव है, जो पक्षकारों के मध्य वैधानिक दायित्वों एवं अधिकारों की उत्पत्ति करता है।

सर विलियम एन्सन के अनुसार – “अनुबन्ध दो या दो अधिक व्यक्तियों के बीच किया गया ठहराव है जिसे राजनियम द्वारा प्रवर्तित करवाया जा सकता है तथा जिसके अन्तर्गत एक या एक से अधिक पक्षकारों को दूसरे पक्षकार या पक्षकार के विरुद्ध कुछ अधिकार प्राप्त होते हैं।”

न्यायाधीश साइमण्ड के अनुसार – “अनुबन्ध एक ऐसा ठहराव है जो पक्षकारों के बीच दायित्व उत्पन्न करता है और उनकी व्याख्या करता है।”

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम 1872 की धारा 2(H) के अनुसार – “अनुबन्ध एक ऐसा ठहराव है जो राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय होता है।”
उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि अनुबन्ध में मुख्यत: दो तत्व विद्यमान होते हैं –

  1. पक्षकारों के मध्य ठहराव का होना, एवं।
  2. उस ठहराव में राजनियम द्वारा लागू होने की योग्यता होना।

RBSE Solutions for Class 12 Business Studies Chapter 9 व्यापारिक विधि एवं अनुबन्ध अधिनियम

प्रश्न 4.
एक वैध अनुबन्धं के आवश्यक लक्षण संक्षेप में बताइए।
अथवा
एक वैध अनुबन्ध के आवश्यक तत्व बताइए।
अथवा
राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय होने के लिए प्रत्येक अनुबन्ध में किन किन तत्वों का समावेश होना आवश्यक है?
उत्तर:
वैध अनुबन्ध के लक्षण अथवा आवश्यक:

  1. किसी भी वैध अनुबन्ध के लिए कम से कम दो पक्षकार होने चाहिए।
  2. किसी वैध अनुबन्ध के निर्माण के लिए दोनों पक्षकारों के बीच ठहराव होना चाहिए।
  3. वैध अनुबन्ध के लिए दोनों पक्षकारों की इच्छा (इरादा) परस्पर वैधानिक सम्बन्ध स्थापित करना होना चाहिए।
  4. वैध अनुबन्ध हेतु अनुबन्ध करने वाले पक्षकारों में अनुबन्ध करने की क्षमता होनी चाहिए।
  5. अनुबन्ध निर्माण के लिए पक्षकारों के मध्य सहमति होना आवश्यक है।
  6. पक्षकारों के मध्य सहमति स्वतन्त्र होनी चाहिए।
  7. वैध अनुबन्ध के लिए वैध प्रतिफल का होना अनिवार्य है।
  8. अनुबन्ध के निर्माण के लिए ठहराव का उद्देश्य वैधानिक होना चाहिए।
  9. वैध अनुबन्ध में निश्चितता होनी चाहिए।
  10. ठहराव निष्पादन की सम्भावना होनी चाहिए।
  11. ठहराव स्पष्ट रूप से व्यर्थ घोषित ठहराव न हो।
  12. अनुबन्ध लिखित, साक्षी द्वारा प्रमाणित अथवा रजिस्टर्ड होना चाहिए।

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 9 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अनुबन्ध क्या है? अनुबन्ध और ठहराव में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अनुबन्ध:
अनुबन्ध शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ है “आपस में मिलना”। अनुबन्ध दो या से दो अधिक पक्षकारों (व्यक्तियों) के बीच किया गया एक ऐसा ठहराव है, जो पक्षकारों के मध्य वैधानिक दायित्वों एवं अधिकारों की उत्पत्ति करता है।

सर विलियम एन्सन के अनुसार – “अनुबन्ध दो या से दो अधिक व्यक्तियों के बीच किया गया ठहराव है जिसे राजनियम द्वारा प्रवर्तित करवाया जा सकता है तथा जिसके अन्तर्गत एक या एक से अधिक पक्षकारों को दूसरे पक्षकार या पक्षकारों के विरुद्ध कुछ अधिकार प्राप्त होते हैं।”

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम 1872 की धारा 2(H) के अनुसार – “अनुबन्ध एक ऐसा ठहराव है जो राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय होता है।”

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा – 10 के अनुसार – “सभी ठहराव अनुबन्ध हैं, जो न्यायोचित प्रतिफल और उद्देश्य के लिए अनुबन्ध करने की योग्यता वाले पक्षकारों की स्वतन्त्र सहमति से किए गए हों, जिन्हें स्पष्ट रूप से व्यर्थ घोषित न कर दिया गया हो और किसी विषेश अधिनियम के आदेश पर लिखित साक्षी द्वारा प्रमाणित एवं रजिस्टर्ड हो।”

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट हो जाता है कि अनुबन्ध एक ठहराव है जो प्रस्ताव की स्वीकृति देने से उत्पन्न होता है तथा यह राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय होता है और पक्षकारों के मध्य वैधानिक दायित्व उत्पन्न करता है।
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 9

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