Rajasthan Board RBSE Class 10 English Literature Reader Golden Rays Prose Chapter 10 The Tribute Notes, Summary, Word Meanings, Hindi Translation and Passages for comprehension.
The Tribute RBSE Class 10 English Notes
The Tribute Theme Of The Lesson
The story, The Tribute’ knits the saga of a joint family. This is the story of an Indian family which is well united with the bond of love and affection. The deep sense of family attachment rules over the life of family members. But this family is helpless before the modern onslaughts of urban greed for money and dryness of relations. At the same time it shows how the joint family system in India is crumbling fast. Babuli who is the main character in the story, finds himself emotionally shocked when he hears about dispute in his family. He is bound to participate in the division proceedings as the consequent partition is unavoidable. However, he tries to show his respect and affection towards his elder brother by giving his share to him as a tribute for what he had done for him.
The Tribute Short Summary
The Letter from home: In the office Babuli received the letter from home. His elder brother had written this letter and described the feud. The two sisters – in – law had quarrelled and his entire property – his cottage, household articles and all the movable and immovables were to be divided into three equal parts. His brother had said that his presence was indispensable.
His wife’s reaction: When Babuli discussed the matter with his wife, she was unperturbed. She simply wanted to know when the division would take place as it was not a big matter for her. She also wanted to know how much she would get after selling her husband’s share. Babuli had told her that it would fetch her around twenty – thousand rupees.
Babuli’s journey to the village: Babuli caught the same rickety bus which he had used previously when he was student. He got down at the bus stop at five in the evening. His elder brother was present at the bus stop to receive him.
Babuli’s arrival at home: Babuli arrived at home when it was dark. Nobody came forward to receive him. Even his nephews and sister – in – law did not take his care. His second brother and his wife were seen nowhere. Only his mother came forward to receive him. Obviously he found utter silence in the house. That day he passed a sleepless night.
Division proceedings: In the morning seven or eight people gather at the courtyard to supervise the proceedings of division. The entire household articles were placed in the middle of the courtyard which became a heap. Nothing was leftover. Babuli’s mother was not present in court. At last his elder brother unfastened his wristwatch and placed it on the heap. But he maintained the same calmness and peace of mind throughout the participation proceedings. He never showed any touch of either anger or distrust. Finally the entire property and household articles were divided into three parts.
Babuli’s second brother: His second brother was the main cause of participation He wanted it at any cost; participation was not a serious matter for him. He also had desire to purchase Babuli’s share of land and was ready to pay him eighteen thousand rupees.
Babuli’s visit to the paddy fields: Babuli visted the paddy fields with his elder brother. He found the marks of his brother’s feet and fingers everywhere. He also found the sweat of his elder brother was shining in the middle of the fields.
Babuli’s tribute: Babuli was to leave for Bhubaneshwar in the morning. He wrote a slip which described his share. He had written that his brother was everything for him. His brother was the land from which he could harvest anything. What he would do with the land. So he had requested his elder brother to accept his share. Finally he handed over the letter to the sisterin – law and unknowingly left the house for Bhubaneshwar. Obviously, Babuli’s act is an excellent exa of tribute.
The Tribute पाठ का सार
कहानी ‘tribute’ सिकुड़ते संयुक्त परिवार का आख्यान है। यह कहानी एक भारतीय परिवार की है जो कि प्यार तथा स्नेह के बंधन में बड़े ही मजबूती के साथ बँधा है। परिवार के सदस्यों के जीवन में पारिवारिक जुड़ाव का बोध बड़े ही गहरे रूप में जुड़ा है। किंतु पैसे के लिए तथा रिश्तों में सूखापन के कारण नगरीय धनलिप्सा के लिए आधुनिक युग में हो रही महामारी के सामने यह परिवार असहाय है। दूसरी तरफ यह कहानी यह भी प्रदर्शित करती है कि किस प्रकार से तेजी से भारत में संयुक्त परिवार पद्धति बिखर रही है। कहानी के प्रमुख पात्र बबुली को अपने परिवार में विवाद का समाचार सुनकर भावनात्मक रूप से बड़ा ही आघात लगता है। वह घर में बँटवारे की प्रक्रिया में भाग लेने को बाध्य हो जाता है क्योंकि विभाजन को टाला नहीं जा सकता। तथापि वह अपने बड़े भाई को अपना हिस्सा प्रदान कर उनके द्वारा उसके लिए किए गए उपकारों के प्रति सम्मान एवं स्नेह का प्रदर्शन करता है।
संक्षिप्त सारांश
घर से पत्र : कार्यालय में बबुली ने घर से आया पत्र प्राप्त किया। उसके बड़े भाई ने यह पत्र लिखा था तथा पुश्तैनी झगड़ों के बारे में वर्णन किया था। दोनों भाभियों ने झगड़ा किया था तथा उनकी पूरी संपत्ति – मकान, घर की चीजें तथा चल – अचल संपत्ति को तीन भागों में विभाजित किया जाना था। उसके भाई ने कहा था कि उसकी उपस्थिति अनिवार्य है।
उसकी पत्नी की प्रतिक्रिया: जब बबुली ने इस विषय पर अपनी पत्नी से विचार – विमर्श किया तो वह ज़रा भी विचलित नहीं हुई। वह केवल यह जानना चाहती थी कि बँटवारा कब होगा – – क्योंकि यह उसके लिए कोई बड़ा मसला नहीं था। वह यह भी जानना चाहती थी कि उसके पति के हिस्से को बेचने के बाद उसे कितना मिलेगा। बबुली ने कहा कि इसे बेचने से उसे लगभग बीस हजार रुपये मिलेंगे।
बबुली की गाँव की यात्रा : बबुली ने उसकी बस को पकड़ा, जिससे वह पूर्व में जाया करता था, जब वह छात्र था। वह पाँच बजे शाम को बस स्टैंड पर उतरा। उसे लेने के लिए उसके बड़े भाई बस स्टैंड पर आए थे।
बबुली का घर आगमनः बबुली जब घर पहुंचा तो अँधेरा हो गया था। कोई भी उससे मिलने नहीं आया। जहाँ तक कि उसकी भाभियों तथा भतीजों ने भी उसकी परवाह नहीं की। उसका दूसरा भाई तथा उसकी पत्नी कहीं दिखलाई नहीं पड़ रहे थे। केवल उसकी माँ उनसे मिलने आई। स्पष्ट रूप से उसने घर में पूरी निस्तब्धता का माहौल पाया। उस दिन उसे रात भर नींद नहीं आई।
बँटवारे की कार्यवाही : प्रात:काल में उसके घर के प्रांगण में सात या आठ लोग बँटवारे की कार्यवाही को देखने के लिए मौजूद थे। पूरे घर के सामान को प्रांगण में ढेर की तरह रख दिया गया। घर कुछ भी नहीं छूटा था। बबुली की माँ कचहरी में उपस्थित नहीं थी। आखिर में, उसके बड़े भाई ने अपने हाथ की घड़ी उतार कर ढेर पर रखी दी और पूरी कार्यवाही के दौरान शांति बनाए रखी। उसने किसी भी तरीके से गुस्सा और अविश्वास नहीं दिखाया। आखिर में सारी जमीन और घर का सामान तीन भागों में बँट गया। उसने कभी भी किसी प्रकार के गुस्से या शंका का प्रदर्शन नहीं किया। अंत में सारी संपत्ति तथा घर के सामानों को तीन भागों में विभाजित कर दिया गया।
बबुली का दूसरा भाई : उसका दूसरा भाई ही बँटवारे का प्रमुख कारण था। वह किसी भी कीमत पर बँटवारा चाहता था तथा बँटवारा उसके लिए कोई गंभीर विषय नहीं था। वह बबुली के हिस्से की जमीन को भी खरीदना चाहता था तथा इसके लिए अठारह हजार रुपये देने को तैयार था।
धान के खेत पर बबुली का जाना : बबुली अपने बड़े भाई के साथ धान के खेत पर गया। उसने वहाँ अपने भाई के पाँवों तथा अंगुलियों के निशानों को हर जगह महसूस किया। उसने यह भी महसूस किया कि धान के खेत के बीच उसके बड़े भाई के पसीने की चमक उत्पन्न हो रही है।
बबुली का योगदान : बबुली को सुबह में भुवनेश्वर जाना था। उसने एक पर्ची लिखी, जिसमें उसके हिस्से के बारे में वर्णन था। उसने लिखा कि उसके भाई ही उसके लिए सब कुछ हैं। उसके भाई ही वह भूमि हैं, जिस पर वह सब कुछ उपजा सकता है। जमीन लेकर वह क्या करेगा। इसलिए उसने अपने बड़े भाई से अनुरोध किया कि वे उसके हिस्से को स्वीकार करें। अंत में उसने अपनी भाभी को पत्र दिया तथा भुवनेश्वर के लिए प्रस्थान कर गया। स्पष्ट रूप से बबुली का यह कृत्य योगदान का एक श्रेष्ठ उदाहरण है।
The Tribute Main Points Of The Story
- Babuli received the letter from his elder brother in the office.
कार्यालय में बबुली ने अपने बड़े भाई का पत्र प्राप्त किया। - The letter described family feud and consequent division.
पत्र में पुश्तैनी संपत्ति के लिए झगड़े तथा परिणामस्वरूप बँटवारे का जिक्र था। - Babuli discussed the matter with his wife.
बबुली के इस विषय पर अपनी पत्नी से बात की। - Babuli arrived at the village. His elder brother met him at the bus – stand.
बबुली अपने गाँव गया। उसके बड़े भाई उससे बस स्टैंड पर मिले। - Except his mother, no one came forward to receive him in the hose.
उसकी माँ को छोड़कर, कोई भी घर में उससे मिलने नहीं आया। - A unusual stillness had covered the house; everybody was silent.
एक असामान्य शांति पूरे घर में व्याप्त थी। हर कोई खामोश था। - His second brother wanted division at any cost. Division was destined in the fate of the family.
उसका दूसरा भाई किसी भी कीमत पर बँटवारा चाहता था। बँटवारा परिवार की नियति बन गया। - The entire property from the household articles to landed property was divided into three parts.
घर के सामानों से लेकर चल – अचल पूरी संपत्ति को तीन भाग में बाँट दिया गया। - Babuli’s elder brother showed him his share of fields. He found imprints of his brother in the fields everywhere.
बबुली के बड़े भाई ने उसे उसके हिस्से की जमीन दिखलाई। उसे खेत के चारों तरफ अपने भाई की छाप नजर आई। - Babuli wrote the details of his share on a slip of paper and handed over it to sister – in – law. He had requested his brother to accept his share because he was the greatest land for him. In the morning he went back to Bhubaneshwar where he was in a job.
बबुली ने अपने हिस्से के बारे में एक पर्ची पर विस्तार से लिखा तथा उसे अपनी भाभी को सौंप दिया। उसने अपने बड़े भाई से अनुरोध किया कि वे उसके हिस्से को ग्रहण करें क्योंकि वे ही उसके लिए सबसे बड़ा खेत हैं। दूसरे दिन वह भुवनेश्वर लौट गया, जहाँ वह काम करता था।
The Tribute Passages For Comprehension With Hindi Translation
Passage – 1: (Page 118)
As I reached my desk in the office, my eyes stopped over a letter.
It contained that familiar petite handwriting of my elder brother.
After a very long time he had written to me.
I shrank within for not writing letters home, all these days.
In my student days, it was almost s routine affair.
I used to go home to that distant village on a rickety bus, caring nothing for the strain of the journey.
My home – my village – they used to pull me away from the moribund city life.
Now things have changed and I too have changed, a great deal at that!
A lot of cobwebs have settled around me.
I am swept by that invisible tide of time, and business.
I was studying at Bhubaneshwar, where I got my job and now for these two years,
I have thought of home not even once.
Many a time my mother has written letters complaining about my negligence in writing to her.
She has even reminded me of those premarriage days of mine.
जब मैं अपने कार्यालय की मेज के पास पहुँचा तो मेरी आँखें एक पत्र पर टिक गईं।
इस पर मेरे बड़े भाई की सुपरिचित लिखावट झलक रही थी।
काफी समय के बाद उन्होंने मुझे पत्र लिखा था।
मेरा इन दिनों काफी दिनों से घर पत्र लिखना कम हो गया था।
छात्र जीवन में यह मेरे लिए एक तरह का नित्य – क्रम था।
मैं अपने घर इतनी दूरी पर स्थित अपने गाँव जर्जर बस पर सवार होकर, यात्रा की परेशानी की परवाह किए बिना जाता था।
मेरा घर, मेरा गाँव मुझे मरणासन्न शहरी जीवन से अपनी ओर खींचते थे।
अब तो परिस्थितियाँ भी बदल गई हैं और मैं भी बदल गया
मैं एक मकड़जाल से घिर गया हूँ।
मैं समय और व्यापार के अदृश्य प्रवाह में बह गया।
मैं भुवनेश्वर में पढ़ रहा था।
वहीं मुझे काम मिला।
तब से लेकर अब तक दो वर्षों तक मुझे एक बार भी अपने घर के बारे में सोचने का मौका नहीं मिला।
कई बार मेरी माँ ने मुझे पत्र लिखकर यह शिकायत की कि मैं पत्र लिखने में लापरवाही कर रहा हूँ।
वह मुझे शादी के पहले के दिनों की भी याद दिलाती थीं।
Questions:
(a) What did the author find in the office?
(b) What was his routine work when he was a student?
(c) Where did he get the job?
(d) Write the word from the passage which means – influenced’.
Answers:
(a) The author found a letter from his home in the office.
(b) When he was a student, he often visited his home.
(c) He got his job in Bhubaneshwar.
(d) Swept.
Passage – 2: (Page 118)
Yet I have never been able to break those strands of complacency which have coiled around me.
I have kept quiet to prove that I am busy and preoccupied.
Now she does not complain.
Probably, she understands my position.
Usually, my elder brother does write to me.
He does not need anything from me.
He has never sought a token from me in lieu of his concern for me as an elder brother.
In those days when I was a student, the thing that he enquired about was my wellbeing.
During my stay at home, he would catch fish for me from the pond behind our house and would ask his wife to prepare a good dish.
When the catch was scanty, the dish would be prepared exclusively for me.
He would say to his wife:
“You must make the dish as delicious as possible using mustard paste for Babuli.”
Even now he is the same man with the same tone of love and compassion.
Nothing has changed him – his seven children, father, cattle, fields, household responsibilities.
He is the same – my elder brother.
मैं अब तक जटिलताओं के इस लट को जो मेरे इर्द – गिर्द लिपटी हैं, तोड़ नहीं पाया हूँ।
मैंने अपने – आप को इस प्रकार से रखा है, जैसे मैं बहुत ही व्यस्त हूँ।
अब वह कोई शिकायत नहीं करती। संभवत: वह मेरी स्थिति जानती है।
आमतौर पर मेरे बड़े भाई मुझे पत्र लिखते हैं।
वे मुझसे कुछ भी नहीं चाहते।
उन्होंने एक बड़े भाई के नाते अपनी चिंताओं के बदले में मुझसे कुछ भी नहीं लिया।
उन दिनों जब मैं छात्र था, जिन बातों के लिए उन्होंने मुझसे कुछ जानना चाहा तो मेरी भलाई ही की बातें थीं।
जब मैं घर में होता, तो वे मेरे घर के पिछवाड़े स्थिति तालाब से मछली पकड़कर लाते तथा अपनी पत्नी से मेरे लिए सुस्वादु भोजन बनाने को कहते।
यदि मछली कम होती तो व्यंजन विशेषकर मेरे लिए ही बनता।
वे अपनी पत्नी से कहते, “जहाँ तक संभव हो, सरसों के तेल से सुस्वादु भोजन बबुली के लिए बनाना।
आज भी उनमें वही प्यार एवं दयालुता की भावना झलकती सात बच्चों, पशु, खेत तथा घरेलू उत्तरदायित्वों के बावजूद उनमें कुछ भी परिवर्तन नहीं आया।
मेरे लिए अब भी वे मेरे बड़े भाई ही हैं।
Questions:
(a) Who is ‘l’ referred to in the above passage?
(b) Why does Babuli’s brother not write to him?
(c) What kind of person is his brother?
(d) Write the word from the passage which means – sympathy’.
Answers:
(a) l’ is referred to Babuli in the above passage.
(b) His brother does not write to him because he has no expectation from him. He is not selfish.
(C) His brother is still the same person. Nothing has changed him.
(d) Compassion.
Passage – 3: (Pages 118 & 119)
I handled the letter carefully.
He had asked me to come home.
Some feud had cropped up.
The two sisters – in – law had quarrelled.
Our paddy fields, the cottage and all the movables and immovable were to be divided into three parts amongst us.
My presence was indispensable.
It was my second brother who was so particular and adamant about the division.
He wanted it at any cost.
I finished reading the letter.
A cold sweat drenched me.
I felt helpless, orphaned.
A sort of despair haunted me for a long time.
Quite relentlessly,
I tried to drive them away, yawning helplessly in a chair.
In the evening when I told my wife about the partition that is to take place,
I found her totally unperturbed. She just asked me:
“When?” as if she was all prepared and waiting for this event to take place!
“In a week’s time,” I said.
उसने सावधानीपूर्वक पत्र को सँभालकर रखा।
उसने मुझे घर आने को कहा। कुछ पुश्तैनी झगड़े प्रारंभ हो गए।
दो भाभियों में झगड़ा हो गया।
हमारे धान के खेत, मकान तथा सभी चल – अचल संपत्ति को हमारे बीच तीन भागों में विभाजित किया जाना था।
मेरी उपस्थिति अनिवार्य थी।
मेरा दूसरा भाई ही था जो बँटवारे को लेकर दृढ़ तथा सख्त था।
वह किसी भी कीमत पर बँटवारा चाहता था।
मैंने पत्र पढ़ना बंद कर दिया। ठंडे पसीने से मैं तरबतर हो गया।
मैं अपने – आप को असहाय, अनाथ – सा महसूस करने लगा।
एक तरह की निराशा मुझे बहुत समय तक डरा रही थी।
मैंने इस विषाद को अपने से दूर भगाना चाहा।
अवश होकर कुर्सी पर जम्हाई लेने लगा।
शाम को जब मैंने अपनी पत्नी से घर में होने वाले विभाजन के बारे में बताया तो वह जरा भी विचलित नहीं हुई।
उसने केवल इतना कहा, “कब?” जैसे वह इस घटना के होने का इंतजार कर रही थी।
“एक सप्ताह में,” मैंने कहा।
Questions:
(a) Why was Babuli’s presence indispensable in the village?
(b) Who desired partition?
(c) Who was waiting for partition?
(d) Write the word from the passage which means opposite of ‘hopefulness’.
Answers:
(a) Babuli’s entire property was to be divided among the three brothers.
(b) His second brother desired partition.
(c) Babuli’s wife was waiting for partition.
(d) Despair.
Passage – 4: (Page 119)
In bed that night my wife asked me all sorts of questions.
What would be our share and how much would it fetch us on selling it?
I said nothing for a while but in order to satisfy her, at last guessed that it should be around twenty thousand rupees.
She came closer to me and said,
“We don’t need any land in the village. What shall we do with it?
Let’s sell it and take the money.
Remember, when you sell it, hand over to me the entire twenty thousand.
I will make proper use of it.
We need a fridge, you know.
Summer is approaching.
You need not go to the office riding a bicycle.
You must have a scooter.
And the rest we will put in a bank.
There is no use keeping land in the village.
We can’t look after it, and why should others draw benefits out of our land?
रात में बिस्तर पर मेरी पत्नी ने मुझसे कई प्रकार से प्रश्न पूछे।
हमारा हिस्सा क्या होगा तथा इसे बेचकर हमें कितना प्राप्त होगा।
प्रारंभ में मैंने उसे कुछ नहीं कहा, किंतु अंत में उसे संतुष्ट कहने के लिए बताया कि यह अनुमानतः बीस हजार रुपये होगा।
वह मेरे नजदीक आई तथा कहा, हमें गाँव में ज़मीन की कोई अवश्यकता नहीं है।
हम इसका क्या करेंगे? इसे बेचकर पैसे ले लीजिए।
याद रखिए, इसे बेचकर पूरे बीस हजार रुपये मुझे ही दीजिएगा।
मैं इसका समुचित उपयोग करूँगी।
आपको पता है कि हमें एक फ्रिज की जरूरत है।
गरमी आ रही है।
अब आपको साइकिल से ऑफिस जाने की जरूरत नहीं है।
हमारे पास एक स्कूटर होना चाहिए।
बाकी पैसे हम बैंक में रख देंगे।
गाँव पर जमीन रखने का कोई मतलब नहीं है।
हम उसकी देखभाल नहीं कर सकते तथा हमारी जमीन से दूसरे लाभ क्यों कमाएँ?
Questions:
(a) What amount did Babuli guess about his share?
(b) Why did his wife need money?
(c) Why was his wife not in favour of keeping land in the village?
(d) Give the verb form of ‘riding’.
Answers:
(a) He guessed around twenty thousand rupees about his share.
(b) She wanted to buy a fridge. She also had desire to buy a scooter for her husband.
(c) She had no use of keeping land in the village. She could not allow others to get benefit out of her land.
(d) Ride.
Passage – 5: (Pages 119 & 120)
I listened to all this like an innocent lamb looking into the darkness.
I felt as if the butcher is sharpening his knife, humming a tune and waiting to tear me into large chunks of meat and consoling me saying that there is a better life after death.
Gone are those days; gone are those feelings when the word ‘Home’ filled my heart with emotion.
And that affectionate word ‘Brother’ what feeling it had!
How it used to make my heart pound with love!
Recollecting all these things,
I felt weak, pathetic. Where is the heart gone?
Where are those days? Where is that spontaneity of feeling gone?
I just can’t understand how a stranger could all of a sudden become so intimate, only sharing a little warmth by giving a silent promise of keeping close.
मैं एक निर्दोष मेमने की तरह अँधेरे को निहारते हुए सभी बातें सुन रहा था।
मुझे ऐसा लगा, जैसे कोई कसाई अपने चाकू को धार दे रहा है।
कोई धुन गुनगुनाते हुए वह मुझे चीरकर मेरे मांस के बड़े – बड़े टुकड़े करने की प्रतीक्षा यह कहते हुए कर रहा है कि मृत्यु के बाद भी एक बेहतर जीवन है।
वो दिन और वो भावनाएँ चली गईं जब ‘घर’ शब्द के नाम से ही मेरा हृदय भर जाता था।
और ‘भाई’ नामक अपनत्व से भरे शब्द में कैसा भाव छिपा होता था।
किस प्रकार से इस शब्द से मेरा हृदय प्यार से धड़कने लगता है।
इन बातों को याद करते हुए मैं कमजोर, कारुणिक अनुभव करने लगता हूँ।
वह हृदय कहाँ चला गया।
वे दिन कहाँ चले गए। भावनाओं की यह सहज वृत्ति कहाँ चली गई?
मैं केवल यह नहीं समझ पा रहा था कि केवल थोड़ा – सा स्नेह तथा निकटता का आश्वासन देकर कोई अपरिचित कैसे घनिष्ठ हो जाता है।
Questions:
(a) How did the discussion of partition affect Babuli?
(b) How was the word ‘home’ dear to him earlier?
(C) Who is the ‘stranger’ referred to in the passage?
(d) Give the antonym of ‘consoling’.
Answers:
(a) He became very sad. He thought his body was going to cut into pieces.
(b) The word ‘home’ always filled with emotions.
(c) The ‘stranger’ referred to is his wife in the passage.
(d) worrisome.
Passage – 6: (Page 120)
But I became my normal self in two days.
I grew used to what had been a shock.
Later on, in the market place, keeping pace with my wife,
I enquired about the prices of different things she wanted to buy.
Buying a fridge was almost certain.
A second-hand scooter, a stereo set and some gold ornaments.
I prepared a list of prices.
She kept reminding me about her intentions and was showing lot of impatience.
मैं दो दिनों में सामान्य हो गया।
यह सदमा मेरे लिए अब सामान्य – सी बात हो गई।
बाद में, बाजार में अपनी पत्नी के साथ मैंने उन चीजों का मूल्य ज्ञाम किया, जिन्हें मेरी पत्नी खरीदना चाहती थी।
फ्रिज का खरीदा जाना लगभग निश्चित था।
एक पुराना स्कूटर, एक स्टीरियो सेट तथा कुछ सोने के जवाहरात।
मैंने मूल्यों की सूची तैयार की।
उसने मुझे अपनी नीयत के बारे में स्मरण किया था तथा धैर्यवान बनी रही।
Questions:
(a) How much time did the author take to be his normal self?
(b) What did he do in the market?
(c) How did his wife behave in the market?
(d) Write the word or phrase from the passage which means – ‘calm down’.
Answers:
(a) The author took two days to become his normal self.
(b) He enquired about the prices of various things which his wife had desire to buy.
(c) His wife always reminded his intentions. She showed lots impatience also.
(d) Normal self.
Passage – 7: (Page 120)
It was Saturday afternoon.
I left for my village.
The same bus was there, inspiring in me the old familiar feeling.
I rushed to occupy the seat just behind the driver, my favourite seat.
In my hurry I bruised my knee against the door.
It hurt me.
The briefcase fell off and the little packet containing the Prasad of Lord Lingraj, meant for my dear mother, was scattered over the ground.
I felt as if the entire bus was screeching aloud the question:
“After how many years?
You have not bothered in the least to retain that tender love you had in your heart for your home!
Instead you have sold it to the butcher to help yourself become a city Baboo!
Curses be on you!”
वह शनिवार की दोपहर थी।
मैं अपने गाँव की तरफ रवाना हुआ।
बस वही थी। उसने मेरी पुरानी परिचित यादों को ताजा कर दिया।
मैं ड्राइवर के पीछे वाली सीट पर अपना स्थान ग्रहण करने पहुँचा।
यह मेरी पसंदीदा सीट थी।
जल्दीबाजी में मेरा घुटना दरवाजे से टकरा गया,
जिसके कारण मुझे चोट लग गई।
ब्रीफकेस नीचे गिर गया तथा छोटे पैकेट में रखा भगवान लिंगराज का प्रसाद जमीन पर बिखर गया।
मैंने अनुभव किया कि पूरी बस ऊँचे स्वर में जोर से चीख रही है – “कितनी वर्षों के बाद?
अपने घर के प्रति अपने हृदय में बसे सौम्य प्यार को रोके रखने के कारण क्या तुम्हें जरा भी परेशानी नहीं हुई!
बजाय इसके तुमने इसे एक कसाई को इसलिए बेच दिया ताकि तुम शहरी बाबू बन सको!
धिक्कार है तुम पर!”
Questions:
(a) When did the author leave for the village?
(b) What was his favourite seat in the bus?
(c) How did he get hurt?
(d) Give the noun form of ‘tender’.
Answers:
(a) The author left for the village on Sunday afternoon.
(b) In the bus his favourite seat was just behind the driver.
(c) The author was in a hurry to occupy his seat in the bus. His knee got bruised against the door. So, he was hurt.
(d) Tenderness.
Passage – 8: (Page 120)
I boarded the bus, collecting the briefcase and the content of the soiled packet, wearing a shameless smile for the cleaner and the conductor of the bus.
It was five in the evening when I got down;
I had written beforehand.
My elder brother was there to meet at the bus – stop.
He appeared a little tired and worn out.
“Give that briefcase to me.
That must be heavy.”
He almost snatched it away from me.
I forgot even to touch his feet.
This had never happened earlier.
He was walking in front of me.
We were walking on the village road, dusty and ever the same.
I remembered my childhood days.
मैं बस में अपने ब्रीफकेस तथा गंदे पैकेट की वस्तुओं को सुव्यवस्थित करता तथा बस के कंडक्टर तथा सफाईकर्मी के प्रति एक निर्लज्ज मुस्कान बिखेरता हुआ बस में सवार हुआ।
जब मैं उतरा तो शाम के पाँच बज रहे थे।
यह मैं पहले ही लिख चुका था।
बस स्टॉप पर मेरे बड़े भाई मुझसे मिलने आए थे।
वे बहुत ही थके – मँदे से लग रहे थे। इस ब्रीफकेस को मुझे दे दो।
यह काफी भारी होगा। इसे उन्होंने लगभग मुझसे छीन लिया।
मैं उनके पैरों को छूना ही भूल गया।
इसके पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था।
वे मुझसे आगे – आगे चल रहे थे।
हम गाँव की सड़क पर चल रहे थे, जो हमेशा की तरह उसी
तरह से धूल भरी थी।
मैंने अपने बचपन के दिनों को याद किया।
Questions:
(a) When did the author get down at the village bus – stop?
(b) What unusual thing happened to the author at the bus – stop?
(c) What did the author remember when he was walking on the village – road?
(d) Write the word from the passage which means ‘show love and repect towards someone’.
Answers:
(a) He got down at five in the evening at the village bus – stop.
(b) He forgot to touch the feet of his elder brother at the village bus – stop.
(c) When he was walking on the village – road, he remembered his childhood days.
(d) Touch his feet.
Passage – 9: (Page 120)
I was usually crossing the street alone to go to a teacher in the evening for tuition.
It was generally late and dark when I returned from my studies.
Unfailingly my elder brother would be there to escort me back home lest I should be frightened.
He would carry the lantern, my bag of books and notes.
I had to follow him to do so.
If I lagged behind, he would ask,
“Why! You are perhaps tired.
Come, hold my hand and walk with me.”
He sometimes used to carry me on his shoulders while going to the fields for a stroll.
मैं सामान्यतः अकेले शाम को गली पार करके ट्यूशन पढ़ने अपने शिक्षक के पास जाता था।
जब मैं अध्ययन करके लौटता था तो सामान्यतः अँधेरा हो जाता था।
मेरे बड़े भाई वहाँ होते तथा अपने साथ घर लाते कि कहीं मैं भयभीत न हो जाऊँ।
वे मेरा लालटेन तथा किताबों एवं नोट्स से भरा मेरा बैग ढोते।
ऐसा करने के लिए मुझे उनका अनुसरण करना होता था।
जब मैं पीछे रह जाता तो वे कहते, क्यों! शायद तुम थक गए हो।
आओ, मेरे हाथ को पकड़ो तथा मेरे साथ चलो।
कभी – कभी वे मुझे अपने कंधों पर बिठाकर खेत पर सैर के लिए ले जाते।
Questions:
(a) Who used to help Babuli cross the street when he went for tuition?
(b) Why did Babuli’s brother often escort him back home?
(c) How did Babuli’s brother help him when he went to the fields for a stroll?
(d) Write the words from the passage which means – walk in a low and relaxed way’.
Answers:
(a) He usually crossed the street alone when he went for tuition.
(b) His brother often escorted him back home so that he might not be frightened.
(c) Sometimes his brother carried him on his shoulders when he went to the fields for a stroll.
(d) Stroll.
Passage – 10: (Page 121)
The bus – stop was some distance from the village.
I had fallen behind him.
He stopped and asked the same old question he used to ask.
I just could not speak. The past was sprouting up in me.
The childhood days and the days now! Time has coagulated for me.
I have changed. But my elder brother?
Time could not bring upon him any change.
As in those days, he was still walking in front of me, carrying my bag.
I felt so small!
Hesitatingly I said,
“Brother! Give me that briefcase.
Let me carry it for a while.
Don’t you worry,” he said,
It is heavy, and you are tired.
Let us quicken our steps.
You must be feeling hungry.
It is time for the evening meal.
I followed him in silence.
बस स्टॉप गाँव से कुछ दूरी पर था।
मैं उनके पीछे गिर पड़ा।
वे रुक गए तथा कुछ ऐसे पुराने प्रश्न उन्होंने पूछा, जो अक्सर पूछा करते थे।
मैं कुछ भी नहीं बोल पाया।
पिछली बातें मुझे याद आने लगीं।
बचपन के दिन और आज के दिन?
समय ने मुझे स्कंदित कर दिया।
मैं बदल गया, किंतु मेरे बड़े भाई?
समय उनमें कोई परिवर्तन नहीं ला पाया।
पहले के दिनों की ही तरह वे मुझसे आगे चल रहे थे।
मैंने अपने – आप को बहुत ही छोटा महसूस किया।
हिचकिचाते हुए मैंने कहा, “भैया, यह ब्रीफकेस, मुझे दे दीजिए।
कुछ देर के लिए मुझे इसे ले चलने दीजिए।”
“तुम परेशान मत होओ,” उन्होंने कहा, “यह भारी है तथा तुम थके हुए हो।
हमें तेजी से चलना चाहिए। तुम भूखे होगे।
यह शाम के खाने का समय है।”
मैं उनके पीछे चुपचाप चलता रहा।
Questions:
(a) Where was the bus – stop?
(b) What similarity did the author find in his elder brother?
(c) Why did his elder brother not give the brief – case to the author?
(d) Write the word from the passage which means – – stillness’.
Answers:
(a) The bus – stop was at some distance from the village.
(b) Time had changed the author. But his brother was the same person.
(c) The author was tired and hungry. He was lagging behind also.
(d) Silence.
Passage – 11: (Page 121)
We reached home.
It was already dark, the time for lighting the wicks before the sacred Tulsi plant.
Unlike those days, none of my nephews rushed towards me howling,
“Here’s uncle.”
My sister – in – law did not run from the kitchen to receive me.
It was all quiet and calm.
Only my mother came and stood near me.
The second brother and his wife were nowhere to be seen.
In the entire house, there was an air of unusualness – rather the stillness of the graveyard.
As if the house was preparing for its ultimate collapse!
I tried to be normal with everyone.
But there was that abominable lull all around.
My second brother and his wife, in spite of their presence at home, showed no emotion.
They were all set for the partition and they cared for nothing else.
I could not sleep all night.
And the following morning passed quite uneventfully.
हम घर पहुँचे। अँधेरा हो गया था। तुलसी के पवित्र पौधे को बत्ती दिखाने का समय था।
पहले के दिनों की तरह मेरे भतीजे ‘यहाँ चाचा है’ चिल्लाते हुए मेरे इर्द – गिर्द इकट्ठा नहीं हुए।
मेरी भाभियाँ रसोईघर से भागकर मुझसे मिलने नहीं आईं।
सब तरफ शांति और निस्तब्धता छाई हुई थी।
केवल मेरी माँ मेरे पास आई।
मेरा दूसरा भाई तथा उसकी पत्नी कहीं भी दिखलाई नहीं पड़े।
पूरे घर में एक असामान्य स्थिति थी।
कब्रिस्तान जैसी नीरवता चारों तरफ व्याप्त थी।
ऐसा लग रहा था कि जैसे परिवार टूटने के अंतिम पड़ाव पर है।
मैंने सब के साथ सामान्य होने की कोशिश की।
किंतु चारों तरफ एक अजीब – सा सन्नाटा पसरा हुआ था।
मेरे दूसरे भाई तथा उसकी पत्नी ने घर में मौजूद रहने के बावजूद कोई भाव का प्रदर्शन नहीं किया।
वे बँटवारे के लिए तैयार थे तथा उन्हें किसी बात की चिंता नहीं थी।
मैं रात भर सो नहीं सका।
और अगली सुबह में कोई विशेष घटना नहीं हुई।
Questions:
(a) How did the author find the house?
(b) Who received the author when he came to the house?
(C) What is the stillness of the house compared to?
(d) Write the word from the passage which means – unexcitingly’.
Answers:
(a) He found the house quiet and calm.
(b) His mother received him when he came to the house.
(c) The stillness of the house is compared to the graveyard.
(d) Uneventfully.
Passage – 12: (Pages 121 & 122)
It was mid – day.
Seven or eight people had gathered in our courtyard to supervise the division.
We, three brothers, were present.
Mother was not to be seen anywhere in the vicinity.
We were waiting for the final separation, as if ready to slice out the flesh of the domestic body which our parents had nourished since the day of their marriage.
And then we would run away in three different directions clutching a piece each.
All the household articles were heaped in the family courtyard.
These were to be divided into three parts; all the small things in the house, almost everything movable starting from the ladles made out of coconut shells and bamboo to the little box, where father used to keep his betels.
The axe and the old radio set too had been produced A long list of all the items was made Nothing was spared, neither the drink (wooden – rice – crusher) nor the little figures of the family idols.
दोपहर का समय था।
सात – आठ लोग मेरे प्रांगण में बँटवारे का निरीक्षण करने हेतु इकट्ठा हुए थे।
हम तीनों भाई मौजूद थे।
माँ आसपास में कहीं भी दिखलाई नहीं पड़ रही थीं।
हम अंतिम रूप से होने वाले बँटवारे की प्रतीक्षा कर रहे थे।
ऐसे, जैसे हम अपने उस घरेलू परिवार के शरीर के मांस को टुकड़ों में काटने को तैयार हों, जिसे हमारे माता – पिता ने शादी के दिन से ही पाल – पोस कर बड़ा किया था।
और हम इन तीन टुकड़ों को लेकर तीन अलग – अलग दिशाओं में भागेंगे। सभी घरेलू वस्तुएँ घर के प्रांगण में इकट्ठा की गईं।
इनका विभाजन तीन भागों में होना था।
घर की सभी छोटी वस्तुएँ।
घर की सभी चल – संपत्ति – नारियल के छिलकों से बनी करछुल से लेकर बाँस से बने छोटे बक्से तक – जहाँ कि पिता जी पान – कसैली रखा करते थे।
कुल्हाड़ी तथा पुराने रेडियो सेट को भी प्रस्तुत किया गया।
इन सभी वस्तुओं की एक लंबी सूची बनाई गई।
कुछ भी नहीं छोड़ा गया – न तो ढिंकी (चावल पीसने वाला) न ही पारिवारिक देवी – देवताओं के छोटे – छोटे चित्र।
Questions:
(a) Why did seven or eight people gather in the courtyard?
(b) For what purpose were all the domestic articles gather in the courtyard?
(c) Why was the little box important for Babuli?
(d) Write the word from the passage which means – ‘God’.
Answers:
(a) Seven or eight people gathered in the courtyard to review partition.
(b) Because they were to be divided into three equal parts.
(c) The little box was important for Babuli because father used to keep his betels.
(d) Idol.
Passage – 13: (Page 122)
I saw my elder brother rise.
He stopped for a moment near the pile of things and unfastened the strap of his wristwatch and placed it on the heap with other things.
Perhaps a tear trickled down his cheek.
With a heavy sigh he left the place.
I had often heard him say that father had bought him that wristwatch when he was in – the eleventh class.
But I also remember well – in my M.A. final year he had mortgaged that watch to send me money to go to Delhi for an interview.
He had sent me an amount of one hundred and fifty rupees – I remember clearly.
No one knows whether the wristwatch would come back to him or not.
His action seemed symbolic of all his snapping all his attachment with the past.
मैंने देखा कि मेरे बड़े भाई उठ खड़े हुए।
वे कुछ देर के लिए सामानों के ढेर के पास रुके तथा अपनी कलाई की घड़ी का फीता खोलकर उसे सामानों के ढेर पर रख दिया।
संभवतः उनके गाल पर आँसू टपक पड़े।
एक लंबी साँस छोड़कर वे वहाँ से चले गए।
मैंने अक्सर उनसे यह कहते हुए सुना था कि उनके पिता जी ने यह कलाई घड़ी तब खरीदी थी जब वे ग्यारहवीं कक्षा में थे।
किंतु मुझे यह भी याद है कि जब मैं एम.ए. के अंतिम वर्ष में था तो उन्होंने अपनी घड़ी को गिरवी रखकर मुझे पैसे भेजे थे ताकि मैं साक्षात्कार के लिए दिल्ली जा सकूँ।
मुझे पूरा स्मरण है कि उन्होंने मुझे 150 रुपये भेजे थे।
कोई नहीं जानता कि उनकी घड़ी वापस मिलेगी अथवा नहीं।
उनका यह कार्य शायद अतीत से जुड़ाव से पीछा छुड़ाने का प्रतीकात्मक कृत्य था।
Questions:
(a) Why did the elder brother remove his wristwatch?
(b) When did father buy the wristwatch?
(c) Did Babuli’s brother get back his wristwatch?
(d) Write the word from the passage which is the antonym of ‘detachment’.
Answers:
(a) Because his father had bought the wristwatch. So it was also his father’s property.
(b) Father bought the wristwatch when he was in the class eleventh.
(c) No, it is difficult to say whether he got back the wristwatch.
(d) Attachment.
Passage – 14: (Page 122)
I was silent.
My elder sister – in – law was in the backyard.
My second brother was often whispering things into wife’s ear and was there taking his place with us.
It was like the butcher’s knife going to the stone to sharpen itself.
The elder brother was calm and composed.
Like a perfect gentleman, he was looking at the proceedings dispassionately, exactly as he had gone on the day of the sacred thread ceremony of his son and on the day of my marriage.
It was the same preoccupied and grave manner, attending sincerely to his duty.
While discussing anything with my second brother, he had that same calm and composed voice.
Not a sign of distrust and regret.
I remember the year father died, we had to live under a great financial strain.
It was winter.
The chill was at its height.
We had a limited number of blankets.
The cold was biting, particularly at midnight, that one blanket was not enough for one.
मैं चुप था।
मेरी बड़ी भाभी घर के पिछवाड़े में थीं।
मेरा दूसरा भाई हमारे ही पास था तथा अक्सर अपनी पत्नी के कान में कुछ कहता रहता था।
यह एक प्रकार से कसाई के चाकू की तरह था जो कि घर पर पत्थर पर धार दे रहा था।
बड़े भाई शांत तथा प्रकृतिस्थ थे।
एक संपूर्ण भद्र पुरुष की तरह वे कार्यवाही को भावहीन दृष्टि से देख रहे थे।
ठीक उसी तरह जैसे कि अपने बेटे के पवित्र जनेऊ संस्कार पर तथा मेरी शादी के दिन बैठ कर देखते थे।
उनके लिए विचारमग्न होकर अपने कर्तव्य के निर्वहन का यह एक गंभीर मसला था।
अपने दूसरे भाई से किसी बात पर चर्चा करते समय वे बिल्कुल शांत एवं गंभीर रहते थे।
उनमें किसी भी तरह का संदेह अथवा पश्चात्ताप की भावना नहीं थी।
मुझे वह वर्ष याद है जब पिता जी की मृत्यु हो गई थी।
हमें बड़ी प्रतिकूल आर्थिक परिस्थितियों में रहना पड़ रहा था।
सर्दियों के दिन जो ठंड चरम सीमा पर थी।
हमारे पास कंबलों की संख्या अत्यंत सीमित थी।
मध्यरात्रि को सर्द हवाएँ जानलेवा साबित हो रही थीं।
किसी के लिए एक कंबल पर्याप्त नहीं था।
Questions:
(a) Why did the second brother often consulted his wife?
(b) How did the elder brother watch the proceedings of partition?
(c) What happened to Babuli’s family when his father died?
(d) Give one word for ‘A piece of woolen material used for covering the bed or else for warmth’.
Answers:
(a) He might have some message to pass on to her.
(b) He dispassionately watched the proceedings partition. He never showed any sign of distrust or regret.
(c) When Babuli’s father died, his family was put under deep financial strain.
(d) Blanket.
Passage – 15: (Pages 122 & 123)
That night, I was sleeping in the passage room.
When I woke up in the morning I found my elder brother’s blanket on me, added to mine.
Early at dawn he had left for the fields without a blanket on his shoulders.
If he had been asked why, he would have surely said in his usual manner, that he did not feel the cold.
Now I have a comfortable income Yet it had never occurred to me to think of buying any warm clothes for my elder brother.
He is still satisfied and happy with that tattered blanket that he had covered me with twice.
The same blanket was there before me, with all the other things.
उस रात मैं गलियारे में स्थित कमरे में सोया।
जब मैं सुबह में जगा, तो मैंने अपने ऊपर अपने बड़े भाई का कंबल पाया।
पौ फटने के पहले ही वे अपने कंधों पर कंबल लिए बिना खेत की तरफ चले गए।
यदि उनसे यह कहा जाता कि क्यों तो उनका सामान्य जवाब होता कि उन्हें ठंड नहीं लगती।
अभी मेरी आय पर्याप्त है।
अब तक मेरे दिमाग में कभी भी नहीं आया कि अपने बड़े भाई के लिए कुछ गर्म कपड़े खरीद सकूँ।
वे अब भी उस फटे – पुराने कंबल के साथ खुश और संतुष्ट हैं, जिसने मुझे दो बार ढका था।
वही कंबल अन्य सामानों के साथ मेरे सामने है।
Questions:
(a) Where did Babuli sleep that night?
(b) Where had his elder brother gone?
(c) Why was he surprised to see the blanket?
(d) Write the word from the passage which means – torn’.
Answers:
(a) That night Babuli slept in the corridor.
(b) His elder brother had gone to review the fields.
(C) It was cold and he found the blanket on him.
(d) Tattered.
Passage – 16: (Page 123)
I shivered with the cold, and my own ingratitude.
The process of division was finally over.
Whatever the second brother demanded, my elder brother agreed to it with a smile.
My second brother proposed to buy the share of land that was given to me and offered eighteen thousand rupees as the price.
In the evening, my elder brother took me along with him to show me the paddy fields that were to be mine.
I quietly followed him.
We moved from boundary to boundary.
Everywhere, I could feel the imprints of his feet, his palm and his fingers.
On the bosom of the paddy fields sparked the pearls of my elder brother’s sweat.
He was showing me the fields, as a father would introduce a stranger to family members.
मैं ठंड तथा अपनी कृतघ्नता से सिहर रहा था।
बँटवारे की प्रक्रिया अंततः पूरी हो गई।
जो भी हमारे दूसरे भाई ने माँगा, मेरे बड़े भाई ने उसे मुस्कुराहट के साथ स्वीकार कर लिया।
मेरे दूसरे भाई ने मेरे हिस्से की आई जमीन को खरीदने की इच्छा जताई तथा इसके लिए अठारह हजार की कीमत लगाई।
शाम के समय, मेरे बड़े भाई धान के उस खेत पर मुझे ले गए, जो अब मेरा था।
मैंने उनका अनुसरण किया।
हम मेड़ दर मेड़ घूमते रहे।
हर जगह मैंने उनके पैर, हथेली और अंगुलियों के निशान महसूस किए।
धान के खेतों पर मेरे बड़े भाई का पसीना मोती की तरह चमक रहा था।
वे मुझे खेतों को इस प्रकार से दिखला रहे थे जैसे कोई पिता किसी अजनबी से परिवार के सदस्यों का परिचय कराता हो।
Questions:
(a) What did the author’s second brother get in the division?
(b) Where did his elder brother take him in the evening?
(c) What did he feel in the fields?
(d) Write the word from the passage which means ‘shone’.
Answers:
(a) In the division, his second brother got everything he demanded.
(b) In the evening his elder brother took him to show his paddy fields.
(c) He felt the marks of his elder brother’s feet, palm and fingers.
(d) Sparkled.
Passage – 17: (Page 123)
In the morning,
I was to leave for Bhubaneshwar.
I had no courage to meet my elder brother.
Before leaving for the bus – stop,
I handed over the same slip of paper to my elder sister-in-law, which had the details about my share.
Writing on the blank side of that slip,
I had asked her to deliver it my elder brother and stealthily slipped out of our house.
I had written: Brother, What shall I do with the lands?
You are my land from where I could harvest everything in life.
I need nothing save you.
Accept this, please.
If you deny, I shall never show my face to you again.
Babuli.
सुबह में मुझे भुवनेश्वर के लिए रवाना होना था।
मुझमें अपने बड़े भाई से मिलने का साहस नहीं था।
बस स्टॉप पर जाने के पूर्व, मैंने अपने हिस्से से संबंधित कागजात अपनी बड़ी भाभी को थमा दिए।
उसी कागज के पृष्ठ भाग पर मैंने उन्हें इसे मेरे बड़े भाई को दे देने के लिए कहा तथा चुपचाप अपने घर से बाहर निकल गया।
मैंने लिखाः भैया, मैं इस जमीन का क्या करूँगा?
आप ही मेरे वो जमीन हैं, जिससे मैं अपने जीवन का सब कुछ उपजा सकता हूँ। आपके बिना मेरा जीवन कुछ भी नहीं है।
कृपया इसे स्वीकार कीजिए।
यदि आप ऐसा नहीं करेंगे, तो मैं कभी अपना चेहरा आपको नहीं दिखाऊँगा।
बबुली।
Questions:
(a) Why did Babuli not meet his elder brother before leaving for Bhubaneshwar?
(b) What did he give to his elder sister – in – law?
(c) What had he requested his elder brother in the slip?
(d) Write the word from the passage which is antonym of ‘accept’.
Answers:
(a) He had no courage to meet his elder brother.
(b) He gave a slip to his elder sister – in – law. It contained the details of his share.
(c) In the slip he had requested his elder brother to accept his share.
(d) Deny.
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