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Rajasthan Board RBSE Class 7 Sanskrit व्याकरण कारक प्रकरण
कारक’ शब्द का अर्थ है क्रिया का जिससे सीधा सम्बन्ध हो। वाक्य का निर्माण बिना कर्ता (संज्ञा, सर्वनाम) के सम्भव नहीं है ‘ क्रिया के साथ सम्बन्ध रखने वाले निम्नलिखित कारक हैं-
1. कर्ता कारक – क्रिया को करने वाला ।
2. कर्म कारक – क्रिया जिस पर पूरी हो ।
3. करण कारक – क्रिया जिसकी सहायता से हो ।
4. सम्प्रदान कारक – क्रिया जिसके लिए हो ।
5. अपादान कारक – क्रिया जिससे अलग हो ।
6. अधिकरण कारक – क्रिया जिस स्थान पर हो ।
विशेष-
सम्बन्ध को व्याकरण में कारक न मानकर षष्ठी विभक्ति माना जाता है । सम्बोधन को भी कारक नहीं माना जाता है।
(1) कर्ता कारक
क्रिया के करने वाले को कर्ता कहते हैं । कर्ता में प्रथमा विभक्ति होती है । क्रिया सदैव प्रथमा विभक्ति के अनुसार ही होती है, जैसे
(1) लड़के दौड़ते हैं । बालकाः धावन्ति ।
(2) रमेश जाता है। रमेशः गच्छति ।
(2) कर्म कारक
- जिस पर क्रिया के प्रयोग का फल पड़ता है, उसे कर्म कारक कहते हैं । कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है, जैसेरमेश गाँव जाता है । रमेशः ग्रामं गच्छति ।
- अभितः = दोनों ओर, परितः = चारों ओर आदि के योग में द्वितीया विभक्ति होती है, जैसे-
(1) गाँव के दोनों ओर नदियाँ हैं ।
ग्रामम् अभितः नद्यौ स्तः।
(2) नगर के चारों ओर वन है । नगरं परितः वनम् अस्ति।
- गम् (जाना) तथा अन्य गति (चलना, हिलना) अर्थ वाली धातुओं के साथ द्वितीया विभक्ति होती है, जैसे-
(1) सुरेश गाँव जाता है । सुरेशः ग्रामं गच्छति ।
(2) वह बाजार जाता है । सः आपणं गच्छति ।
- दुह् = दुहना, याच् = माँगना, प्रच्छ् = पूछना इत्यादि द्विकर्मक धातुओं के साथ द्वितीया विभक्ति होती
है, जैसे-
(1) वह गाय से दूध दुहता है । सः गां पयः दोग्धि।
(2) भिखारी राजा से धन माँगता है। भिक्षुकः नृपं धनं याचति।
(3) करण कारक
- जो क्रिया की सिद्धि में अत्यन्त सहायक होता है, उसे करण कारक कहते हैं । करण में तृतीया विभक्ति होती है, जैसे-
(1) बालक गेंद से खेलते हैं। बालकाः कन्दुकेन क्रीडन्ति ।
(2) वह डण्डे से मारता है । सः दण्डेन ताडयति ।
- सह, साकम्, सार्धम्, समम् = (साथ में) तथा अलम् = (समाप्ति या रोकना) के योग में तृतीया विभक्ति होती है, जैसे-
1) वह मित्र के साथ जाता है । सः मित्रेण सह गच्छति ।
(2) शोक मत करो । अलं शोकेन ।
- यदि किसी अंग में विकार है तो उस अंग में तृतीया विभक्ति होती है, जैसे-
(1) वह पैर से लंगड़ा है। सः पादेन खञ्जः अस्ति ।
(2) वह आँख से काना है। सः नेत्रेण काणः अस्ति ।
(4) सम्प्रदान कारक
- (i) जिसे कोई वस्तु दी जाए उसकी सम्प्रदान संज्ञा होती है। सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति होती है, जैसे-
(1) गुरु शिष्य को ज्ञान देता है । गुरु: शिष्याय ज्ञानं ददाति।
(2) राम गरीब को धन देता है । रामः निर्धनाय धनं ददाति ।
- रुच् (अच्छा लगना), स्पृह (पसन्द करना), नमः (नमस्कार), स्वाहा तथा स्वस्ति (कल्याण होना), अलम् (पर्याप्त) के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है, जैसे-
1) राम को मिठाई अच्छी लगती है।
रामाय मिष्ठान्नं रोचते।
(2) गुरुजी को नमस्कार । गुरवे नमः ।
(3) बालिका फूलों को चाहती है।
बालिका पुष्पेभ्यः स्पृहयति।
(4) तेरा कल्याण हो। स्वस्ति अस्तु ते ।
(5) तेरे लिए मैं पर्याप्त हूँ। अहम् अलं ते।
- के लिए’, क्रुधू तथा द्रुह के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है, जैसे-
(1) विद्या ज्ञान के लिए होती है । विद्या ज्ञानाय भवति ।
(2) वह राम पर क्रोध करता है। सः रामाय क्रुध्यति ।
(3)दुर्जन सज्जनों से द्रोह या ईष्र्या करते हैं।
दुर्जनाः सज्जनेभ्यः द्रुह्यन्ति ईर्थ्यन्ति वा।
(5) अपादान कारक
- किसी वस्तु या व्यक्ति के अलग होने पर जो कारक स्थिर होता है, अर्थात् जिससे कोई व्यक्ति या वस्तु अलग होती है, उसमें अपादान कारक होता है । अपादान कारक
में पंचमी विभक्ति होती है, जैसे-
(1) छात्र विद्यालय से आता है।
छात्रः विद्यालयात् आगच्छति।
(2) वृक्ष से फल गिरते हैं । वृक्षात् फलानि पतन्ति ।
- जिससे भय हो या जिससे रक्षा की जाए उसमें पंचमी विभक्ति होती है, जैसे-
(1) वह पाप से डरता है । सः पापाद् बिभेति ।
(2) वह चोर से रक्षा करता है। सः चौरात् त्रायते ।
- (iii) जिससे नियमपूर्वक विद्या ग्रहण की जाए उसमें पंचमी विभक्ति होती है, जैसे-
छात्र अध्यापक से संस्कृत पढ़ता है।
छात्र: अध्यापकात् संस्कृतं पठति ।
(6) सम्बन्ध (षष्ठी विभक्ति )
- (i) जिससे सम्बन्ध को बोध होता है, उसमें षष्ठी विभक्ति होती है, जैसे-
(1) राम का मित्र आता है। रामस्य मित्रम् आगच्छति ।
(2) गाँव के लड़के खेलते हैं। ग्रामस्य बालकाः क्रीडन्ति ।
(3) दशरथ का पुत्र राम है। दशरथस्य पुत्रः रामः अस्ति।
(7) अधिकरण कारक (सप्तमी विभक्ति)
- (i) किसी वस्तु का जो आधार होता है, उसे अधिकरण कारक कहते हैं । इसमें सप्तमी विभक्ति होती है, जैसे-
(1) पेड़ पर एक बन्दर बैठा है ।
वृक्षे एकः वानरः तिष्ठति।
(2) तुम सब नगर में रहते हो । यूयं नगरे वसथ ।
- किसी क्रिया के निर्दिष्ट समय को बताने के लिए भी सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है, जैसेवह आज प्रात:काल गया । सः अद्य प्रातःकाले गतः ।
- जब एक कार्य के समाप्त होने के बाद दूसरा कार्य होता है तो पहले वाली क्रिया तथा उसके कर्ता दोनों में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है, जैसे-
सूर्य अस्त होने पर सब घर चले गये ।
सूर्ये अस्तं गते सर्वे गृहं गताः ।
उपपद विभक्तिः
उपपदविभक्तिः किम् ? (उपपद विभक्ति क्या है ?) पदम् आश्रित्य या विभक्तिः सा उपपदविभक्तिः । (पद के आश्रित जो विभक्ति होती है वह उपपद विभक्ति होती है।) जैसे-
(i) उभयतः परितः, सर्वतः, प्रति, निकषा, धिक् आदि पदों के योग में द्वितीया विभक्ति होती है।
(ii) सह, विना, अलम् के योग में तृतीया विभक्ति होती है।
(iii) नमः, स्वस्ति, स्वाहा के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है।
(iv) बहिः के योग में पञ्चमी विभक्ति होती है।
(v) उपरिः अधः, अन्तः के योग में षष्ठी विभक्ति होती है, जैसे-
1. उभयतः = दोनों तरफ – नदीम् उभयत: वृक्षाः सन्ति। (नदी में द्वितीया, उभयतः के योग में)
2. परितः = चारों तरफ – विद्यालयं परितः प्राचीरम् अस्ति।
(विद्यालय में द्वितीया परितः के योग में) |
3. सर्वतः = सभी तरफ- ग्रामं सर्वत: कृषिक्षेत्राणि सन्ति।
(ग्राम में द्वितीया, सर्वतः के योग में)।
4. प्रति = की ओर – छात्रः विद्यालयं प्रति गच्छति।
(विद्यालय में द्वितीया, प्रति के योग में)
5. निकषा = समीप में – विद्यालयं निकषा उद्यानम् अस्ति।
(विद्यालय में द्वितीया, निकषा के योग में)
6. धिक् = निन्दा – मूर्ख धिक् (मूर्ख में द्वितीया, धिक् । के योग में)
7. सह = सहित – बालिका बालकेन सह खेलति ।
(बालक में तृतीया सह के योग में)
8. विना = अतिरिक्त – ज्ञानेन विना जीवनं वृथा।
(ज्ञान में तृतीया, विना के योग में)
9. अलम् = वारण-विवादेन अलम् ।
(विवाद में तृतीया, अलम् के योग में)
10. नमः = नमस्कार- गुरुवे नमः।
(गुरु में चतुर्थी, नम: के योग में)
11. बहिः = बाहर – विद्यालयात् बहिः बालकाः खेलन्ति।
(विद्यालय में पञ्चमी, बहिः के योग में)
12. उपरिः = ऊपर – वृक्षस्य उपरिः मर्कटाः क्रीडन्ति ।
(वृक्ष में षष्ठी उपरि: के योग में ।)
13. अधः = नीचे – वृक्षस्य अधः पथिकः उपविशति ।
(वृक्ष में षष्ठी अधः के योग में)
14. अन्तः = भीतर – विद्यालय अन्तः छात्रा: पठन्ति । (विद्यालय में षष्ठी अन्तः के योग में)
अभ्यासः
रेखांकित पदेषु प्रयुक्त विभक्तिः करणं च लिखित-
प्रश्न 1.
(i) सः लगुडेन चलन्तं वृद्धम् अपश्यत् ।
(ii) अहम् एनं हंसम् अहनम् ।
उत्तर:
(i) करण में तृतीया वि.
(ii) कर्म में द्वितीया वि.
प्रश्न 2.
(i) अहं शरणार्थिनं कदापि व्याधाय न दास्यामि
(ii) सिद्धार्थः प्रासादात् वनं निरगच्छत् ।
उत्तर:
(i) सम्प्रदान में चतुर्थी वि.
(ii) अपादान में पंचमी वि.
प्रश्न 3.
(i) गंगा शान्तनोः भार्या आसीत् ।
(ii) स्वां रूपवतीं दुहितरं मह्यं यच्छ ।
उत्तर:
(i) संबंध में षष्ठी वि.
(ii) सम्प्रदान में चतुर्थी वि.
प्रश्न 4.
(i) अहं सदा ब्रह्मचर्यण स्थास्यामि ।
(ii) मम पित्रे स्वां दुहितरं यच्छ ।
उत्तर:
(i) करण में तृतीया वि.
(ii) सम्प्रदान में चतुर्थी वि.
प्रश्न 5.
(i) अहं सत्यवतीं तुभ्यं विवाहे दास्यामि ।
(ii) नृपतिना सह विवाहमकरोत् ।
उत्तर:
(i) सम्प्रदान में चतुर्थी वि.
(ii) ‘सह’ के योग में तृतीया वि.
प्रश्न 6.
(i) सर्वे भुम्या सह पुत्रवत् समाचरन्तु ।
(ii) प्रशासकाः गुप्तसंदेशाय कपोतानाम् उपयोगम् अकुर्वन्।
उत्तर:
(i) ‘सह’ के योग में तृतीया वि.
(ii) सम्प्रदान में चतुर्थी वि.
प्रश्न 7.
(i) जनाः विद्युत् तरंगैः संदेशं प्रेषयन्ति स्म ।
(ii) सांस्कृतिक-विकासे वनानां भूमिकास्ति ।
उत्तर:
(i) करण में तृतीया वि.
(ii) अधिकरण में सप्तमी वि.
प्रश्न 8.
(i) वनानां सम्बन्धोऽपि मानवेन सह विद्यते ।
(ii) सिंहः दुर्गायाः वाहनमस्ति ।
उत्तर:
(i) ‘सह’ के योग में तृतीया वि.
(ii) सम्बन्ध में षष्ठी वि.
प्रश्न 9.
(i) सर्वे पशुपक्षिणो देवताभिः सह सम्बद्धाः सन्ति ।
(ii) पुत्रस्य नेत्राभ्याम् अश्रुधारा प्रवहति स्म ।
उत्तर:
(i) ‘सह’ के योग में तृतीया वि.
(ii) अपादान में पंचमी वि.
प्रश्न 10.
(i) सः पितुः चरणयोः अपतत् ।
(ii) समाजे नार्याः महत्वपूर्ण स्थानं वर्तते ।
उत्तर:
(i) सम्बन्ध में षष्ठी वि.
(ii) अधिकरण में सप्तमी वि.।
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