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RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 3 ध्येयवाक्यानि

May 18, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 3 ध्येयवाक्यानि

RBSE Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 3 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 3 मौखिक प्रश्न:

प्रश्न 1.
अधोलिखितानां पदानाम् उच्चारणं कुरुत
स्पृशं
दीप्तम्
वहाम्यहम्
अहर्निशं
प्रवर्तनाय
समनसः
शुभास्ते
जलेष्वेव

उत्तरम:
[ नोट – उपर्युक्त शब्दों का शुद्ध उच्चारण अपने अध्यापकजी की सहायता से कीजिए।]

प्रश्न 2.
एकपदेन उत्तरत
(क) किं जयते?
उत्तरम्:
सत्यम्।

(ख) कस्मात् वृष्टिः जायते?
उत्तरम्:
आदित्यात्।

(ग) शं नो वरुणः कस्य ध्येयवाक्यम्?
उत्तरम्:
भारतीयजलसेनायाः।

(घ) सिद्धिः केन भवति?
उत्तरम्:
कर्मणा।

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 3 ध्येयवाक्यानि

(ङ) ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्’ कस्य ध्येयवाक्यम् अस्ति?
उत्तरम्:
राष्ट्रियदूरदर्शनस्य।

लिखितप्रश्नाः

प्रश्न 1.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदे लिखत
(क) सर्वस्य लोचनम् किम्?
उत्तरम्:
शास्त्रम्

(ख) “धर्मचक्रप्रवर्तनाय” कस्य विभागस्य ध्येयवाक्यम्
उत्तरम्:
लोकसभायाः

(ग) नो शं कः कुर्यात्?
उत्तरम्:
वरुणः

(घ) राष्ट्रियदूरदर्शनस्य ध्येयवाक्यं किम्?
उत्तरम्:
सत्यं शिवं सुन्दरम्

(ङ) आद्यं धर्मसाधनं किम्?
उत्तरम्:
शरीरम्

प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि एकवाक्ये लिखत

(क) वयं कुत्र जयामहे?
उत्तरम्:
वयं जलेषु जयामहे।

(ख) विद्यया किम् अश्नुते?
उत्तरम्;
विद्यया अमृतम् अश्नुते।

(ग) स्वर्गादपि का गरीयसी?
उत्तरम:
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।

(घ) किं वहाम्यहम्?
उत्तरम्:
योगक्षेमं वहाम्यहम्।

(ङ) कः स्पृशं दीप्तम्?
उत्तरम्;
नभः स्पृशं दीप्तम्।

प्रश्न 3.
रेखाङ्कितपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत

(क) यतो धर्मस्ततो जयः।
(ख) सर्वस्य लोचनं शास्त्रम् ।
(ग) जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ।
(घ) विद्यया अमृतम् अश्नुते।
(ङ) सिद्धिर्भवति कर्मजा
(च) सर्वस्य लोचनं शास्त्रम् ।
(छ) आदित्याद् जायते वृष्टिः।
उत्तरम्:
प्रश्ननिर्माणम्
(क) यतो धर्मस्ततो कः?
(ख) सर्वस्य लोचनं किम्?
(ग) का स्वर्गादपि गरीयसी?
(घ) विद्यया किम् अश्नुते?
(ङ) सिद्धिर्भवति केन?
(च) कस्य लोचनं शास्त्रम्?
(छ) कस्माद् जायते वृष्टि:?

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 3 ध्येयवाक्यानि

प्रश्न 4.
मञ्जूषातः पदानि चित्वा अधोलिखितानि रिक्तस्थानानि पूरयत

समनसः
संस्कृतिः
मा सद्
जयामहे
हिताय बहुजन
उत्तरम्:
(क) बहुजन हिताय बहुजन सुखाये।
(ख) कला संस्कृतिः रक्षणम्।
(ग) जलेष्वेव जयामहे।
(घ) असतो मा सद् गमय।
(ङ) उद्बुध्यध्वं समनसः सखायः।

प्रश्न 5.
सुमलन कुरुत
(क) धर्मचक्रप्रवर्तनाय – पेराडेनिया विश्वविद्यालयः,श्रीलङ्का
(ख) सत्यं शिवं सुन्दरम् – भारतीयमौसमविभागः
(ग) सर्वस्य लोचनं शास्त्रम्  – राजस्थानराज्यपथपरिवहननिगमः।
(घ) आदित्यात् जायते वृष्टिः – लोकसभा
(ङ) शुभास्ते पन्थानः सन्तु  – राष्ट्रियदूरदर्शनम्
उत्तरम्:
(क) धर्मचक्रप्रवर्तनाय – लोकसभा।
(ख) सत्यं शिवं सुन्दरम् – राष्ट्रियदूरदर्शनम् ।
(ग) सर्वस्य लोचनं शास्त्रम् – पेराडेनिया विश्वविद्यालय,श्रीलङ्का।
(घ) आदित्यात् जायते वृष्टि: – भारतीयमौसमविभागः।
(ङ) शुभास्ते पन्थानः सन्तु – राजस्थानराज्यपथपरिवहननिगमः।

प्रश्न 6.
अधोलिखितानां पदानां सन्धिविच्छेदं कुरुत
उत्तरम्:
(क) धर्मस्ततः    =    धर्मः + ततः।
(ख) वहाम्यहम्  = वहामि + अहम्।
(ग) सिद्धिर्भवति = सिद्धिः + भवति।
(घ) शुभास्ते       = शुभाः + ते।
(ङ) जलेष्वेव      = जलेषु + एव।

योग्यता-विस्तारः।
अन्येऽपि प्रसिद्धानि ध्येयवाक्यानि

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 3 ध्येयवाक्यानि

ध्येयवाक्यम् –विभागः

(क) अतिथि: देवो भव – भारतीयपर्यटनविभाग:
(ख) श्रम एव जयते – श्रमविभाग:
(ग) योगः कर्मसु कौशलम् – भारतीय औद्योगिकसंस्थानम्खड्गपुरम्
(घ)कर्मण्येवाधिकारस्ते मा – इण्डोनेशियन् वायुसेनाफलेषु कदाचन
(ङ) सा विद्या या विमुक्तये – विद्याभारती
(च) वीरभोग्या वसुन्धरा – भारतीयस्थलसेना(राजपूताना)
(छ) बुद्धिः सर्वत्र भ्राजते – कोलम्बो विश्वविद्यालयश्रीलङ्का
(ज) योगस्थः कुरु कर्माणि – कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय:हरियाणा
(झ) योऽनूचानः स नो महान् – राष्ट्रियसंस्कृतसंस्थानम्, नदेहली
(ज) धर्मो विश्वस्य जगतः – राजस्थानविश्वविद्यालय प्रतिष्ठाजयपुरम्
(ट) धर्मो रक्षति रक्षितः – अनुसन्धान एवं विश्लेषविभागः
(ठ) श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानम् – महर्षिदयानन्दसरस्वतीविश्वविद्यालय, अजयमे
(ड) मानक: पथप्रदर्शकः – भारतीयमानकविभागः
(ढ) कृण्वन्तो विश्वमार्यम् – आर्यसमाज:

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 3 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 3 वस्तुनिष्ठप्रश्नाः

(अ) ‘ध्येय वाक्यानि’ पाठे आगतं ध्येय वाक्यं पूरयत

1.सत्यं शिवं………..|
(क) जयते
(ख) योगक्षेमं
(ग) लोचनम्
(घ) सुन्दरम्

2.असतो मा……….|
(क) सखायः
(ख) सुखाय
(ग) जयते
(घ) सद्गमय

3.सत्यमेव………..।
(क) जयते
(ख) वर्तते
(ग) लभते
(घ) पराजयते

4.यतो धर्मस्ततो……….|
(क) अधर्मः
(ख) लाभः
(ग) जयः
(घ) पराजयः।

5.बहुजनहिताय बहुज…………|
(क) दु:खाय
(ख) सुखाय
(ग) लाभाय
(घ) कामाय।

6.आदित्यात् जायत…………।
(क) धनम्।
(ख) विद्या
(ग) सृष्टिः
(घ) वृष्टि।

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 3 ध्येयवाक्यानि

7……………”अमृतमश्नुते।
(क) विद्यया
(ख) शिक्षया
(ग) कर्मणा
(घ) धनेन।

8.सिद्धिर्भवति………..।
(क) धर्मजा
(ख) बलेन
(ग) कर्मजा
(घ) धनेन।

9.सर्वस्य लोचनं…………।
(क) शस्त्रम्
(ख) शास्त्रम्
(ग) अस्त्रम्
(घ) कर्णम्।

10.शुभास्ते पन्थांन…………।
(क) सन्तु
(ख) अस्तु
(ग) भवतु।
(घ) पश्यतु।

उत्तराणि

  1. (घ)
  2. (घ)
  3. (क)
  4. (ग)
  5. (ख)
  6. (घ)
  7. (क)
  8. (ग)
  9. (ख)
  10. (क)

(ब) मञ्जूषातः समुचितं पदं चित्वा रिक्त-स्थानानि पूरयत

मञ्जूषा

शास्त्रम्,
वयं,
पन्थानः,
दीप्तम्,

रक्षणम्।

  1. शुभास्ते ………..::सन्तु।
  2. कला-संस्कृतिः …………।
  3. सर्वस्य लोचनं………….|
  4. ………:–रक्षामः
  5. नभः स्पृशं…………..|

उत्तराणि

  1. पन्थानः,
  2. रक्षणम्,
  3. शास्त्रम्,
  4. वयं,
  5. दीप्तम्

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 3 ध्येयवाक्यानि

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 3 अतिलघूत्तरात्मकप्रश्नाः

एकपदेन उत्तरत

प्रश्न 1.
“धर्मचक्र प्रवर्तनाय” इति ध्येयवाक्यं कस्याः?
उत्तरम्:
लोकसभायाः

प्रश्न 2.
कत्र एवं जयामहे?
उत्तरम्:
जलेष।

प्रश्न 3.
यतो धर्मः ततः कः?
उत्तरम्:
जयः।

प्रश्न 4.
आदित्यात् किम् जायते?
उत्तरम्:
वृष्टिः।

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 3 लघूत्तरात्मकप्रश्नाः

पूर्णवाक्येन उत्तरत

प्रश्न 1.
आकाशवाण्याः किं ध्येयवाक्यम्?
उत्तरम्:
‘बहुजनहिताय बहुजनसुखाय’ इति।

प्रश्न 2.
राष्ट्रियदूरदर्शनस्य किं ध्येयवाक्यम्?
उत्तरम्:
सत्यं शिवं सुन्दरम्’ इति।

प्रश्न 3.
अहं किम् वहामि?
उत्तरम्:
अहं योगक्षेमं वहामि।

प्रश्न 4.
धर्मस्य प्रथमं साधनं किम्?
उत्तरम्:
धर्मस्य प्रथमं साधनं शरीरम्।

प्रश्न 5.
ते पन्थानः कीदृशाः सन्तु?
उत्तरम्:
ते पन्थानः शुभाः सन्तु।

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 3 ध्येयवाक्यानि

प्रश्न 6.
अधोलिखितसंस्थानां/विभागानां ध्येय लिखत

1. माध्यमिकशिक्षाबोर्डराजस्थानम्।
2. भारतीयपर्यटनविभागः।
3. विद्याभारती।
4. भारतीयस्थलसेना (राजपुताना)।
5. राज्यशैक्षिक अनुसन्धानम् एवं प्रशिक्षण
उत्तरम्:
1.सिद्धिर्भवति कर्मजा।
2.अथि: देवो भव।
3.सा विद्या या विमुक्तये।
4.वीरभोग्या वसुन्धरा।
5.उद्बुध्यध्वं समनसः सखायः।

प्रश्न 7.
रेखांकितपदानां स्थाने कोष्ठके लिखितान् पदान् चित्वा प्रश्ननिर्माणं कुरुत|

  1. योगः कर्मसु कौशलम् ।(कासु/केषु)
  2. बुद्धिः सर्वत्र भ्राजते । (का/क:)
  3.  धर्मो रक्षति रक्षितः। (किम्/को)
  4.  श्रद्धावान् लभते ज्ञानम्। (क/कान्)
  5. सर्वस्य लोचनं शास्त्रम्। (काम्/किम्)

उत्तरम्:
प्रश्न-निर्माणम्

  1. योग: केषु कौशलम्?
  2. का सर्वत्र भ्राजते?
  3. को रक्षति रक्षितः?
  4. कः लभते ज्ञानम्?
  5. सर्वस्य लोचनं किम्?

प्रश्न 8.
समानार्थकानि पदानि मेलयत

  1. शरीरम् – कल्याणम्
  2. सखायः – नीरम्
  3. जलम् – तनुः
  4. लोचनम् – मित्राणि
  5. शम्। – प्रथमम्।
  6. आद्यम् – नेत्रम्

उत्तरम:

  1. शरीरम् – तनुः।
  2. सखायः – मित्राणि।
  3. जलम् – नीरम्।
  4. लोचनम् – नेत्रम्।
  5. शम्। – कल्याणम्।
  6. आद्यम्। – प्रथमम्

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 3 ध्येयवाक्यानि

पाठ-परिचय-

[संस्कृत-साहित्य में अनेक सुभाषित और सूक्तियाँ हैं। उनमें से कुछ वाक्य-खण्डों को विभिन्न संस्थाओं ने अपने प्रतीक चिह्नों में ध्येय (लक्ष्य) वाक्य के रूप में स्वीकार किया है। न केवल भारत में अपितु विदेशों में भी अपने राष्ट्र के अथवा विभागों के प्रतीक चिह्न में संस्कृत के ध्येय वाक्य को स्वीकार किया गया हैं। इसी से संस्कृत का विश्वव्यापी महत्त्व स्वयं ही सिद्ध होता है। प्रस्तुत पाठ में भारत के विभिन्न विभागों, संस्थाओं के प्रतीक चिह्नों में तथा विदेशों के प्रतीक चिह्नों में स्वीकार किये गये संस्कृत के प्रमुख ध्येय वाक्यों का तथा जिसके द्वारा उसका प्रयोग किया गया है, उस संस्था के नाम के साथ वर्णन किया गया है।]

पाठ के कठिन-

शब्दार्थ-जयते (विजयं प्राप्नोति) = विजय प्राप्त करता है। यतो (यत्र) = जहाँ।योगक्षेमं (अप्राप्ते : प्राप्ति: योगः) = अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति योग (प्राप्ते: रक्षा क्षेम:) = प्राप्त वस्तु की रक्षा क्षेम है। आदित्यात् (सूर्यात्) = सूर्य से। दीप्तम् (प्रकाशितम्) = प्रकाशित। प्रवर्तनाय (क्रियाशीलाय) = लागू करने के लिए। उद्बुध्यध्वं (जागरय) = जागो, सचेत हो। समनसः (समानमनोयुक्ताः) = एक जैसे मन वाले। सखायः (मित्राणि) = मित्र। सन्तु (भवन्तु) = होवे। लोचनम् (नेत्रम्) = आँख। शं (कल्याण) = कल्याण को। नो (अस्माकं) = हमारी। गरीयसी (श्रेष्ठा) = श्रेष्ठ, बढ़कर। शरीरमाद्यम् (तनुः प्रथमम्) = शरीर ही पहला। जलेष्वेव (नीरेषु एव) = अपार जल राशि में भी।

पाठ के ध्येय-वाक्यों का संस्कृत एवं हिन्दी में भावार्थ

(1) सत्यमेव जयते (सत्य की ही विजय होती है।)
भारतसर्वकारः संस्कृत-भावार्थ:-सत्यस्य एव विजयः भवति। एतद् अस्माकं देशस्य मूलमन्त्रः अस्ति। सत्यात् परं किमपि नास्ति। सत्यम् एव शाश्वतम्। अत: सत्यमेव जयते।

हिन्दी-भावार्थ-सत्य की ही विजय होती है। यह हमारे देश का मूल मन्त्र है। सत्य से बड़ा कुछ भी नहीं है। सत्य ही शाश्वत है। इसलिए सत्य ही विजय को प्राप्त करता है। (यह ध्येय वाक्य भारत सरकार के अशोक चिह्न में स्वीकृत है।)

(2) यतो धर्मस्ततो जयः (जहाँ धर्म है, वहाँ विजय होती है।)

-सर्वोच्चन्यायालयः

संस्कृत-भावार्थ:–यत्र धर्म: तत्र विजयः भवति। अधर्मस्य सदा पराजयः एव भवति। यदि वयं धर्मपूर्वकम् अर्थात् न्यायपूर्वकम् कार्य करवाम, तर्हि अस्माकं विजय निश्चित: इति।

हिन्दी-भावार्थ-जहाँ धर्म है, वहाँ विजय होती है। अधर्म की हमेशा पराजय होती है। यदि हम धर्मपूर्वक अर्थात् न्यायपूर्वक कार्य करते हैं, तो हमारी विजय निश्चित है। (यह ध्येय वाक्य भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वीकृत है तथा उसके प्रतीक चिह्न में अंकित है।)

(3) सत्यं शिवं सुन्दरम् (ईश्वर सत्य-स्वरूप, कल्याणकारी और सुन्दर है।)

-राष्ट्रियदूरदर्शनम्

संस्कृत-भावार्थ:-सः परमात्मा सत्यस्वरूपः अस्ति, स एव विश्वस्य कल्याणं करोति। अतः सः परमदयालुः अस्ति। स एव सुन्दरः अस्ति। तस्मात् सुन्दरः अस्मिन् ब्रह्माण्डे कोऽपि नास्ति। अतः सत्यं शिवं सुन्दरम् प्रस्तौति अस्माकं दूरदर्शनम्।

हिन्दी-भावार्थ-वह परमात्मा सत्य-स्वरूप है, वही संसार का कल्याण करता है। अत: वह परम दयालु है। वही सुन्दर है। उससे अधिक सुन्दर इस ब्रह्माण्ड में कोई भी नहीं है। इसलिए हमारा दूरदर्शन सत्य, शिव (कल्याण) और सुन्दर को प्रस्तुत करता है। (यह ध्येय वाक्य हमारे राष्ट्रीय दूरदर्शन द्वारा स्वीकृत है तथा उसके प्रतीक चिह्न में अंकित है।)

(4) बहुजनहिताय बहुजनसुखाय (हमारा जीवन बहुत से लोगों के हित और सुख के लिए है।)

-आकाशवाणी

संस्कृत-भावार्थ:-बहुजनानां हिताय अर्थात् अस्माकं जीवनं सम्पूर्णसमाजस्य हिताय सुखाय च भवेत्, वयं तस्य सुखस्य कृते सर्वदा प्रयत्नं कुर्मः इति भावः।

हिन्दी-भावार्थ-बहुत से लोगों के हित के लिए अर्थात् हमारा जीवन सम्पूर्ण समाज के हित के लिए और सुख के लिए होना चाहिए। हम सभी के कल्याण और सुख के लिए हमेशा प्रयत्न करते रहें। (यह ध्येय वाक्य भारत के आकाशवाणी (रेडियो) विभाग द्वारा स्वीकृत है और उसके प्रतीक चिह्न में अंकित है।)

(5) धर्मचक्र प्रवर्तनाय (राजा प्रजा का धर्मपूर्वक पालन करे।)

-लोकसभा

संस्कृत-भावार्थ:-शासकस्य दायित्वं भवति यत् सर्वान् मानवान् धर्मपूर्वकं पालयेत्। धर्मस्य अर्थः कर्तव्यम्। शासक; स्वयं कर्तव्यपालनं कुर्वन् स्वप्रजाम् अपि कर्तव्यपालने योजयेत्। तदर्थं धर्मचक्रप्रवर्तनाय अस्माकं लोकसभा।

हिन्दी भावार्थ-शासक का दायित्व होता है कि वह सभी मनुष्यों का धर्मपूर्वक पालन करे। धर्म का अर्थ कर्तव्य है। शासक स्वयं अपने कर्तव्य का पालन करता हुआ अपनी प्रजा को भी कर्तव्य पालन में लगाये। उसी के लिए अर्थात् धर्म-चक्र पर प्रेरित करने के लिए हमारी लोकसभा है। (यह ध्येय वाक्ये भारत की लोकसभा द्वारा स्वीकृत है।)।

(6) योगक्षेमं वहाम्यहम् (हम अप्राप्त की प्राप्ति तथा प्राप्त की रक्षा करें।)

-भारतीयजीवनबीमानिगमः

संस्कृत-भावार्थ:-योगः अर्थात् अप्राप्तवस्तुनः प्राप्तिः। क्षेमः अर्थात् प्राप्तवस्तुनः संरक्षणम्। इत्थम् अप्राप्तवस्तूनि वयं प्राप्नुयाम् प्राप्तवस्तूनि च रक्षेम।

हिन्दी-भावार्थ-योग अर्थात् अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति होना। क्षेम अर्थात् प्राप्त वस्तु की रक्षा करना। इस प्रकार अप्राप्त वस्तुओं को हम प्राप्त करें तथा प्राप्त वस्तुओं की रक्षा करें। (यह ध्येय वाक्य भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा स्वीकृत है एवं उसके प्रतीक-चिह्न में अंकित है।)

(7) आदित्यात् जायते वृष्टिः (सूर्य से वर्षा होती है।)

-भारतीयमौसमविभागः

संस्कृत-भावार्थ: यदा सूर्य : तपति तदा समुद्रेषु अवस्थितं जलं वाष्परूपेण गगने गच्छति। तेनैव मेघानां निर्माण भवति। मेघा: जलं वर्षन्ति। अतः एवोच्यते आदित्यात् जायते वृष्टि:।

हिन्दी भावार्थ-जब सूर्य तपता है तब समुद्रों में स्थित जल वाष्प के रूप में आकाश में जाता है। उसी से। बादलों का निर्माण होता है। बादल जल की वर्षा करते हैं। इसीलिए कहा जाता है—सूर्य से वर्षा होती है। (यह ध्येय वाक्य भारतीय मौसम विभाग द्वारा स्वीकृत है एवं उसके प्रतीक-चिह्न में अंकित है।)

(8) नभः स्पृशं दीप्तम् (प्रकाशित आकाश का स्पर्श करना।)

-भारतीयवायुसेना

संस्कृत-भावार्थ:-प्रकाशितस्य आकाशस्य स्पर्शनम्। अर्थात् अस्माकं गतिः न केवलं भूमण्डले अपितु। गगनमण्डलेऽपि निर्वाधरूपेण भवेत्। वयं नभसि अवस्थितान् शत्रून् हत्वा जयामहे।

हिन्दी-भावार्थ-प्रकाशित आकाश का स्पर्श करना (ना)। अर्थात् हमारी गति न केवल भूमण्डल पर ही अपितु आकाश-मण्डल में भी बाधारहित रूप से होनी चाहिए। हम आकाश में स्थित शत्रुओं को नष्ट करके विजय प्राप्त करें। (यह ध्येय-वाक्य भारतीय वायुसेना का है तथा उसके प्रतीक चिह्न में अंकित है।)

(9) शन्नो वरुणः (वरुण-देवता हमारा कल्याण करें।)

-भारतीयजलसेना

संस्कृत-भावार्थ:-जलाधिपति: वरुणः अस्माकं कल्याणं विदधातु। समुद्रसन्तरणे का अपि बाधा न आगच्छेत्। तत्रापि अस्माकं मङ्गलं भवेत्।

हिन्दी-भावार्थ-जल के देवता वरुण हमारा कल्याण करे। समुद्र को तैरने में कोई भी बाधा नहीं आवे। वहाँ भी हमारा मंगलमय होवे। (यह ध्येय-वाक्य भारतीय जल-सेना द्वारा स्वीकृत है एवं उसके प्रतीक चिह्न में अंकित है।)

(10) शरीरमाद्यं खलुधर्मसाधनम् (शरीर ही धर्म का पहला साधन है।)

-अखिलभारतीय आयुर्विज्ञानसंस्थानम्

संस्कृत-भावार्थः-धर्मसाधनस्य प्रथम सोपानम् अस्ति अस्माकं शरीरम्। कार्य विना वयं किम् अपि साधयितुं समर्था; न भवामः। अतः यत्नेन शरीरस्य संरक्षणं करणीयम्।

हिन्दी- भावार्थ-धर्म के साधन का प्रथम सोपान (सीढ़ी) हमारा शरीर है। शरीर के बिना हम कुछ भी सिद्ध नहीं कर सकते हैं। इसलिए प्रयत्नपूर्वक सर्वप्रथम अपने शरीर की सुरक्षा करनी चाहिए। [यह ध्येय वाक्य अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) द्वारा स्वीकृत है एवं उसके प्रतीक चिह्न में अंकित है।]

(11) असतो मा सद्गमय (ईश्वर मुझे असत्य से सत्य की ओर ले जावे।)

-केन्दीयमाध्यमिकशिक्षाबोर्ड

संस्कृत-भावार्थ:-ईश्वरं निवेदयामि यत् सः माम् असत्यात् सत्यं प्रति नयेत्। अर्थात् वयं कदापि सन्मार्ग विहाय अन्यत्र न विचरेम।

हिन्दी-भावार्थ-मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि वह मुझे असत्य से सत्य की ओर ले जावे। अर्थात् हम कभी भी सन्मार्ग को छोड़कर दूसरी जगह (कुमार्ग पर) नहीं भटकें। [यह ध्येय वाक्य केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) द्वारा स्वीकृत है एवं उसके प्रतीक चिह्न में अंकित है।]

(12) विद्ययाऽमृतमश्नुते (विद्या से अमरता की प्राप्ति होती है।)

-राष्ट्रियशैक्षिक अनुसन्धानम् एवं प्रशिक्षण परिषद् (NCERT)

संस्कृत-भावार्थ:-विद्यया अर्थात् ज्ञानेन अमरतायाः प्राप्तिः भवति। शरीरे विनष्टे सति यश: शाश्वत् भवति। विद्यया मानव; यशः प्राप्नोति। अत एव उच्यते विद्ययाऽमृतमश्नुते।

हिन्दी भावार्थ-विद्या अर्थात् ज्ञान से अमरता की प्राप्ति होती है। शरीर के नष्ट हो जाने पर भी यश हमेशा रहता है। विद्या से मनुष्य यश प्राप्त करता है। इसलिए कहा गया है–विद्या से अमृत प्राप्त होता है। [यह ध्येयवाक्य राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद् (NCERT) द्वारा स्वीकृत है और उसके प्रतीक चिह्न में अंकित है।]

(13) उद्बुध्यध्वं समनसः सखायः

-राज्यशैक्षिक अनुसन्धानम् एवं (समान मन वाले हे मित्रों! आप जागरूक हो जाओ।) प्रशिक्षणसंस्थानम् (SIERT)

संस्कृत-भावार्थ:-समानमनस: हे मित्राणि ! भवन्तः जागरुकाः भवन्तु। अर्थात् सज्जनशक्ति: एकीभूय जागृयात्।

हिन्दी-भावार्थ-समान मन वाले हे मित्रों ! आप लोग जागरूक हो जाओ। अर्थात् सज्जन शक्ति एकत्रित होकर जागृत हो जाये। [यह ध्येय वाक्य राज्य शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण संस्थान (SIERT) द्वारा स्वीकृत है एवं उसके प्रतीक चिह्न में अंकित हैं।]

(14) सिद्धिर्भवतिकर्मजा (कर्म से ही सफलता प्राप्त होती है।)

-माध्यमिकशिक्षाबोर्डराजस्थानम्।

संस्कृत-भावार्थ:-कर्मणा एवं कार्यसिद्धिः भवति। अत: वयं सर्वदा स्वकार्ये प्रवृत्ताः भवेम।

हिन्दी-भावार्थ-कर्म से ही कार्य में सफलता प्राप्त होती है। इसलिए हमें हमेशा अपने-अपने कार्य में प्रवृत्त हो जाना चाहिए। (यह ध्येय-वाक्य माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान द्वारा स्वीकृत है तथा इसके प्रतीक चिह्न में अंकित

(15) शुभास्ते पन्थानः सन्तु (आपका मार्ग कल्याणकारी होवे।)

-राजस्थानराज्यपथपरिवहननिगमः

संस्कृत-भावार्थ:-भवन्त: पथ: मङ्गलमय: भूयात्। मार्गे का अपि बाधा न आगच्छेत्।

हिन्दी-भावार्थ-आपका मार्ग सुखप्रद एवं कल्याणकारी होवे। मार्ग में कोई भी बाधा नहीं आवे। (यह ध्येय वाक्य राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम द्वारा स्वीकृत है एवं इसके प्रतीक चिह्न में अंकित है।)

(16) कला संस्कृतिः रक्षणम्।

-सिङ्गापुर इण्डियन फाईन आर्ट्स (कला और संस्कृति की रक्षा करनी चाहिए।)

सोसाइटी (सिङ्गापुरम्) संस्कृत-भावार्थ:-कला संस्कृतिश्च रक्षणीया भवति। कला संस्कृतिश्च कस्यापि राष्ट्रस्य मूलाधारा भवति। अतः एते रक्षणीये।

हिन्दी-भावार्थ-कला और संस्कृति की रक्षा करनी चाहिए। कला और संस्कृति किसी भी राष्ट्र की मूल आधार होती है। इसलिए इन दोनों की रक्षा करनी चाहिए। [यह ध्येय वाक्य ‘सिङ्गापुर इण्डियन फाईन आर्ट्स सोसाइटी’ (सिङ्गापुर) द्वारा स्वीकृत है तथा इसके प्रतीक चिह्न में अंकित है।]”

(17) जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

-नेपालदेशः। (माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।) (राष्ट्रिय आदर्शवाक्यम्)

संस्कृत-भावार्थ:-माता मातृभूमिश्च स्वर्गाद् अपि महीयसी भवति। अतः अस्माभिः मातृसम्मान सेवनं च करणीयम्। सहैव मातृभूमेः रक्षणमपि करणीयम्।

हिन्दी-भावार्थ-माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर (श्रेष्ठ) होती है। इसलिए हमें माता का सम्मान और सेवा करनी चाहिए। साथ ही मातृभूमि की रक्षा भी करनी चाहिए। (यह ध्येय वाक्य नेपाल देश द्वारा अपने राष्ट्रीय आदर्श वाक्य के रूप में स्वीकृत है तथा इसके राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न में अंकित है।)।

(18) सर्वस्य लोचनं शास्त्रम् (शास्त्र सभी का नेत्र है।)

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 3 ध्येयवाक्यानि

-पेराडेनिया विश्वविद्यालयः, श्रीलङ्काः

संस्कृत-भावार्थ:-सामान्यनेत्राभ्याम् सर्वे केवलं प्रत्यक्षं पदार्थम् एव पश्यन्ति। किन्तु परोक्षं पदार्थ सामान्यनेत्राभ्यां कोऽपि द्रष्टुं न शक्नोति। तत्र शास्त्रद्वारा मानव: उचितानुचितं स्वविवेकेन सर्व द्रष्टुं समर्थः भवति। अत: एवोक्तं सर्वस्य लोचनं शास्त्रम्।

हिन्दी-भावार्थ-सामान्य नेत्रों से तो सभी केवल प्रत्यक्ष पदार्थ को ही देखते हैं, किन्तु परोक्ष पदार्थ को सामान्य नेत्रों से कोई भी नहीं देख सकता है। वहाँ शास्त्र द्वारा मनुष्य उचित और अनुचित को अपने विवेक से सब कुछ देखने में समर्थ होता हैं। इसलिए कहा गया हैं—सभी का नेत्र शास्त्र है। (यह ध्येय-वाक्य पेराडेनिया विश्वविद्यालय, श्रीलंका द्वारा स्वीकृत है एवं इसके प्रतीक चिह्न में अंकित है।)

(19) जलेष्वेव जयामहे (जल में हमारी विजय होवे।)

-इण्डोनेशियन् जलसेना

संस्कृत-भावार्थ:- जलेषु अस्माकं विजयः भवेत्। केवलं नभसि स्थले न अपितु महासागरे अपि वयं अस्माकं शत्रुन् हत्वा विजयं प्राप्नुमः।

हिन्दी-भावार्थ-जल में हमारी विजय होनी चाहिए। केवल आकाश एवं भूमि पर ही नहीं, अपितु महासागर में भी हम हमारे शत्रुओं को मारकर विजय प्राप्त करें। (यह ध्येय-वाक्य इण्डोनेशियन जल-सेना द्वारा स्वीकृत है एवं इसके प्रतीक चिह्न में अंकित है।)

(20) वयं रक्षामः (हम सब रक्षा करें।)

-भारतीय तटरक्षकः

संस्कृत-भावार्थ:- अत्र रक्षायाः भाव: उद्घोषितः। वयं सर्वे मिलित्वा देशस्य रक्षणकार्य करवामः।

हिन्दी-भावार्थ- यहाँ रक्षा का भाव दर्शाया गया है। हम सब मिलकर देश की रक्षा को कार्य करें। (यह ध्येय-वाक्य भारतीय तट रक्षक सेना द्वारा स्वीकृत है एवं इसके प्रतीक चिह्न में अंकित है।)

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